हम सभी जानते हैं कि भारत में लगभग 1000 से भी ज्यादा दुर्ग और महल हैं। राजस्थान राजपूतों के बलिदान और शौर्य की धरती है। राजस्थान में भी बहुत Famous दुर्ग और महल हैं आज हम GK Pustak में माध्यम से राजस्थान के चित्तौड़गढ़ किले के इतिहास बारे में के बारे में विस्तृत जानकारी दे रहे हैं इस आर्टिकल में ये सब कुछ बताया गया है कि चित्तौड़गढ़ किले की संरचना किसी है, किन आक्रमणकारियों ने हमला किया और किन किन आक्रमण करियों के हमले के बाद वहां की रानियों ने जोहर किया था। ये भाग राजस्थान में होने वाली परीक्षाओं के लिए भी जरूरी है क्यूंकि इसमें सवाल जरूर पूछा जाता है और आम व्यक्ति के लिए भी जो चित्तौरगढ़ किले के इतिहास बारे में जानना चाहता है।
चित्तौड़गढ़ शहर गम्भीरी और बेरच नदी के तट पर स्थित है। चित्तौरगढ़ किले को राजस्थान का ही नहीं पुरे भारत का गौरव माना जाता है भारत में लगभग छोटे और बड़े 1000 किले और और चित्तौड़ या चित्तौड़गढ़ का किला इन सभी में सबसे बड़ा है और राजस्थान की नहीं पुरे भारत की विरासत और धरोहर मानी जाती है।
इस के विशालकाय होने और अद्धभुत होने के कारण ही यूनेस्को ने इसे 2013 में विश्व की धरोहर की लिस्ट में शामिल किया है। इसका निर्माण 7 वीं शताब्दी में मौर्य वंश के राजाओं द्वारा किया गया था। चित्तौड़गढ़ भारत और एशिया के सबसे बड़े किले चित्तौड़ किले का घर है। मुश्लिम शासकों ने इसको तीन बार उजड़ने की कोशिश की जानते है किन किन मुस्लिम शासकों ने चित्तौरगढ़ किले को पर हमले किये।
- पहला हमला अलाउद्दीन खिलजी ने किया 1303 ईस्वी में।
- दूसरा हमला गुजरात के बहादुर शाह ने 1535 ईस्वी में किया।
- तीसरा हमला मुगल राजा अकबर ने 1568 ईस्वी में किया।
पर ये एक सामान्य ज्ञान का प्रश्न है कि तीनों ही हमलावरों को हार का सामना करना पड़ा िक्से पीछे कारण क्या थे वह थे यहां के पुरषों का संघर्ष और महिलाओं का जोहर करना अर्थात आत्मा दाह करना। /
आइ ये जानते हैं चित्तौड़गढ़ किले के इतिहास और निर्माण के पीछे क्या इतिहास है। / History of Chittorgarh fort GK in Hindi
1303 में खिलजी वंश के अलाउदीन खिलजी ने इस किले पर हमला कर दिया और गुहिला राजा रतन सिंह और अलाउद्दीन खिलजी के बीच लड़ी हुई जिसमे रत्न सिंह को हार का सामना करना पड़ा। अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़गढ़ के किले पर कब्ज़ा कर लिया पर बाद में गुहिलों की सिसोदिया शाखा के राजा हम्मीर सिंह ने संघर्ष किया और पुन इसे वापिस कर लिया। चित्तौड़गढ़ के किले के निर्माण और विस्तार में राणा सांगा और राणा कुंभा का बहुत ही योगदान है।
चित्तौड़गढ़ किले की स्थिति
चित्तौड़गढ़़ किले तक कैसे पहुंच सकते हैं ?
अगर आप उदयपुर पहुंच जाते हैं तो वहां से आप Taxi लेकर भी यहां पहुँच सकते हैं। दिल्ली से इस किले की दूरी लगभग 566 किलोमीटर है और आप अगर By बस आते हैं तो आपको 10 घण्टे लगते है और सफर सारा ही आरामदायक है और जोखिम से परे है। अगर इसके इलावा अगर आप By train इस किले तक पहुंचना चाहते हैं तो चित्तौड़गढ़़ एक भारत का एक प्रमुख रेलवे स्टेशन है जो भारत के लगभग सभी शहरों के साथ जुड़ा हुआ है। चंडीगढ़ से चित्तौरगढ़ किले की कुल दूरी 813 किलो मीटर है।
चित्तौड़गढ़ किले के अंदर बानी हुई इमारतों का आकर्षण
कुंभ श्याम मंदिर पूजा और आकर्षण का केंद्र
इस मंदिर का निर्माण राजपूतों के मेवाड़ राजा संग्राम सिंह ने 1482 में करवाया था इस मंदिर का निर्माण 1528 में बनकर पूरा हो गया था। उसने ये मंदिर अपनी बहु के आग्रह पर किया था जिसका नाम मीरा बाई था। मीरा बाई भगवान विष्णु की भक्त थी और घंटों पूजा में लगी रहती थी। ये मंदिर हिन्दू धर्म के भगवान् विष्णु के जितने भी 12 अवतार है उनको समर्पित है। ये मंदिर राजस्थान के जितने बह मंदिर हैं उनमे से एक है।
खूबसूरत बात ये है की मीराबाई के गुरु संत रविदास के पागम चिन्ह अभी भी इस मंदिर में विराजमान हैं। मीरा बाई इस मंदिर में गरीबों और तीर्थयात्रियों को भोजन करवाया करती थीं। इस मंदिर का अकार पिरामिड की भांति है।
चित्तौड़गढ़ किले में रानी पद्मिनी का महल
पद्मिनी का महल का महल भी चित्तौड़गढ़ के किले में स्थित है। इतिहास कहता है कि रानी पद्मिनी राणा रत्न सिंह की ख़ूबसूरत पत्नी थी। उसी के नाम पर इस महल का नम्म रखा गया था। इसी महल में में ही में एक खूबसूरत तालाब है जिसका नाम भी पद्मनी तालाब है।
पद्मिनी का महल से जुड़े तथ्य
- यह महल पानी के बीच में स्थित है।
- इस महल को जनाना महल और इसके किनारे पर बने महल को मर्दाना महल कहा जाता है।
- मरदाना महल के एक कमरे में विशाल दर्पण है।
- अलाउद्दीन ख़िलजी ने यहीं खड़े होकर रानी पद्मिनी का प्रतिबिंब देखा था।
- रानी पद्मा वती खूबसूरत थी और उसकी खूबसूरती को देख कर ही अलाउदीन खिलजी ने इस किले पर आक्रमण किया था।
- इस महल के पास ही भगवान शिव को समर्पित नील कंठ महादेव मंदिर है।
चितोड़गढ़ का कीर्ति स्तम्भ
यह स्तम्भ विजय स्तम्भ से भी अधिक पुराना है। इस स्तम्भ का पर्यटकों के लिए तो महत्व है ही पर ये एक ऐतिहासिक स्थल भी है। पहले जैन तीर्थकर आदि नाथ को समर्पित इस स्तम्भ को जैन मूर्तियों से बेहद शानदार तरीके से सजाया गया है।
राजस्थान में विजय सतंभ / History of Chittorgarh fort GK in Hindi
चित्तौड़गढ़ किले के इतिहास की बात करें तो चितौड़गढ़ का विजय स्तम्भ भी राजस्थान के वस्तु कला में से एक है। यह स्तम्भ मेवाड़ के राजा नरेश राणा कुम्भा दुआरा बनाया गया था। यह महमूद खिलजी स्तम्भ महमूद खिलजी के नेतृत्व में बनवाया गया था। किउं बनाया गया था महमूद खिलजी ने मालवा और गुजरात की सेनाओं से जीत हासिल की थी इसी जीत को याद रखते हुए ये स्तम्भ बनवाया गया था। यह विजय के स्मारक के रूप में सन् 1440-1448 के मध्य बनवाया था।
दूसरी Interesting बात यह की यह राजस्थान पुलिस और राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड का प्रतीक चिन्ह भी है। इसे भारतीय मूर्ति कला का विश्वकोश और हिन्दू देवी देवताओं का अजायबघर कहते हैं। कुछ इसे विष्णु स्तम्भ भी कहते हैं इस स्तम्भ की 9 मंजिलें हैं इसे विष्णु स्तम्भ इस लिए कहा जाता है किउंकि इस इमारत की पहली मंज़िल पर भगवान विष्णु जी का मदिर है।
चित्तौड़गढ़ के किले में राणा कुम्भा महल
महाराणा कुम्भा मेवाड़ के राजपूतों में से एक थे। उन्होंने सन 1433 से 1468 तक शासन किया। एक इस महल से जुड़ा तथ्य ये है की उदयपुर नगरी बसने वाले उदय सिंह का जन्म इसी महल में हुआ था। यह महल राजपूतों की विजय गाथा और शौर्य का प्रतीक है। राणा कुंभा को राणा कुम्भकर्ण भी कहते थे।
महाराणा कुंभा राजस्थान के शासकों में सर्वश्रेष्ठ थे। मेवाड़ के आसपास जो उन्नत राज्य थे उन पर उन्होंने अपना सिक्का जमाया था। राजस्थान बत्ती दुर्गों में से चित्तौड़गढ़, कुंभलगढ़, अचलगढ़ जैसे दुर्ग उनकी प्राप्तियां थी। चित्तौड़गढ़ किले का आधुनिक निर्माता उन्हें ही कहा जाता है। उस वक्त मुग़ल शासकों का बल बला था पर उन्होंने उन्हें भी हराकर अपने शौर्य का परिचय दिया था। इस किले को राजस्थान के कवियों का डेरा भी माना जाता है।
चित्तौड़गढ़ के किले पर हुए हमले / Attack on Chittorgarh Fort
चित्तौड़गढ़ के किले पर अलाउद्दीन खिलजी का हमला
अलाउद्दीन खिलजी ने 1303 इस किले पर हमला किया था। उस वक्त इस किले पर राजपूत रत्न सिंह का शासन था। रतन सिंह की पत्नी का नाम पद्मा वती था। पद्मावती सौंदर्य का एक चिन्ह थी अर्थात सुन्दर थी जब खिलजी ने इस गढ़ का भ्रमण किया तो खिलजी ने महारानी पद्मावती का प्रतिबिम्ब देखा महारानी की खूबसूरती से अलाउद्दीन खिलजी उत्तेजित हुआ और महारानी को अपने साथ जाने के लिए कहा।
महारानी ने खिलजी को इंकार कर दिया इस इंकार से आग बबूला होकर खिलजी ने इस किले पर आक्रमण का फैसला लिया और आक्रमण कर दिया महाराजा रत्न सिंह ने साहस से उसका सामना किया पर वह हार गया।
हार के बाद महारानी ने होंसला नहीं हारा और वह राजपूतों की मर्यादा, साहस और स्वाभिमान को कायम रखना चाहती थी इसलिए महारानी ने 16 हजार रानियों के साथ दासियों के साथ और बच्चों के साथ जौहर किया अर्थात आत्म दाह किया। जहां पर आत्मदाह किया गया था वहां अभी भी जौहर स्थल मौजूद है।
चित्तौड़गढ़ किले पर गुजरात के शासक बहादुर शाह का हमला Attack of Bhadur Shah on Cittorgarh
1535 ईसवी में गुजरात के शासक बहादुर शाह ने हमला कर दिया था। उस वक्त इस किले पर विक्रम जीत का शासन था उसने बहादुर शाह का अदम्य साहस से डट का कर सामना किया पर वह हार गया। पर रानी कर्मवती ने होंसला नहीं हरा और पहले अपने राजकुमार उदयसिंघ को बूंदी भेजा जहां वहउसे वह Safe समझ सकती थी उसके बाद रानी ने 13000 रानियों के साथ जौहर किया और अपने साहस का परिचय और राजपूतों के गौरव को बरकरार रखा।
जौहर से पहले रानी कर्मवती ने मुग़ल सम्राट हुमाऊं को राखी भेजी थी और अपनी रक्षा की मांग की थी। हुमायूँ को ये चिट्ठी ग्वालियर के नज़दीक मिली थी। वह अपनी सेना के साथ चित्तौड़गढ़ किले के लिए रवाना हुआ पर उस वक्त बहुत देर हो चुकी थी रानी कर्मवती जौहर कर चुकी थी।
हुमाऊं ने बहादुर शाह पर हमला कर दिया लड़ाई में हुमाऊं जीत गया और हार की खबर सुनकर राजपूतों ने अपने राजकुमार उदय सिंह को बूँदी से लेकर दुबारा से सिहांसन पर बिता दिया।
मुगल शासक अकबर चित्तौड़गढ़ किले पर हमला
अकबर अकबर ने 25 फरवरी सुबह किले के दरवाजे खुलने से पहले हमला कर दिया। ये युद्ध अकबर और मेवाड़ के राजा महाराणा उदयसिंघ के बीच हुआ पर इस युद्ध में महाराणा उदयसिंघ और उसके सरदारों ने वीरता का परिचय दिखाया और साहस से लड़ते वीर गति को प्राप्त हो गए। रानी फूल कवर ने उस वक्त हजारों रानियों के साथ मिलकर जोहर किया था।
चित्तौरगढ़ किले की वस्तु कला बनावट या संरचना
यह किला गंभीरी नदी के किनारे पर बना हुआ है। किले में प्रवेश करने से पहले एक चुना पत्थर का पल बना हुआ है उस पल को पार करना पड़ता है। उसके बाद इस किले में आ सकते हैं। इस किले हमले मुस्लिम शासकों के हुए हैं पर इसे हिन्दू वास्तु कला के आधार पर बनाया गया है।
- पादन पोल
- भैरों पोल
- हनुमान पोल
- गणेश पोल
- जोदल पोल
- लक्ष्मण पोल
- राम पोल
आपको बता दें कि फतेह प्रकाश पैलेस में मध्यकाल में इस्तेमाल किए जाने वाले अस्त्र-शस्त्र, मूर्तियां, कला समेत कई पुरामहत्व वाली वस्तुओं का बेहतरीन संग्रह आपको देखने के लिए मिल सकता है। पहले इस किले में 80 से भी ज्यादा कुंड और जलाशय बने हुए थे पर अब यहां पर 20 ही जलाशय बचे हुए हैं।
चित्तौड़गढ़ किले के तीन जौहर
- पहला जौहर रावल रतन सिंह के शासनकाल अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के समय 1303 में रानी पिद्मनी के नेतृत्व जौहर किया गया।
- दूसरा जौहर राणा विक्रमादित्य के शासनकाल मेें सन् 1534 ई. में आठ मार्च गुजरात के शासक बहादुर शाह के आक्रमण केे समय में रानी कर्णवती ने जौहर किया।
- तीसरा जौहर राणा उदय सिंह के शासनकाल में अकबर के आक्रमण के समय 25 फरवरी,1568 में पत्ता सिसौदिया की पत्नी फूल कँवर के नेतृत्व में जौहर किया गया था।
जौहर प्रथा और सती प्रथा में अंतर
जौहर प्रथा और सती प्रथा और सती प्रथा दोनों ही राजस्थान के राजपूतों से सबंध रखते थे आइ ये जाने क्या अंतर था जौहर प्रथा और सती प्रथा में
जौहर प्रथा
जौहर पुराने समय में भारत में राजपूत स्त्रियों द्वारा किया जाने वाला बलिदान था। जब युद्ध में राजस्थान के राजपूतों की हार निश्चित हो जाती थी तो पुरुष केसरिया धारण कर युद्ध के लिए निकल जाते थे और उनका वीरगति को प्राप्त होना निश्चित होता था उन्ही का होंसला बढ़ाने के लिए रानियां एक जोहर कुंड बनाती थी और अपने आप को उस जौहर कुंड में अग्नि दाह कर लेती थी। राजस्थान में कितने जौहर हुए उसके बारे में हम पहले ही बता चुके हैं।
सती प्रथा और जौहर लगभग एक ही है पर सती प्रथा का आरम्भ जौहर प्रथा से बाद हुआ जब अलाउद्दीन खिलजी ने पद्मावती को पाने की खातिर चित्तौड़ के किले पर आक्रमण किया और जीत गया तब अपनी लाज बचाने की खातिर और राजपूतों की शान के लिए पद्मावती ने सभी राजपूत विधवाओं के साथ सामूहिक जौहर या अपने आप का आत्म दाह किया था।
महिलाओं के इस बलिदान को याद रखने के लिए उक्त स्थान पर मंदिर बना दिये गए और उन महिलाओं को सती कहा जाने लगा। तभी से सती के प्रति सम्मान बढ़ गया और सती प्रथा प्रचलन में आ गई। हम इसके बारे में बता दें की इस प्रचलन के लिए कहीं न कहीं हिन्दू धर्म का हाथ नहीं था या धार्मिक कारण नहीं था पर कारण था तो मुग़ल शासकों का औरतों के प्रति लालचीपन और गलत नियत
इस प्रथा का अन्त राजा राममोहन राय ने अंग्रेज के गवर्नर लार्ड विलियम बैंटिक की सहायता से की। पर जब इस प्रथा का अंत हुआ तब मुगलों का राजपूत राजाओं पर अत्याचार और गलत रवैया लगभग खत्म हो चूका था।
चित्तौड़गढ़ किले के बारे में रोचक में रोचक जानकरियां
FAQ - Frequently asked Question
प्रश्न 1 - भारत का सबसे बड़ा दुर्ग कौन सा है ?
उत्तर - मेहरान गढ़ का किला जो राजस्थान के जोधपुर जिले में बना है ?
प्रश्न 2 -- चित्तौड़गढ़ किले को यूनेस्को ने किस वर्ष world Heritage List में शामिल किया था ?
उत्तर -- 2013 में।
प्रश्न 3 -- चित्तौड़गढ़ किले का निर्माण किसने और किस के दुआरा करवाया गया था ?
उत्तर -- इस दुर्ग का निर्माण मौर्य शासकों द्वारा सातवीं शताब्दी में करवाया गया था।
प्रश्न 4 -- चित्तौड़गढ़ किले में लगभग कितने लोग रह सकते हैं ?
उत्तर -- एक लाख से भी ज्यादा।
प्रश्न 5 - चित्तौड़गढ़ किले पर खिलजी ने कब आक्रमण किया ?
उत्तर -- 1303 ईस्वी में।
प्रश्न 6 - चित्तौड़गढ़ किले पर खिलजी ने कब आक्रमण किया तो किस रानी ने जौहर किया था ?
उत्तर -- रानी पद्मा वती ने।
प्रश्न 7 -- चित्तौड़गढ़ किले पर गुजरात के बहादुर शाह ने कब आक्रमण किया ?
उत्तर -- 1535 ईसवी में।
प्रश्न 8 -- चित्तौड़गढ़ किले पर गुजरात के बहादुर शाह के हमले के बाद किस रानी ने जौहर किया था ?
उत्तर -- रानी कर्मवती ने।
प्रश्न 9 -- गुजरात के बहादुर शाह के हमले के बाद महारानी कर्मवती ने किस मुग़ल बादशाह राखी भेज कर से सहायता मांगी ?
उत्तर -- हुमायूँ से।
प्रश्न 10 -- हुमायूँ को रानी कर्मवती की राखी कहां पर मिली ?
उत्तर -- ग्वालियर के किले में।
प्रश्न 11 -- चित्तौड़गढ़ किले पर मुग़ल बादशाह अकबर ने कब आक्रमण किया ?
उत्तर -- 1567 - 68 में।
प्रश्न 12 - अकबर के हमले के हार के बाद किस रानी ने जौहर किया था ?
उत्तर -- रानी फूल कवर ने।
दोस्तों आपको ये चित्तौरगढ़ किले के बारे में जानकारी किसी लगी कमेंट में जरूर बतायें और अगर किसी भी दोस्त के साथ साँझा करना चाहते है तो जरूर करें।