हिमाचल प्रदेश का सोलन जिला जब हिमाचल प्रदेश अस्तित्व अर्थात जब आजादी के बाद हिमाचल प्रदेश का विलय हिंदुस्तान में हुआ था तब आज का सोलन भी अन्य जिलों की तरह रियासतों में बंटा हुआ था। जब हिमाचल प्रदेश बना तब हिमाचल प्रदेश में केवल चार ही जिले थे और उनके नाम महासू, सिरमौर, चंबा और चंबा थे। इन्हीं चार जिलों के मिलने से हिमाचल प्रदेश का निर्माण हुआ था।
आज जो सोलन जिला है या शहर है वह महासू जिले का हिस्सा था। 1972 में महासू जिले और शिमला जिले की कुछ तहसीलों को मिलाकर सोलन जिले का निर्माण हुआ था। इस आर्टिकल में हम हिमाचल प्रदेश के सोलन जिले के इतिहास के बारे में पढ़ेंगे।
सोलन जिला का इतिहास | History of Solan District
आज के सोलन जिले का परिचय :
इस जिले के उत्तर में हिमाचल प्रदेश का शिमला जिला और पुंजाब का रोपड़ जिला स्थित हैं। दक्षिण में हरियाणा राज्य का अम्बाला जिला, पूर्व में हिमाचल प्रदेश का सिरमौर जिला और पश्चिम में हिमाचल प्रदेश का बिलासपुर जिला स्थित है। इस जिले आकार आयातकार है। जिले की मानचित्र में अक्षांश स्थिति 76.42 और 77.20 डिग्री पूर्व और देशांतर स्थिति 30.05 और 31.15 डिग्री उत्तर में है। इस जिले की औसत ऊंचाई 300 से 3,000 मीटर के बीच में है। इस जिले के चारों ओर शिवालिक पर्वत श्रृंखला है।
सोलन जिले का नामकरण: सोलन जिले के नामकरण को अगर प्राचीन इतिहास के साथ जोड़ा जाये तो इस जिले का नामकरण यहां पर स्थित शुलुनी माता के मंदिर मंदिर के इर्द गिर्द घूमता है। ऐसा माना जाता है की महाभारत काल में,अज्ञात वास में पांडवों ने यहां वसेरा किया था। माता शुलुनी के मंदिर के नाम से ही सोलन शहर का नाम सोलन पड़ा था। यह एक ऐतिहासक बात है पर इसके पीछे कोई ऐतिहासिक स्त्रोत नहीं है। दूसरी तरफ 1855 में हिमाचल प्रदेश की सरकारी वेबसाइट सोलन जिले के नामकरण का लोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं देती है।
सोलन किला कब बना ?
इस जिले का जब 1972 में जिले के रूप में निर्माण हुआ तब इसका क्षेत्रफल 1,936 वर्ग किलोमीटर था जिसमे अभी भी कोई बदलाव नहीं हुआ है। सोलन जिला हिमाचल प्रदेश के दक्षिण-पश्चिमी भाग में स्थित है। सोलन जिले की सीमाएं पूर्व में शिमला, पश्चिम में पंजाब, उत्तर में बिलासपुर और मंडी, और दक्षिण में सिरमौर और हरियाणा के साथ लगती हैं।
सोलन जिले में पंजाब के कुछ हिस्सों का विलय भाषा के अदहर पर हुआ था। सोलन जिले का इतिहास कहता है कि ये रियासत 1803 से लेकर 1815 तक गोरखाओं के अत्यचार का भाग रहा है। सोलन जिले के पहाड़ी राजाओं ने मिलकर इस जिले को गोरखाओं से आजाद करवाया था। पर उन्होंने ऐसा ब्रिटिश सरकार की सहायता से किया था 1815 में ब्रिटिश सरकार ने कुछ हिस्सा पहाड़ी राजाओं को दे दिया था।
ये जिला क्षेत्रफल और जनसंख्या में कम होने के कारण शिमला जिले के अंदर था अर्थात शिमला जिले का हिस्सा था। ये जिला तब अस्तित्व में नहीं था जब हिमाचल प्रदेश 15 अप्रैल 1948 को मानचित्र में आया था। तो फिर सोलन जिला कब बना ? सोलन जिले का निर्माण 1972 में हिमाचल प्रदेश के अपने जिलों के विलय से हुआ है। तहसील नालागढ़ पहले आजादी से पहले पटियाला राज्य का हिस्सा था।
1956 में राज्यों के पुनर्गठन तक सोलन जिला पंजाब का हिस्सा था। जब 1972 में हिमाचल प्रदेश के जिलों का पुनर्गठन हुआ तब शिमला जिले की कुछ तहसीलों और काँगड़ा जिले की कुछ तहसीलों को मिलाकर इस जिले का निर्माण हुआ था। सोलन जिले का नाम यहां 19 वीं शताब्दी में ही हो गया था।
इस जिले को घाटों का जिला भी माना जाता है। इस जिले में घाट के नाम से भी तहसीलें हैं। इस जिले का इतिहास राजपूत वंश के बसंत पाल या हरि चंद पाल से भी जोड़ा जाता है। सोलन जिला गोखाओं के समय एक छावनी के रूप में विकसित था।
बघाट रियासत: सोलन जिले की बघाट रियासत की स्थापना राजपूत बंसत पाल ने की थी। आज के सोलन और कसौली तहसीलें उस वक्त बघाट रियासत की हिस्सा थी। इस रियासत पर राजपूत राणाओं का राज था इस रियासत का नाम बघाट राणा इंदरपाल द्वारा रखा गया था। सोलन जिले का इतिहास बघाट रियासत के इर्द गिर्द ही घूमता है।
राजपूत राणा महिंदर सिंह के बाद इस रियासत की बागडोर विजय सिंह ने संभाली पर 1849 में विजय सिंह की भी मृत्यु हो गई और उनकी अपनी कोई संतान नहीं थी। और इस रियासत को लार्ड डलहौजी ने अपनी दमनकारी नीतियों के तहत काबू कर लिया। 1862 में इस रियासत के उम्मेद सिंह शासक बने।
उमेद सिंह की मृत्यु के बाद इस रियासत के राणा दलीप सिंह शासक बने। राणा दलीप सिंह की मृत्यु के बाद राणा दुर्गा सिंह इस रियासत के राजा बने जो 1948 तक शासन में रहे जब देश आजाद हुआ तब राजा दुर्गा ने इस रियासत का विलय भारत के गणराज्य करवाया था।
इस रियासत ने 1790 में मुग़लों के शासन से आजादी पाई थी। जब ये रियासत आजाद हुई तब राणा महिंद्र सिंह इस रियासत के पहले शासक बने थे। राणा महिंदर सिंह की 1839 में मृत्यु हो गई और उसके बाद ये रियासत ब्रिटिश राज्य में विलय हो गई।
राजपूत राणा महिंदर सिंह के बाद इस रियासत की बागडोर विजय सिंह ने संभाली पर 1849 में विजय सिंह की भी मृत्यु हो गई और उनकी अपनी कोई संतान नहीं थी। और इस रियासत को लार्ड डलहौजी ने अपनी दमनकारी नीतियों के तहत काबू कर लिया। 1862 में इस रियासत के उम्मेद सिंह शासक बने।
उमेद सिंह की मृत्यु के बाद इस रियासत के राणा दलीप सिघ शासक बने। राणा दलीप सिंह की मृत्यु के बाद राणा दुर्गा सिंह इस रियासत के राजा बने जो 1948 तक शासन में रहे जब देश आजाद हुआ तब राजा दुर्गा ने इस रियासत का विलय भारत के गणराज्य करवाया था।
अर्की रियासत:
इस रियासत की स्थापना उज्जैन के राजपूत दुआरा की गई थी उनका नाम अजय सिंह था। वे पवार वंश से संबंध रखते थे। इसे भागल रियासत के नाम से जाना जाता था। ये रियासत गंभीर नदी तक फैली हुई थी। इस रियासत के सिरी, धूदान, दुगली और दारला थे। 1643 में इस रियासत की राजधानी राणा संभा ने भागल बनाई थी। राणा सांभा को ही इस रियासत का पहला शासक माना जाता है।
जब इस रियासत पर गोरखाओं का आक्रमण हुआ तब इस रियासत का राजा जगत सिंह थे उन्होंने 1828 तक इस रियासत पर राज किया। 1803 से 1815 तक इस रियासत पर गोरखाओं का शासन रहा और इस रियासत के राजा गोरखाओं से जान बचाकर सात साल तक नालागढ़ रियासत में शरण लेनी पड़ी। 1815 ईस्वी में ब्रिटिश ने इस रियासत को आजाद करवाया और इस रियासत को पहाड़ी राजा को सौंप दिया। इस रियासत के अंतिम शासक राजेंद्र सिंह थे।
कुनिहार रियासत -
कुनिहार रियासत की स्थापना 1154 में की गई थी इस रियासत की स्थापना आमिज देव ने की थी जो 1154 में जम्मू से आये थे। जम्मू के अखनूर नामक जिले से आकर उन्होंने इस रियासत की स्थापना की थी। हटकोटी इस रियासत की राजधानी थी। जब गोरखाओं ने इस रियासत पर आक्रमण किया तब इस रियासत के राजा मगन देव थे।
मंगल रियासत:
मंगल रियासत की स्थापना मैरी ने की थी जो अत्रि राजपूत वंश से संबंध रखते थे। मंगल रियासत उस वक्त बिलासपुर रियासत की जागीर था। मंगल रियासत का नाम मंगल सिंह के नाम पर रखा गया। मंगल सिंह इस रियासत के अंतिम शासक थे ये रियासत भी गोरखाओं के आक्रमण का हिस्सा रहा और 1815 में ब्रिटिश ने इस रियासत को आजाद करवा कर पहाड़ी राजा को शॉप दिया।
हुंडुर रियासत
ये रियासत तैमूर के आक्रमण का हिस्सा भी रहा है तैमूर लंग ने इस रियासत पर 1398 में आक्रमण किया था। जब तैमूर ने इस रियासत पर आक्रमण किया तब इसका राजा आलम आलम चंद थे। आलम चंद ने तैमूर का साथ दिया था। इसलिए तैमूर ने इस रियासत को कुछ ज्यादा नुकसान नहीं पहुँचाया था।
इस रियासत पर रामचंद्र का शासन भी रहा है उसने रामशहर को अपनी ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाया था। इस रियासत पर अजमेर चंद ने 1712 से लेकर 1741 तक राज किया। राजा रामशरण ने इस रियासत पर 1788 से लेकर 1848 तक राज किया जो महाराजा संसार चंद के समकालीन थे।
1790 में उन्होंने फतेहपुर किले रतनपुर किले और बहादुरपुर किले पर कब्जा कर लिया। जब गोरखों ने इस रियासत पर आक्रमण किया तब 3 साल तक रामशरण को रामशहर किले में छपकर अपनी जान बचानी पड़ी। 1804 में गोरखों ने उस किले पर भी कब्जा कर लिया जहां रामशरण छिपे थे।
राजा रामशरण ने 10 वर्षों तक फोर्ट प्लासी नामक स्थान पर शरण ली जो होशियारपुर में स्थित है। ये रियासत रामशरण के समय चित्रकला का एक स्वरूप था। 1848 में राजा रामशरण की मृत्यु हुई और उसके बाद इस रियासत की राजगद्दी बीज सिंह ने संभाली। राजा बीज सिंह 1848 से लेकर 1857 तक शासन में रहे। 1966 तक ये रियासत पटियाला के अंदर आती थी और 1972 में हिमाचल प्रदेश के पुनर्गठन के बाद ये रियासत हिमाचल प्रदेश का हिस्सा बन गई।
बेजा रियासत -
इस रियासत की स्थापना दिल्ली के राजा दुआरा की गई थी जिनका नाम धोलचन्द था ये एक सवार वंश के राजा थे। पर कभी कभी इतिहासकार ये भी मानते हैं कि इस रियासत की स्थापना गौरव चंद द्वारा की गई थी। पहले ये रियासत बिलासपुर रियासत का हिस्सा था।
इस रियासत को 1790 में हण्डोर रियासत ने आजाद किया था। गोरखा आक्रमण के समय मनचंद बेजा रियासत के प्रमुख थे। 1815 में इस रियासत को गोरखों से ब्रिटिश ने आजाद करवाया और मानचंद को इस रियासत का राजा बनाया था अंग्रेजों ने उन्हें 'ठाकुर' की उपाधि दी थी।
महालोग रियासत -
इस रियासत की स्थापना वीरचंद द्वारा की गई थी और वे आयोध्या से आये थे। वीरचंद ने सबसे पहले पटा गांव में निवास किया और उसी को अपनी राजधानी बनाया था। ये पहले कियोथल की जागीर थी। इस रियासत के राजा उत्तम चंद ने सिरमौर रियासत के राजा को हराया था। और उसको हराने के बाद उत्तम चंद ने इस रियासत की राजधानी 1612 में बदलकर कोतवाली कर दी थी।