हिमाचल प्रदेश मंडी में किसान आंदोलन
मण्डी में किसान आंदोलन –1909 ई. में मण्डी में राजा भवानी सेन के समय में एक किसान आंदोलन हुआ जो 1903-1912 में हुआ। राजा का वजीर जीवानन्द पाधा एक भ्रष्ट, अत्याचारी और दुष्ट प्रशासक था। उसने किसानों को डरा - धमका कर सारे अनाज का व्यापार अपने हाथ में लिया था।
इसके साथ ही वह किसानों पर अनेक प्रकार के कर लगा कर उनका आर्थिक शोषण भी करता रहा। उसने लोगों पर बेगार भी बढ़ा दी। रियासत में भ्रष्टाचार भी बहुत बढ़ गया। ऐसी स्थिति में सरकाघाट क्षेत्र का शोभाराम 20 व्यक्तियों का एक शिष्ट मण्डल लेकर अपनी शिकायतों के साथ राजा के पास मण्डी आया। इस बार भी राजा ने उन की ओर कोई ध्यान नहीं दिया।
तीसरी बार वह 300 व्यक्तियों को लेकर राजा के पास आया। इस समय कुछ लोगों को आंदोलन करने के लिए गिरफ्तार कर लिया। अन्त में शोभाराम के नेतृत्व में 20,000 के लगभग किसानों का जलूस मण्डी पहुँचा। उत्तेजित किसानों ने तहसीलदार हरदेव और अन्य अधिकारियों को पकड़कर जेल में बन्द कर दिया तथा कचहरी और थाने पर कब्जा कर लिया। रियासत का प्रशासन अस्त-व्यस्त हो गया।
सब जगह शोभाराम का आदेश चलने लगा। राजा भवानी सेन ने विवश होकर बर्तानवी सरकार से सहायता माँगी। काँगड़ा जिला के डिप्टी कमिश्नर, कुल्लू के सहायक कमिश्नर कुछ सैनिकों को लेकर मण्डी पहुँचे। जालन्धर से कमिश्नर एच.एस.डैविज भी समय पर मण्डी पहुँच गए। राजा ने लोगों की माँग पर वजीर जीवानन्द को पद से हटा दिया। उसके स्थान पर मियां इन्द्र सिंह को वजीर नियुक्त किया गया और कुटलैहड़ के टीका राजेन्द्र पाल को राजा का सलाहकार नियुक्त किया गया।
किसानों के करों में कमी करके अनाज के खुले व्यापार का आदेश दे दिया गया। इसके पश्चात् स्थिति में सुधार हो गया।