ख़िलाफ़त आन्दोलन : मांगे, कारण और विवरण | Information about Khilafat Movement in Hindi : Indian History GK

खिलाफ़त आंदोलन को भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में एक महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। इस आंदोलन को 1919 ई० में मुहम्मद अली (Muhammad Ali) तथा शौकत अली (Shaukat Ali) (वे अली बंधुओं के नाम से प्रसिद्ध थे) द्वारा ब्रिटिश शासन के खिलाफ़ चलाया गया था। इस आंदोलन के अन्य प्रख्यात नेता मौलाना अबुल कलाम आजाद,डॉ० एम० ए० अंसारी, डॉ० सैफुद्दीन किचलू तथा हकीम अजमल खाँ थे। इसे महात्मा गाँधी एवं कांग्रेस का पूर्ण समर्थन प्राप्त था। आज हम Gk Pustak के माध्यम से खिलाफत आंदोलन के बारे में जानने की कोशिश करेंगे।



खिलाफत आंदोलन | Information about Khilafat Movement in Hindi

 

 

खिलाफत आंदोलन की पृष्ठ भूमि क्यों शुरू हुआ खिलाफत आंदोलन


विश्व भर के मुसलमान तुर्की के सुल्तान का बहुत सम्मान करते थे। इसका कारण यह था कि वे उसे अपनाखलीफ़ा ,धार्मिक नेता मानते थे। 1914 ई० में जब प्रथम विश्व युद्ध आरंभ हुआ तो ब्रिटेन ने तुर्की के विरुद्ध युद्ध आरंभ किया। इस कारण भारतीय मुसलमान बड़े असमंजस में पड़ गए थे कि वे अंग्रेज़ों का साथ दें अथवा खिलाफ़त की रक्षा के लिए तुर्की के सुल्तान का साथ दें। ऐसे समय में मुसलमानों का सहयोग प्राप्त करने के लिए ब्रिटिश प्रधानमंत्री लायड जॉर्ज ने वायदा किया, युद्ध के समाप्त होने के उपरांत तुर्की के प्रति प्रतिशोध की भावना नहीं अपनायी जायेगी तथा तुर्की के खिलाफ़त का अंत नहीं किया जाएगा।


इस कारण भारतीय मुसलमानों ने युद्ध के दौरान अंग्रेजों को अपना पूरा समर्थन दिया। 1916 ई० में लखनऊ अधिवेशन में कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग में समझौता हुआ। इस समझौते के अनुसार दोनों ने उत्तरदायी शासन प्राप्त करने के उद्देश्य से ब्रिटिश शासन के विरुद्ध संयुक्त कार्यवाही करने का निर्णय किया। इससे मुस्लिम लीग को खिलाफ़त आंदोलन चलाने के लिए प्रबल शक्ति प्राप्त हुई।



1919 ई० में ब्रिटिश सरकार ने रॉलेट एक्ट पास करके भारतीयों की भावनाओं को भड़काया। 13 अप्रैल, 1919 ई० को हुए जलियाँवाला बाग़ हत्याकांड में अनेकों हिंदू, मुसलमान एवं सिख मारे गए तथा घायल हुए। इस कारण उनमें ब्रिटिश शासन के प्रति आक्रोश की लहर तीव्र हो गई। प्रथम विश्व युद्ध के समाप्त होने के बाद जब भारतीय मुसलमानों को यह समाचार मिला कि ब्रिटेन तथा उसके सहयोगी मित्र राष्ट्र तुर्की साम्राज्य को विभाजित करने की योजनाएँ बना रहे हैं तो उन्हें बहुत ठेस पहुँची। परिणामस्वरूप उन्होंने तुकों के प्रति हो रहे अन्याय के खिलाफ़ सितंबर, 1919 में खिलाफ़त कमेटी का गठन करने का निर्णय किया।

 

खिलाफत आंदोलन की मांगे, कारण  और विवरण

 

27 सितंबर, 1919 ई० को खिलाफ़त कमेटी ने 17 अक्तूबर, 1919 ई० को देश भर में खिलाफ़त दिवस मनाने, हड़तालें, भूख हड़ताल तथा प्रार्थना करने का मुसलमानों को आह्वान किया। इसके साथ ही यह निर्णय भी किया गया कि यदि ब्रिटिश सरकार उनकी माँगें माने तो देशव्यापी आंदोलन चलाए जाएँ। जैसा कि पूर्व परिचित था ब्रिटिश सरकार ने मुसलमानों की माँग की तरफ कोई ध्यान दिया। अतः मुसलमानों ने अब ब्रिटिश शासन के विरुद्ध खिलाफ़त आंदोलन आरंभ कर दिया। इस आंदोलन की मुख्य माँगें निम्नलिखित थीं


(i)
तुर्की शासक कमाल अतातुर्क द्वारा समाप्त किए गए सर्व इस्लामवाद (Pan Islamism) के प्रतीक खलीफ़ा की पुनर्स्थापना करना।


(ii)
पहले के ऑटोमन साम्राज्य के सभी इस्लामी पवित्र स्थानों पर खलीफ़ा का नियंत्रण बना रहे।


(iii)
जज़ीरात-उल-अरब जिसमें अरब, सीरिया, इराक एवं फिलिस्तीन सम्मिलित हैं इस्लामी संप्रभुता (Muslim

sovereignty)
के अधीन रहें।


(iv)
खलीफ़ा के पास इतने क्षेत्र हों कि वह इस्लामी विश्वास (Islamic faith) को सुरक्षित करने के योग्य बन

सके।


24
नवंबर, 1919 ई० को दिल्ली में एक अखिल भारतीय खिलाफ़त सम्मेलन हुआ। इस सम्मेलन की अध्यक्षता महात्मा गाँधी ने की। इस सम्मेलन में गाँधी जी ने ब्रिटिश सरकार पर मुसलमानों को दिए अपने वचन को तोड़ने का आरोप लगाया। उन्होंने हिंदुओं को मुसलमानों की इस संकट के समय सहायता करने तथा खिलाफ़त आंदोलन में सम्मिलित होने का आग्रह किया।


महात्मा गाँधी के सुझाव पर 19 जनवरी, 1920 ई० को डॉक्टर अंसारी के नेतृत्व में एक शिष्टमंडल वायसराय चैम्सफोर्ड को मिला तथा उसे मुसलमानों के क्षुब्ध विचारों से अवगत करवाया गया। किंतु इसका कोई परिणाम निकला। मार्च, 1920 ई० में अली बँधु ब्रिटिश प्रधानमंत्री लायड जॉर्ज से भेंट करने तथा उसे खिलाफ़त के वायदे का स्मरण करवाने के लिए लंदन गए। परंतु यह शिष्टमंडल भी निराश वापस पहुँचा।



भारतीय मुसलमानों का असंतोष तब और अधिक भड़क उठा जब ब्रिटिश सरकार ने तुर्की को 10 अगस्त, 1920 ई० को सेवर्स की संधि स्वीकार करने के लिए बाध्य किया। इस संधि के द्वारा तुर्की के साम्राज्य को छिन्न-भिन कर दिया गया तथा तुर्की के सुल्तान को लगभग बंदी की स्थिति में ले लिया गया। इस कारण मुस्लिम लीग ने खिलाफ आंदोलन को तीव्र करने का निर्णय किया।


महात्मा गाँधी ने 1920 ई० में सरकार के विरुद्ध संयुक्त रूप से असहयोग आंदोलन चलाने का सुझाव दिया। इस सुझाव को खिलाफ़त आंदोलन के नेताओं ने स्वीकार कर लिया। हिंदुओं तथा मुसलमानों की इस एकता ने राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन को एक नई दिशा प्रदान की और असहयोग आंदोलन को एक मजबूत आधार स्तंभ। 


जुलाई, 1921 ई० में एक प्रस्ताव द्वारा खिलाफ़त आंदोलन ने यह घोषणा की कि कोई मुसलमान ब्रिटिश भारत को सेना में भर्ती हो। सरकार ने राजद्रोह का आरोप लगाकर अली बँधुओं को गिरफ्तार कर लिया। गाँधी जी ने सरकार के इस निर्णय की घोर आलोचना की तथा लोगों से आह्वान किया कि इस प्रस्ताव को सैंकड़ों सभाओं में पढ़कर सुनाया


खिलाफत आंदोलन का अंत


फरवरी, 1922 ई० में चौरी-चौरा की घटना के कारण महात्मा गाँधी ने असहयोग आंदोलन को स्थगित करने की घोषणा की। इस निर्णय से खिलाफ़त आंदोलन को धक्का पहुँचा क्योंकि दोनों आंदोलन संयुक्त रूप से चलाए जा रहे थे। खिलाफ़त का प्रश्न भी बहुत जल्द अप्रासंगिक हो गया। तुर्की की जनता ने मुस्तफा कमाल पाशा के नेतृत्व में तुर्की के सुल्तान को नवंबर, 1922 ई० में सत्ता से वंचित कर दिया। मार्च, 1924 ई० में खिलाफ़त (खलीफ़ा के पद) को समाप्त कर दिया गया।


इन कारणों से भारत में चल रहा खिलाफ़त आंदोलन भी अपने आप समाप्त हो गया। डॉक्टर ए० सी० बैनर्जी के शब्दों में, खिलाफ़त आंदोलन भारतीय मुसलमानों के लिए लाभकारी सिद्ध नहीं हुआ क्योंकि यह ब्रिटेन को तुर्की के खलीफ़ा के लिए कोई रियायत देने के लिए मजबूर कर सका। 1922-24 में यह स्पष्ट हो गया कि वह केवल एक परछाईं के लिए लड़ रहे हैं क्योंकि तुर्की के मुसलमानों ने खिलाफ़त को समाप्त कर दिया था तथा अरब निवासी खामोश रहे

 

Rakesh Kumar

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