चंबा जिला हिमाचल प्रदेश का एक रमणीय दृश्य वाला जिला है जहां चंबा का रोमाँचक इतिहास है वहीँ चंबा जिले में स्वादिस्ट व्यंजनों का सेवन किया जाता है। चंबा जिले क लोगों द्वारा विभिन्न स्वादिस्ट भोजन का सेवन किया जाता है इसमें कुछ भोजन वेजिटेरिअन हैं और कुछ वेजिटेरिअन हैं जैसे मधरा, बबरू, घडोरी रोटी, कढ़ी, चीले चरोडी आदि .
आइये आपके सामान्य ज्ञान के लिए चंबा जिले के कुछ प्रसिद्ध भोजन के बारे में जानने की कोशिश करते हैं जो यहाँ के लोगों द्वारा सेवन किये जाते हैं अगर आप चंबा आते हैं तो इन व्यंजनों का सेवन कर सकते हैं।
चमयाली धाम भी हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले का प्रसिद्ध भोजन है। धाम उसको कहते हैं जब किसी भी समारोह में लोग इकट्ठे बैठकर अलग अलग व्यंजनों का सेवन करते हैं। चमयाली धाम हिमाचल में ही नहीं पुरे भारत में प्रसिद्ध है।
तड़के हुए चावल भी चंबा जिले के लोगों का मनपसंद भोजन है। तुड़के हुए चावल ज्यादातर तब बनाये जाते हैं जब चंबा जिले में सैर पड़ा होता अर्थात फसल की कटाई और घास की कटाई लगभग इकट्ठी होती है ,इस समय लोग काम से थके होते हैं और समय की कमी के कारण चावल में न्यूट्री या आलू डालकर तड़के हुए चावल बनाते हैं जिससे समय की बचत होती है। चंबा जिले में तड़के हुए चावल अगर किसी समारोह या अथिति के लिए बनाये जाते हैं तो इस डिश को स्वादिष्ट बनाने के लिए इसमें और भी कुछ मिक्स किया जाता है जैसे गोभी आदि।
जहां चंबा के लोग एक तरफ वेजिटेरिअन हैं वहीँ दूसरी तरफ नॉन वेजिटेरिअन भी हैं जो गोस्त का सेवन करते हैं। चंबा के हर क्षेत्र में लगभग नॉन वेजिटेरिअन लोग देखने को मिलते हैं। जब भी चंबा में नॉन वेज आइटम बनाई जाती है तो उसको बनाने के तरीका अलग है। पांगी भरमौर जैसे दुर्गम इलाके में जहां लगभग आठ महीने वर्फ रहती है वहां के लोगों दूसरा मीट का सेवन लगभग किया ही जाता है और वे अपने तरीके से चिकन या फिर गोस्त बनाते हैं। कहीं कहीं चंबा जिले में गोस्त बनाने के लिए छाछ का इस्तेमाल किया जाता है।
5. कनक और मक्की के आटे से बने लड्डू या सिड्डू:
चंबा जिले में कनक या मक्की के आटे से लड्डू बनाये जाते हैं जो यहाँ के लोग बड़े ही स्वाद से खाते हैं। मक्की के आटे के लड्डू या सिडु चमयाली धाम में बनाये जाते हैं और इसका सेवन कढ़ी की साथ किया जाता है। अगर कनक के लड्डू की बात करें तो ये समारोह में नहीं बनाये जाते हैं पर आमतौर पर ये घरों में बनाये जाते हैं और माह की दल के साथ इसका सेवन किया जाता है। कनक के आटे से बने लड्डू का सेवन सुबह नास्ते में भी किया जाता है। चंबा जिले में नास्ते को नुहारी कहा जाता है और कनक के लड्डू या सिडु का सेवन चाय के साथ या दूध के साथ किया जाता है।
कसरोड की बूटी जिसका साग बनाया जाता है।
चंबा का प्रसिद्ध भोजन क्या है?
1. राजमाह और चने से बना मधरा:
चंबा जिले में राजमाह और चने से बना हुआ एक व्यंजन है जिसे मधरा के नाम से जाना जाता है। कहीं ये मधरा राजमाह का बनाया जाता है और कहीं ये चने का भी बनाया जाता है। अगर चंबा जिले में कोई भी समारोह होता है समारोह छोटा हो या फिर बड़ा चम्बा जिले में मधरा जरूर बनाया जाता है। ऐसा समझ लिया जाये की मधरा बनाना चंबा जिले का एक कल्चर बन चूका है।
मधरा बनाने के लिए सबसे पहले घी में दहीं को भुना जाता है जब दहीं अच्छी तरह से भून लिया जाता है उसके बाद उसमें उबले हुए राजमांह या फिर चने डाल दिए जाते हैं। मधरा कुछ दिनों तक खराब नहीं होता है इसके पीछे कारण ये है कि उसमें पानी नहीं डाला जाता है। ये एक मसालेदार डिश है इसलिए ये बहुत कम खाया जाता है। मधरा जायदातर चम्बा जिले और काँगड़ा जिले में बनाया जाता है। मधरा चंबा का परम्परागत और सबसे पसंदीदा भोजन है।
2.चमयाली धाम:
चमयाली धाम भी हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले का प्रसिद्ध भोजन है। धाम उसको कहते हैं जब किसी भी समारोह में लोग इकट्ठे बैठकर अलग अलग व्यंजनों का सेवन करते हैं। चमयाली धाम हिमाचल में ही नहीं पुरे भारत में प्रसिद्ध है।
धाम में पांच किस्म के व्यंजनों का सेवन करवाया जाता है। सबसे पहले मधरा परोसा जाता है उसके बाद दाल परोसी जाती है दालें दो या तीन किस्म की हो सकती हैं। दाल परोसने के बाद कढ़ी परोसी जाती है जिसका सेवन लड्डू या सीडू के साथ किया जाता है जो मक्की के आटे के बने होते हैं। कढ़ी के बाद कट्टा परोसा जाता है जिसे महानी के नाम से जाना जाता है। चमयाली धाम की सबसे बड़ी विश्षेता ये है जब धाम लगती है तो इसे प्लाटों में नहीं परोसा जाता है धाम का सेवन पत्तलों में किया जाता है जो पत्तों की बनी होती हैं।
चमयाली धाम प्लेट में परोसी हुई।
चमयाली धाम प्लेट में परोसी हुई।
3. तुड़के हुए चावल :
तड़के हुए चावल भी चंबा जिले के लोगों का मनपसंद भोजन है। तुड़के हुए चावल ज्यादातर तब बनाये जाते हैं जब चंबा जिले में सैर पड़ा होता अर्थात फसल की कटाई और घास की कटाई लगभग इकट्ठी होती है ,इस समय लोग काम से थके होते हैं और समय की कमी के कारण चावल में न्यूट्री या आलू डालकर तड़के हुए चावल बनाते हैं जिससे समय की बचत होती है। चंबा जिले में तड़के हुए चावल अगर किसी समारोह या अथिति के लिए बनाये जाते हैं तो इस डिश को स्वादिष्ट बनाने के लिए इसमें और भी कुछ मिक्स किया जाता है जैसे गोभी आदि।
शार्ट में तुड़के हुए चावल को जीरा राइस भी कहा जाता है। तुड़किया भात हिमाचल प्रदेश का एक परंपरागत पुलाव व्यंजन है, जिसे स्थानीय लोग अपनी अपनी विशेष शैली में तैयार करते हैं। इस डिश को खास बनाने वाले तत्वों में दाल, आलू और दही के साथ भारतीय मसाले, प्याज, टमाटर, लहसुन, दालचीनी और इलायची शामिल होते हैं। इन सामग्रियों के संयोजन से यह डिश स्वादिष्ट होती है और आपको इसकी खुशबू से मुँह में पानी आ जाएगा।
4. छाछ से बने कुछ नॉन वेज व्यंजन:
4. छाछ से बने कुछ नॉन वेज व्यंजन:
जहां चंबा के लोग एक तरफ वेजिटेरिअन हैं वहीँ दूसरी तरफ नॉन वेजिटेरिअन भी हैं जो गोस्त का सेवन करते हैं। चंबा के हर क्षेत्र में लगभग नॉन वेजिटेरिअन लोग देखने को मिलते हैं। जब भी चंबा में नॉन वेज आइटम बनाई जाती है तो उसको बनाने के तरीका अलग है। पांगी भरमौर जैसे दुर्गम इलाके में जहां लगभग आठ महीने वर्फ रहती है वहां के लोगों दूसरा मीट का सेवन लगभग किया ही जाता है और वे अपने तरीके से चिकन या फिर गोस्त बनाते हैं। कहीं कहीं चंबा जिले में गोस्त बनाने के लिए छाछ का इस्तेमाल किया जाता है।
5. कनक और मक्की के आटे से बने लड्डू या सिड्डू:
चंबा जिले में कनक या मक्की के आटे से लड्डू बनाये जाते हैं जो यहाँ के लोग बड़े ही स्वाद से खाते हैं। मक्की के आटे के लड्डू या सिडु चमयाली धाम में बनाये जाते हैं और इसका सेवन कढ़ी की साथ किया जाता है। अगर कनक के लड्डू की बात करें तो ये समारोह में नहीं बनाये जाते हैं पर आमतौर पर ये घरों में बनाये जाते हैं और माह की दल के साथ इसका सेवन किया जाता है। कनक के आटे से बने लड्डू का सेवन सुबह नास्ते में भी किया जाता है। चंबा जिले में नास्ते को नुहारी कहा जाता है और कनक के लड्डू या सिडु का सेवन चाय के साथ या दूध के साथ किया जाता है।
गेहूं का आटा 4-5 घंटे के लिए ठहरने के लिए छोड़ दिया जाता है ताकि खमीर सक्रिय हो सके। तैयार आटे में तेल डाला जाता है और उसे सीधी आग पर आंच से हल्का सेंककर उसे भाप में पकाया जाता है ताकि सामग्री के स्वाद और पोषणीय मूल्य को संरक्षित किया जा सके।
6. कनक से बने बबरू:
हिमाचल के चंबा जिले में बबरू एक प्रसिद्ध भोजन है जो कनक के आटे के बनायें जाते हैं। बबरू बनाने के लिए कनक के आटे में बेकिंग सोडा मिक्स किया जाता है और उसे कुछ समय के लिए रखा जाता है जिसे तरकेना कहते हैं और उसके बाद में बंद टाइप बनाये जाते हैं। बनाये हुए बबरू से ढक दिया जाता है ताकि वे फूल जाएँ। जब ये फूल जाते हैं तो एक दो घंटे के बाद उन्हें गर्म तेल में तला जाता है और बबरू तैयार होते हैं।
चंबा में पहले बबरू अकसर विवाह और शादियों में बनाया करते थे। जब विवाह में सुबह ब्रेकफास्ट किया जाता था जिसे चमयाली भाषा में नुहारी कहते हैं बबरू परोसे जाते थे। हालाँकि आज भी अक्सर चंबा में बबरू का पकाना पकाया जाता है। बबरू खाने में स्वादिस्ट होते हैं।
7. एहनी का साग और मक्की की रोटी :
अक्सर आप जानते ही होंगे जहां पंजाब और अन्य क्षेत्र में सरसों का साग और मक्की की रोटी बहुत मशहूर हैं वहीँ चंबा जिले में एहनी का साग और मक्की की रोटी बहुत प्रसिद्ध है जिसका सेवन शर्दियों में किया जाता है। "एहनी का साल कने कुकड़ी री रोटी" चंबा जिले में मक्की की रोटी को कुकड़ी की रोटी कहा जाता है। एहन हिमाचल में पाई जाने वाली एक बूटी है जिसको बिच्छू बूटी भी कहा जाता है।
बिच्छू बूटी इसे इसलिए कहा जाता है क्यों की इसके साथ छोटे छोटे कांटे होते हैं और अगर शरीर के किसी भी हिस्से में लग जाएँ तो बहुत जलन पैदा करते हैं। पर जब इसे पकाया जाता है तो ये खत्म हो जाते हैं। एहनी का साग हमेशा शर्दियों में परोसा जाता है गर्मियों में इसका इस्तेमाल नहीं किया जाता है।
एहन की बूटी साग बनाया जाता है।
एहन की बूटी साग बनाया जाता है।
8. कसरोड की सब्जी :
चंबा जिले में कई जडी बुड़ियाँ पाई जाती हैं इसमें कुछ खाने वाली हैं और कुछ खाने लाइक नहीं होती हैं। चम्बा के पहाड़ी लोगों द्वारा कसरोड नामक सब्जी का इस्तेमाल और सेवन किया जाता है जो अक्सर नमी वाले क्षेत्रों में पाई जाती है या फिर नाले वाले क्षेत्रों में पाई जाती है। कसरोड का अचार भी डाला जाता है। कसारोड की सब्जी खाने में स्वादिस्ट होती है और इसमें ज्यादा तड़के की जरूरत नहीं पड़ती है। कसरोड अक्सर भूरे रंग की होती है।
चंबा जिले में कई जडी बुड़ियाँ पाई जाती हैं इसमें कुछ खाने वाली हैं और कुछ खाने लाइक नहीं होती हैं। चम्बा के पहाड़ी लोगों द्वारा कसरोड नामक सब्जी का इस्तेमाल और सेवन किया जाता है जो अक्सर नमी वाले क्षेत्रों में पाई जाती है या फिर नाले वाले क्षेत्रों में पाई जाती है। कसरोड का अचार भी डाला जाता है। कसारोड की सब्जी खाने में स्वादिस्ट होती है और इसमें ज्यादा तड़के की जरूरत नहीं पड़ती है। कसरोड अक्सर भूरे रंग की होती है।
इससे मिलती जुलती और भी बूटी होती है जिसका सेवन नहीं किया जाता है जो जगलों में कसरोड लगती है उसकी पहचान वहां के लोकल लोग ही क्र सकते हैं। कसरोड चंबा में ही नहीं पुरे भारत में प्रसिद्ध है जिसे लिंगड़ के नाम से जाना जाता है और काफी महंगी होती है जो हिमाचल प्रदेश अन्य राज्यों जैसे उत्तराखण्ड में एग्रीकल्चर फ़ार्म हॉअस में उगाई जाती है। कसरोड चंबा के पहाड़ी लोगों का पसंदीदा और प्रसिद्ध भोजन है।
कसरोड की बूटी जिसका साग बनाया जाता है।
9. फगुडी और कराई की सब्जी :
चंबा में नहीं पुरे हिमाचल में एक वृक्ष है जिसका नाम फगुडा है जिसके साथ काले फल लगते हैं जिसका सेवन किया जाता है। ये पहले हरे रंग के होते हैं और बाद में काले रंग के हो जाते हैं जब ये काले रंग के हो जाते हैं तो इसका सेवन बच्चों आओर बड़ों द्वारा किया जाता है। फागुड़े के साथ फागुड़ी होती है जब मार्च अप्रैल में बसंत आती है तो इसके साथ हल्के फल लगते हैं जिसे फगुडी कहा जाता है।
इसे निकालकर और गर्म पानी में उबालकर फिर निचोड़कर सब्जी बनाई जाती है।
इसी के साथ अप्रैल कराई की सब्जी एक बृक्ष के साथ लगती है उसका भी सेवन चंबा के लोगों द्वारा किया जाता है। दोनों भोजन खाने में स्वादिस्ट होते हैं पर इसको बनाने के लिए तड़का या तेल की जरूरत ज्यादा होती है।
10. महानी या खट्टा :
महानी या खट्टा भी चंबा के लोगों का पसंदीदा भोजन है जो अक्सर समारोह जैसे शादी,जट्टू या फिर अन्य छोटे समारोह में जरूर बनाया जाता है। जहां हिमाचल के अन्य क्षेत्रों में महानी कद्दु को मिलाकर बनाया जाता है वहीँ चंबा जिले में आम के सुखाये हुए पपड़ियों से बनाया जाता है। विवाह शादियों में महानी या खट्टे को बाद में परोसा जाता है क्योकि लोकल लोगों का मानना है कि इससे धाम जल्दी पच जाती है। महानी या खट्टा भी चंबा पसंदीदा भोजन है।