क्रांतिकारी राजगुरु जीवन परिचय | Rajguru Biography in Hindi

भारत जब से गुलाम हुआ उसके बाद भारत की आजादी के लिए कई क्रांतिकारियों ने अपनी जान की बाजी लगाई। कुछ क्रन्तिकारी गोलियों का शिकार हुए और कुछ को फांसी की सजा सुनाई गई। इस सभी में से एक हैं जिन्होंने भारत की आजादी के लिए अपने प्राण तक न्योछावर कर दिए उनका नाम है राजगुरु। राजगुरु एक ऐसे क्रांतिकारी थे जिनको 22 वर्ष की आयु में मौत की सजा सुनाई गई थी। आईये "GK Pustak" में जानते हैं राजगुरु के जीवन, परिवार ,शिक्षा और क्रांतिकारी गतिविधियों के बारे में, क्या था उनका इतिहास।

क्रांतिकारी राजगुरु जीवन परिचय | जन्म | परिवार | शिक्षा | क्रांतिकारी गतिविधियां | देश के लिए शहादत
24 August 1908 - 23 March 1931


क्रांतिकारी राजगुरु जीवन परिचय | Biography of Rajguru in Hindi
  • राजगुरु का पूरा नाम --- शिवराम हरि राजगुरु जन्म स्थान --- पुणे, महाराष्ट्र, ब्रिटिश भारत
  • जन्म तारीख --- 24 अगस्त सन 1908 उप नाम --- रघुनाथ
  • पिता का नाम --- हरि नारायण माता का नाम --- पार्वती बाई
  • नागरिकता --- भारतीय धर्म --- हिन्दू
  • भाई का नाम --- दिनकर, बड़ा भाई बहनों का नाम --- चन्द्रभागा, वारिणी और गोदावरी
  • फांसी की तिथि --- 23 मार्च सन 1931 किस उम्र में फांसी दी गई --- 22 वर्ष में
  • फांसी के वक्त उम्र --- 22 साल 6 महीने फांसी का स्थान --- लाहौर, ब्रिटिश भारत, अब पंजाब, पाकिस्तान
शिवराम हरि राजगुरु का जन्म और परिवार | Birth and Family of Shivram Hari
Rajguru राजगुरु क्रांतिकारी का जन्म भारत के महाराष्ट्र राज्य में में एक मराठी परिवार में हुआ था। उनका जन्म 24 अगस्त सन 1908 में हुआ था। वे एक मराठा ब्राह्मण परिवार से संबंध रखते थे। उनका परिवार साधारण और मध्यवर्गीय परिवार से था। शिवराम हरि राजगुरु के पिता जी का नाम हरिनारायण राजगुरु और माता जी का नाम पार्वती देवी था। उनकी माता जी एक धार्मिक विचारों वाली थी जहां पर राजगुरु जी का जन्म हुआ था उस गांव का नाम खेड़ था और ये गांव आज भी भीमा नदी के तट पर स्थित है। 

राजगुरु का पूरा जीवन अपने पैतृक गांव में बीता। उनके पिता जी ने दो शादियां की थी। राजगुरु के कुल पांच भाई बहन थे। बचपन से नई राजगुरु को दुखो को झेलना पड़ा किउंकि जब वे मात्र 6 साल के थे तो उनके पिता जी का देहांत हो गया। और उसके बाद उनके बड़े भाई ने उनका पालन पोषण किया। उनके बड़े बड़े भाई ने उन्हें बड़े ही प्यार से पाला और उनसे बहुत प्यार करते थे उनके भाई का नाम दिनकर था जिन्होंने ने उन्हें पाला था।

राजगुरु की शिक्षा दीक्षा | Rajguru's education initiation 

राजगुरु की आरंभिक शिक्षा उनके पैतृक गांव में ही पूरी हुई। जब वे 6 साल के थे तो उनका दाखला उनके पिता जी ने प्राथमिक स्कूल खेड़ में करवा दिया। अपनी प्रारम्भिक शिक्षा में वे हमेशा अपने दोस्तों के साथ ज्ञान की बातें किया करते थे। हिंदी और मराठी भाषा के साथ उन्हें संस्कृत भाषा का बहुत ज्ञान था। वे हमेशा संस्कृत के श्लोक अपने दोस्तों के साथ सुनाते रहते थे। अपनी माध्यमिक शिक्षा का सफर पूरा करने के बाद उन्होंने महाराष्ट्र के पूना हाई स्कूल में दाखिला लिया। जब वे हाई स्कूल में पढ़ते थे तो उनके अंदर क्रन्तिकारी गतविधियों का आगमन हो चूका था। छोटी सी उम्र में उन्होंने महाराष्ट्र के सेवा दल में भाग लिया और क्रांतिकारियों के साथ शिविरों में भाग लेना शुरू कर दिया। 

कैसे बने राजगुरु क्रन्तिकारी ? | How Rajguru became a revolutionary ? 

जब राजगुरु हाई स्कूल की शिक्षा ग्रहण कर रहे थे तो देश में क्रांतिकारी गतिविधियां जोरों पर थी। वे हर घटना क्रम और क्रांतिकारी गतिविधियों पर नजर रखते थे। उनकी मुलाकात कुछ क्रांतिकारियों से हुई। राजगुरु के साथ मुलकात से उन्होंने ये अनुभव किया कि अगर वे देश के लिए लड़ रहे हैं तो हम देश के लिए कुर्बान नहीं हो सकते। आजादी की आग को लेकर उन्होंने भी ये मन में सोच लिया की वे भारत को आजाद करवाने के लिए संघर्ष करेंगे। उन्होंने सबसे पहले 1924 में हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन को ज्वाइन करने का फैसला किया ताकि वे आजादी का पहला पायदान चढ़ सकें। 

हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन का ऐसा क्रांतिकारी संगठन था जिसका मकसद देश को क्रांति के बल पर आजाद करवाना था। वे जब पहली बार भगत सिंह, सुखदेव, करतार सिंह सराबा और चंद्रशेखर जैसे क्रांतिकारियों से मिले तो उनसे बहुत प्रभावित हुए। हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन ने उन्हें भारत के पंजाब, लाहौर और कानपूर में प्रचार के लिए नियुक्त किया। राजगुरु ने घर- घर जाकर युवाओं को इस संगठन से जोड़ने का काम किया। भगत सिंह, सुखदेव और चंद्रशेखर जब भी क्रांति की बात होती तो इकठे रहते थे इसलिए उनकी आपस में घनिष्ट मित्रता हो गई। इन्ही मित्रों के कारण उनके अंदर क्रांति और आजादी के सघर्ष के लिए ज्वाला और ज्यादा प्रज्वलित हो गई।

लाला लाजपत राय पर लाठी चार्ज और राजगुरु | Lala Lajpat Rai was lathi charge and Rajguru 

ये बात तो आप भी जानते होंगे कि ब्रिटिश इष्ट इण्डिया कंपनी ने 1928 में एक कमीशन नियुक्ति की थी जसका नाम "साइमन कमीशन" था। इस कमीशन को भारत में इसलिए नियुक्त किया गया था ताकि भारत में राजनीतिक सुधार किये जा सकें। इस कमीशन में 8 मेंबर नयुक्त किये गए थे जिनमे कोई भी भारतीय नहीं था इसलिए इस बात को लेकर पुरे देश में रोष का मुहाल था। राजगुरु लाल, बाल और पाल के आदर्शों की कदर करते थे। 

जब लाला लाजपतराय ने इस कमीशन का विरोध किया तो अंग्रेजी सरकार ने लाला लाजपतराय पर गंभीर लाठी चार्ज किया और उस लाठी चार्ज के कारण ही लाला जी की मौत हो गई। इससे राजगुरु के दिल में बहुत आघात पहुंचा और राजगुरु ने अपने साथियों भगत सिंह, सुखदेव, गोपाल और सुभाष चंद्र के साथ मिलकर लाला लाजपतराय के हत्यारे जेम्स ए स्कॉट को मारने का दृढ संकल्प अपने मन में कर लिया। जेम्स ए स्कॉट इस वक्त एक पुलिस अधीक्षक थे और उन्ही के आदेश के कारण लाला लाजपतराय की मृत्यु हुई थी। 

राजगुरु और साथियों की बदले की योजना | Revenge plan of Rajguru and companions)

लाला लजपतऱये की मौत का बदला क्रन्तिकारी संगठन लेना चाहता था। राजगुरु के उनके साथी भगत सिंह, सुखदेव, चंद्रशेखर और गोपाल थे। पहले चंद्र शेखर ने ऐसा करने से इंकार कर दिया पर बाद में वे भी इस अभियान में उनके साथ जुड़ गए। इस पुरे मिशन को अंजाम देने के लिए 17 दिसम्बर 1928 का दिन नियुक्त किया गया। उनकी योजना के मुताबिक गोपाल को स्कॉट की पहचान के लिए नियुक्त किया गया। गोपाल साइकल पर ऐसे बैठ गए जैसे उनका साइकल ख़राब हो। राजगुरु भी इसी मुद्रा में वहाँ पर टहलते रहे। 

गोपाल को ये आदेश दिया गया था कि जब भी स्कॉट बहार निकलते हैं राजगुरु की तरफ इशारा किया जाये और राजगुरु उन्हें गोली मार देंगे। भगत सिंह और सुखदेव दोनों राजगुरु को बैक अप कर रहे थे। चन्दर शेखर आजाद भी एक स्कूल के पास स्कॉट के आने का इन्तजार कर रहे थे। जैसे ही स्कॉट बहार निकले गोपाल ने इशारा किया और राजगुरु ने गोलियां चलाई और अंग्रेज अधिकारी की हत्या कर दी। पर इस मिशन में ये गलती हुई कि जिस अंग्रेज अधिकारी की तरफ गोपाल ने इशारा किया वे लाला लाजपतराय का हत्यारा नहीं पर सहायक आयुक्त जॉन पी सॉन्डर्स थे।

कैसे भागे राजगुरु लाहौर से | How did Rajguru escape from Lahore? अंग्रेज अधिकारी की हत्या के बाद पुरे भारत में अंग्रेजों ने भगत सिंह राजगुरु और सुखदेव को पकड़ने के लिए अपना अभियान शुरु कर दिया। उन्होंने लाहौर से बच निकलने की योजना बनाई। और इस रणनीति को सफल बनाने में उनका साथ एक महिला ने दिया जिसका नाम दुर्गा देवी था। दुर्गा देवी उनकी मदद इसलिए करना चाहती थी किउंकि वह आप एक क्रन्तिकारी की पत्नी थी जिसका नाम चरण भगवती था। 

भगत सिंह रात को ही अपना वेश बदल लिया और उनके साथ उनके साथियों ने भी अपने वेश में बदलाव किया। लाहौर से भागने के लिए हावड़ा ट्रैन को चुना गया। दूसरे दिन जब ट्रैन आयी दोनों ही वोहरा परिवार के साथ वहां से निकले। ट्रैन जब लखनऊ पहुंची राजगुरु ने वनारस जाने का फैसला किया और भगत सिंह आगे के लिए रवाना हो गए। 

कहां से पकड़े गए राजगुरु ? | (From where was Rajguru caught?) 

लाहौर से वापिस आकर कुछ समय के लिए उत्तर प्रदेश के लखनऊ शहर में रहे। उन्होंने अपने आप अंग्रेजों की छापेमारी से बचने के लिए उत्तर प्रदेश छोड़ने का फैसला किया और वे उत्तर प्रदेश से नागपुर के लिए रवाना हो गए। राजगुरु ने नागपुर में RSS के कर्यालय में कुछ दिनों के लिए शरण ली। कुछ समय पश्चात राजगुरु ने पुणे की और रुख किया। जब उन्होंने 30 सितम्बर को नागपुर से पुणे जाने की योजना बनाई तो रास्ते में अंग्रेजी पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया और उनके साथ उनके साथी भी गिरफ्तार कर लिए गए। राजगुरु,सुखदेव और भगत सिंह को लाहौर जेल में बंद कर दिया गया। 

22 वर्षीय राजगुरु का शहीदी दिवस | Martyrdom day of 22 year old Rajguru ( Death) 

राजगुरु को अंग्रेज अधिकारी के जुर्म में दोषी पाया गया और 14 फरवरी को तीनों को फांसी की सजा का फैसला सुनाया गया। तीनो की सजा का एलान 14 को किया गया था और फांसी की सजा का दिन 23 मार्च मुकर्र किया गया। 23 मार्च 1931 को तीनों क्रांतकारियों को लाहौर जेल में फांसी पर लटका दिया गया। जब 14 का दिन होता है तो और भी कई महत्व पूर्ण दिवस होते हैं पर कौन देश के ऐसे लोग हैं जो 14 फरवरी के दिन को याद करते हैं। किउंकि इसी दिन कोर्ट ने इनकी सजा का फैसला किया था। ऐसे क्रांतिकारियों को हमें दिल से नमन करना चाहिए जो "मेरा रंग दे बसंती चोला" कहते कहते हँसते हँसते फांसी पर लटक गए।

 


Rakesh Kumar

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