सबसे पहले उनके अंदर उनके परिवार से क्रांतिकारी गतिवधियां पैदा हुई जब उन्होंने ने देखा कि उनके चाचा जी जिनका नाम अजित सिंह था को ब्रिटिश सरकार बहुत परेशान कर रही है वे एक बहुत बड़े स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के रूप में जाने जाते थे और उन्होंने भारतीय देशभक्ति एसोसिएशन का निर्माण भी किया था। उनके चाचा क्रांति की आग भड़काई थी उसके लिए उन्हें जेल में भी जाना पड़ा और उनके ऊपर 22 केस दर्ज दर्ज किये गए थे और इन्ही कारणों से उन्हें ईरान की और रुख करना पड़ा। इससे भगत सिंह बहुत दुखी थे।
भगत सिंह जी जो 1919 में अमृतसर में जलियांवाला बाग हत्याकांड हुआ उससे भी बहुत दुखी थे कभी कभी तो वे अंग्रेजी राज्य को अकेले ही ललकार दिया करते थे। उनके पिता महात्मा गाँधी के समर्थक थे इसलिए भगत सिंह जी ने महात्मा गाँधी दुआरा चलाये असहयोग आन्दोलन का भी भरपूर साथ दिया। पर वे महात्मा गाँधी की शांति की क्रांति से थोड़ा नाराज थे। 1922 में जो चोरा चोरी काण्ड हुआ उसके अंदर हिंसा हुई थी और उस हिंसा से दुखी होकर महात्मा गाँधी ने अपना आंदोलन वापस ले लिया इससे भगत सिंह और दुखी हुए और दूसरी पार्टी ज्वाइन करने के बारे में सोच लिया।
भगत सिंह ने कैसे लिया लाला लाजपतराय की मौत का बदला ? | How did Bhagat Singh avenge the death of Lala Lajpat Rai ?
1928 में पुरे भारत में साइमन कमीशन का विरोध हो रहा था भयानक प्रदर्शन हो रहे थे और अंग्रेजी सरकार ने इसको रोकने के लिए लाठी चार्ज कर दिया। इस विरोध में लाला लाजपतराय भी शामिल थे अंग्रेजी सरकार ने लाला लाज पतराये को रोकने के लिए उन पर भारी लाठी चार्ज किया इससे लाला जी की मौत हो गई और उन्होंने ये कहा की मेरे शरीर पर एक एक लाठी अंग्रजी सरकार के लिए कील का काम करेगी।
इससे भगत सिंह के मन में आघात पहुंचा और उन्होंने अपने साथियो के साथ मिलकर इसका बदला लेने की ठानी उनके साथ चन्द्रशेखर आज़ाद, राजगुरु और सुखदेव शामिल थे। उन्होंने पूरी योजना बनाई। योजना के अनुसार भगत सिंह और राजगुरु लाहौर कोतवाली के सामने ऐसे घूमने लगे कि वे किसी काम में व्यस्त हैं। जयगोपाल अपनी साईकल के साथ ऐसे व्यस्त हो गए जैसे वे खराब हो। चन्द्रशेखर आज़ाद एक स्कूल में चिप कर पहरेदार का काम कर रहे थे और घटना को अंजाम देने के लिए त्यार थे।
17 दिसंबर 1928 को ए० एस० पी० सॉण्डर्स जैसे ही वहां से निकले राजगुरु ने उनपर गोली मर दी और ए० एस० पी० सॉण्डर्स अपनी होश खो बैठे इसके बाद भगत सिंह ने आगे बढ़कर 4 गोलियां उनके ऊपर दाग दी और अपना प्रतिशोध लिया। ए० एस० पी० सॉण्डर्स की मोके पर ही मौत हो गई।
भगत सिंह ने अंग्रेजी सरकार के कान कैसे खोले ? How did Bhagat Singh open the ears of the British government ?
कुछ लोगों का सोचना ये था कि भगत सिंह एक उग्रवादी थे पर भगत सिंह किसी भी खून खराबे के खिलाफ थे वे ये ही चाहते थे कि आजादी की लड़ाई की आवाज सोई हुई अंग्रेजी सरकार के कानों में कैसे पहुंचे इसकिये उन्होंने केन्द्रीय असेम्बली में बम फेंकने की योजना बनाई। इस घटना को अंजाम दें के लिए भगत सिंह तथा बटुकेश्वर दत्त के नाम को चुना गया।
8 अप्रैल, 1929 को भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने केन्द्रीय असेम्बली में में बम फेंका। उन्होंने बम उस जगह फेंका जहां जगह खाली थी। बम फेंककर वे दोनों वहां से भागे नहीं और नारे लगते वहां पर खड़े रहे। उनको गिरफ्दार कर लिया गया।
भगत सिंह की जेल की जिंदगी | Bhagat Singh's prison life
बम फेंकने के आरोप में भगत सिंह जी को जेल भेज दिया गया जेल में कर उन्होंने अपने अंदर क्रांति की भावना को मिटने नहीं दिया और वे ऐसे लेख लिखते रहे जिससे उनके अंदर आजादी की लड़ाई के लिए जज्जबा ख़तम न हो। वे हमेशा पूँजीपतियों के कटटर शत्रु थे और मार्कवाद के समर्थक थे इसलिए वे जेल में मजदूरों के लिए भी लेख लिखते थे उन्होंने अपने रिश्तेदारों और दोस्तों को पत्र लिखे। भगत सिंह अंग्रेजी, पंजाबी उर्दू अच्छी तरह जानते थे.
इसलिए उन्होंने जेल में अंग्रेजी में "मैं नास्तिक क्यों हूँ ?" शीर्षक से एक लेख भी लिखा था। शहीद भगत सिंह ने जेल में रहते हुए के एक डायरी लिखी थी और उस डायरी के पेज नंबर 43 में मानव जाति और मानव के बारे में एक सुन्दर लेख लिखा था इससे पता चलता है वे मानवता के प्रेमी थे। हम आपको बता दें कि ये लेख अभी भगत सिंह के पौत्र बाबर सिंह के पुत्र यादविंद्र ने संभाल कर रखा हुआ है।
जेल के दौरान अंग्रेजी सरकार के जुर्म क वे सहन नहीं करते थे और उन्होंने वहाँ पर भी भूख हड़ताल की थी ये भूख हड़ताल लगभग 64 दिन चली और इस भूख हड़ताल में उनके एक साथी की मौत भी हो गई जिसका नाम यतीन्द्रनाथ दास था भगत सिंह जी लगभग 2 साल जेल में रहे।
भगत सिंह का शहीद होना / भगत सिंह जी को फांसी | Bhagat Singh's martyrdom | Death
भगत सिंह और उनके दो साथियों को लाहौर जेल में बंद किया गया था जब उनको फांसी के लिए ले जाया गया तब वे किताब पढ़ रहे थे। 23 मार्च 1931 को भगत सिंह को लाहौर जेल में उनके साथी राजगुरु और सुखदेव को फांसी के लिए ले जाया गया। और उनके साथी "मेरा रंग दे बसंती चोला" के साथ उनको होंसला दे रहे थे। जब उन्हें फांसी के तख्ते के नजदीक ले जाया गया तो तीनो ने एक दूसरे की तरफ देखा और फांसी के फंदे को चुम लिया।
23 मार्च 1931 को सुबह 7:30 बजे भगत सिंह को लाहौर जेल में उनके साथी राजगुरु और सुखदेव के साथ फांसी दी गई थी। । इस तरह भारत का एक वीर सपूत युवाओं के लिए 23 साल में ही गुलामी न सहने का संदेश दे कर गया। आज भी भगत सिंह के इस बलिदान को कौन भूल सकता है। जब उनके शहीदी पार्थिव शरीर को वहां से ले जाया जा रहा था तो उनके साथी “इंकलाब जिंदाबाद” का नारा लगा रहे थे।
वैसे तो भगत सिंह ने भगवान्, मानवता, जीवन, देश, क्रांति और गुलामी के ऊपर अपने विचार दिए हैं पर हम कुछ नीचे भगत सिंह के बारे में कुछ अनमोल वचन दे रहे हैं जो नौजवान व्यक्ति को Inspire करेंगे।
भगत सिंह के अनमोल वचन | Best Quotation and Slogans of Bhagat Singh
"विद्रोह कोई क्रांति नहीं है। यह अंततः अंत तक पूरा करने वाला कार्य है।"
"मुझे अपना बचाव करने की कभी कोई इच्छा नहीं थी, और न ही मैंने इसके बारे में गंभीरता से सोचा।"
"मैं खुशी-खुशी फांसी के फंदे पर चढ़ूंगा और दुनिया को दिखाऊंगा कि क्रांतिकारी कितनी बहादुरी से इस उद्देश्य के लिए अपना बलिदान दे सकते हैं।"
"यह समय शादी करने का नहीं है। मेरा देश मुझे बुला रहा है। मैंने अपने दिल और आत्मा से देश की सेवा करने का संकल्प लिया है।"
"परमेश्वर में विश्वास करने वाला व्यक्ति अपने निजी घमंड के कारण किस प्रकार विश्वास करना बंद कर सकता है ?"
"क्रांति मानव जाति का एक अविभाज्य अधिकार है। स्वतंत्रता सभी का एक अविनाशी जन्म अधिकार है"
"मैं महत्वाकांक्षा और आशा और जीवन के आकर्षण से भरा हूं। लेकिन जरूरत के समय मैं सब कुछ त्याग सकता हूं'
"श्रम ही समाज का वास्तविक निर्वाहक है"
"लेकिन मनुष्य का कर्तव्य प्रयास करना और प्रयास करना है, सफलता अवसर और वातावरण पर निर्भर करती है।"
"दर्शन मानवीय कमजोरी या ज्ञान की सीमा का परिणाम है।"
"मैं एक इन्सान हूँ और जो भी चीजे इंसानियत पर प्रभाव डालती है मुझे उनसे फर्क पड़ता है।"
"प्रेमी, पागल और कवी एक ही थाली के चट्टे बट्टे होते है अर्थात सामान होते हैं।"
निष्कर्ष :- शहीद भगत सिंह एक महान पर नौजवान क्रन्तिकारी थे GK Pustak के माध्यम से हम इस आर्टिकल में "Shaheed Bhagat Biography" के माध्यम से ये निष्कर्ष निकालते हैं कि हर कोई आज भगत सिंह के आदर्शों और महान कार्यों पर चलना चाहता है पर जरूरत है आज के युवा पीढ़ी को कि छोटी सी उम्र में देश के लिए जीने का जज्बा सीखें, और जज्बा ऐसे हासिल नहीं होता कुछ अच्छे कार्य और देश के लिए क्रांति या क्रांतिकारी काम करने से ही हासिल हो सकता है क्रांति का दायरा बहुत बड़ा है अगर आप चाहें तो देश में गरीबों की सहायता कर के, देश में अत्याचारी गतिविधियों के खिलाफ आवाज उठाकर महान शहीद भगत सिंह जैसे महान कार्य क्र सकते हैं अगर आप भगत सिंह नहीं बन सकते तो देश के लिए अच्छे काम कर के एक महान व्यक्ति तो अवश्य बन सकते हो बस जरूरत है तो एक होंसले की लगे रहो।
शहीद भगत सिंह से जुड़े 10 महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर
प्रश्न : भगत सिंह का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
उत्तर : भगत सिंह का जन्म 27 सितंबर 1907 को पंजाब के बंगा में हुआ था।
प्रश्न : भगत सिंह के पिता का नाम क्या था?
उत्तर : भगत सिंह के पिता का नाम किशन सिंह था।
प्रश्न : भगत सिंह ने कब और कैसे अंग्रेज साम्राज्य के खिलाफ आंदोलन शुरू किया?
उत्तर : भगत सिंह ने 1928 में युवा हिंदुस्तान सभा की स्थापना की, जो अंग्रेज साम्राज्य के खिलाफ आंदोलन का केंद्र थी। उन्होंने यहां आग्रह पठाए और जब उन्हें नहीं सुना गया तो उन्होंने हिन्दी स्वराज के पक्ष में हड़ताल की घोषणा की।
प्रश्न : भगत सिंह ने किस आंदोलन में अपनी वीरगाथा रची थी?
उत्तर : भगत सिंह ने हिंदी स्वराज के पक्ष में हड़ताल के दौरान अपनी वीरगाथा 'क़ट्टर पन्थी जीवन' रची थी।
प्रश्न : भगत सिंह ने किस विद्यालय से अपनी पढ़ाई पूरी की थी?
उत्तर : भगत सिंह ने नगर विद्यालय, लाहौर से अपनी पढ़ाई पूरी की थी।
प्रश्न : भगत सिंह की शहादत कब हुई थी?
उत्तर : भगत सिंह की शहादत 23 मार्च 1931 को हुई थी।
प्रश्न : भगत सिंह ने किस वजह से फांसी की सजा पाई थी?
उत्तर :भगत सिंह ने लाहौर में हुए आयोजित हिन्दी स्वराज्य की जंग के दौरान जज जेएल किछलू ने अपनी हवस को बुझाने के लिए दलित जगत नारायण से धार्मिक आक्रोश देखा था, जिसके कारण उन्होंने उन्हें फांसी की सजा सुनाई।
प्रश्न : भगत सिंह के साथी शहीदों के नाम क्या थे?
उत्तर : भगत सिंह के साथी शहीदों के नाम सुखदेव और राजगुरु थे। तीनों को लाहौर में फांसी की सजा सुनाई गई।
प्रश्न : भगत सिंह की जीवनी पर कौनसी पुस्तक लिखी गई है?
उत्तर : भगत सिंह की जीवनी पर दीप्तीका के द्वारा लिखी गई "कठपुतली की आत्मकथा" नामक पुस्तक है।
प्रश्न ; भगत सिंह को भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों में किस उपाधि से याद किया जाता है?
उत्तर : भगत सिंह को भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों में "शहीद-ए-आजम" के नाम से याद किया जाता है।