शिमला के मेले और त्यौहार:
1. पुरग मेला :
ये मेला शिमला जिले के कोटखाई इलाके में मनाया जाता है।ये अप्रैल महीने में मनाया जाता है। ये मेला महादेव को समर्पित है। इस मेले में हिंदू धर्म के लोग भगवान शिव की पूजा अर्चना करते है। भगवान शिव की शिवजी की पिंडी को दूध चदया जाता है। लोग इस मेले में बड़े ही हर्षोउल्लाश से भाग लेते हैं।
2. फ़ाग मेला :
ये मेला भी शिमला का एक ज़िला स्तर का मेला है। ये मेला रामपुर में मनाया जाता है। ये मेला फागुन महीने में मनाया जाता है। जिला स्तरीय फाग मेले के दूसरे दिन देवता शनिवार को पूरे शहर की परिक्रमा कर लोगों को देते हैं।
मेले के पहले दिन देवी-देवताओं के आगमन के साथ देवलुओं ने खूब नाटी डाली जाती है। नेशनल हाईवे-5 में देवलुओं की नाटियों को देखने के लिए भीड़ का खूब जमावड़ा लगा रहता है। नाटियों का यह दौर तीन दिन तक जारी रहता है।
3. भैंसो का मेला :
ये मेला शिमला जिले के मशोबरा में मनाया जाता है। सितंबर महीने में इस मेले का आयोजन होता है। इसमें भैंस की नस्लों की अलग अलग प्रदर्शन की जाती है।
मशोबरा गाँव में एक दिवसीय भैंस मेले का आयोजन किया जाता है जहाँ स्थानीय निवासी अपनी अपनी भैंसों की विभिन्न नस्लों का प्रदर्शन करते हैं। पहले के समय में, मेले में भैंसों के बीच झगड़े शामिल थे, लेकिन हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा इस पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।
4. पत्थर का मेला:
ये मेला शिमला जिले के मशोबरा में मनाया जाता है। ये सितम्बर में मनाया जाता है। इसमें लोग एक दूसरे पर पत्थर फैलते है ये मेला काफी पुराना है। हिमाचल प्रदेश के शिमला जिला में दिवाली पर्व के अगले दिन अनोखी परंपराओं वाला पत्थर मेला धूमधाम से मनाया जाता है।
शिमला शहर से 26 किलोमीटर दूर धामी क्षेत्र में मनाए जाने वाले इस मेले की खासियत यह है कि यहां दो समुदाय के लोग एक दूसरे पर पत्थर मारते हैं।इस मेले में यह पत्थर मारने का दौर उस समय तक चलता रहता है जब तक कि दोनों तरफ से खेल में भाग लेने वाले लोगों में से किसी एक का सिर लहूलुहान न हो जाए।
जिस शख्स का सर लहू लुहान होता है उस शख्स का खून मां भीमा काली के मंदिर में चढ़ाया जाता हैं। इस पत्थर मेले में हजारों की संख्या में स्थानीय लोग सदियों से भाग लेते हैं और खुद को भाग्यशाली मानते हैं।
Note:- पत्थर के मेले की जानकारी सामान्य ज्ञान के लिए दी गई है इस तरह कोई कोशिश न करें।
5-. रोहड़ू मेला :
ये मेला शिमला जिले के रोहड़ू में मनाया जाता है। ये मेला शिमला जिले का राज्य स्तर का मेला है। ये मेला अप्रैल महीने में मनाया जाता है। इसमें रोहड़ू के culture की झलक देखने को मिलती है। यह मेला रोहड़ू में 9 और 10 तारीख को बैसाखा (अप्रैल) को देवता शिकरू के सम्मान में पब्बर नदी के तट पर आयोजित किया जाता है।
आसपास के गांवों के लोग देवता के भक्त हैं। यह बहुत पुराना मेला है और देवता के वर्चस्व की याद में आयोजित किया जाता है। यह मेला भी एक वाणिज्यिक मेला माना जाता है। इस मेले में नाटी ’नृत्य और सांस्कृतिक गतिविधियों के प्रदर्शन के अलावा, ब्रिकी ट्रेडिंग भी की जाती है। मेले में भाग लेने वाले पुरुषों और महिलाओं ने अपने सर्वश्रेष्ठ परिधान में भाग लिया जाता है।
6 - लवी का मेला:
शिमला जिले के रामपुर का लवी मेला जिले और राज्य का सबसे महत्वपूर्ण मेला है। यह मेला कार्तिक , 25 नवंबर को आयोजित होने वाला एक व्यावसायिक मेला है। ऐसा जाता है कि मेला तत्कालीन बुशहर राज्य और तिब्बत के बीच व्यापार संधि पर हस्ताक्षर करने से संबंधित था। किन्नौर के चरवाहे सर्दियों के सेट से पहले गर्म स्थानों पर जाते हैं और अपने रास्ते पर रामपुर में रुकते हैं।
ऊनी माल, ड्राई फ्रूट्स और उनके द्वारा लाई गई औषधीय जड़ी-बूटियाँ लोगों द्वारा खरीदी जाती हैं और मैदानी इलाकों के व्यापारी और खाद्यान्न, कपड़े और बर्तन बेचे जाते हैं। यह मेला बहुत पुराना मेला है और पूरी तरह से माल की बिक्री और खरीद से संबंध रखता है।
7 - ग्रीष्मोत्सव मेला:
ये मेला मेला शिमला जिले का राष्ट्रीय स्तर का मेला है। इस मेले की शुरूआत मई महीनें में होती है ये शिशिमला में बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। यह मेला ग्रीष्म ऋतू में मनाया जाता है। लोग बड़ी ही धूमधाम से इस मेले में भाग लेते हैं। इस मौसम में न तो ज्यादा गर्मी और न ही सर्दी होती है इस लिए इसका आनंद सारे लोग लेते हैं।