हिमाचल प्रदेश के मेले और त्योहार हिमाचल प्रदेश के देवी देवताओं और आस्था से भी काफी जुड़े हुए है। हिमाचल प्रदेश के रीती रिवाज अलग अलग क्षेत्र में अलग अलग कलाओं से जुड़े हुए हैं। यहां के मेले और त्योहारों में लोग मधुर सयंत्रों के साथ नाच और नृत्य का प्रदर्शन कर अपनी प्रथा का प्रचार और कला को कायम करते हैं।
GK Pustak के इस भाग में हम जिला ऊना के "Fairs and Festivals District Una" के सामान्य ज्ञान के बारे में विस्तार पूर्वक हिंदी में बताएंगे ताकि अगर किसी भी हिमाचल की परीक्षा में सवाल पूछा जाता है तो आपको आसानी हो सके। ये जानकारी विस्तार पूर्वक दी गई है।
यहां अनेक देवी-देवताओं के मंदिर हैं। ऐसा ही एक भगवान नृसिंह का मंदिर जिला ऊना की बंगाणा तहसील के तहत पीपलू नामक स्थान पर स्थित है। बंगाणा से सात किलोमीटर की दूरी पर पिपलू में प्रतिवर्ष लगने वाला वार्षिक पिपलू मेला जहां हमारी धार्मिक आस्था व श्रद्धा का प्रतीक है, वहीं प्राचीन सांस्कृतिक विरासत को भी सदियों से संजोए हुए है।
18 वीं शताब्दी के प्रारंभ में ऊना क्षेत्र के हटली महेड़ गांव के उतरू नामक किसान को एक दिन स्वप्न हुआ कि जंगल में जाकर आमुक स्थान पर जमीन मे गड़ी शिला को निकालो और उसे नगरोट (अब पिपलू गांव के सूखे पीपल के नीचे रखो। उतरू किसान प्रातः उठकर उस निर्दिष्ट स्थान पर पहुंचा। औजारों से खुदाई कर एक शिला मिली और वह शिला को घर ले आया। पर उसकी आंखों की रोशनी चली गई।
उसे अपनी गलती का एहसास हुआ और पीपल की ओर क्षमा याचना करने से उसी क्षण उसकी दृष्टि ठीक हो गई। उसने शिला को उसी सूखे पीपल के नीचे रख दिया। कुछ दिन बाद पीपल हरा हो गया, जो कि आज भी विद्यमान है। लोगों ने सुना और उसकी महतत्ता बढ़ती गई और बाद में वह पीपलू नामक पवित्र स्थान पे नाम से जाना गया।
ऊना जिले के मेले और त्यौहार:
1. ऊना का होला मेला : होला मोहल्ला मेला जिले के मैरी गाँव के डेरा बाबा बड़भाग सिंह मंदिर में होता है। इस वार्षिक मेले में लाखों श्रद्धालु आते हैं। यहां पर हिमाचल प्रदेश के ही नहीं पंजाब के भी हजारों श्रद्धालु आते हैं। डेरा में आज्ञाकारिता का पालन करने के बाद सारे ही श्रद्धालु पास में बहने वाली हंस नदी की एक सहायक चरन गंगा में पवित्र डुबकी लगाते हैं। ऐसा माना जाता है कि यह मानसिक बीमारी और शारीरिक बीमारियों को ठीक करता है। यह त्यौहार होली के साथ ही होता है और इसे रंगों का त्यौहार भी माना जाता है।2. श्रावण अष्टमी : प्रसिद्ध शक्तिपीठ चिंतपूर्णी में श्रावण अष्टमी का मेला जुलाई अगस्त में शुरू होता है। यह मेला नौ अगस्त तक चलता है। कानून-व्यवस्था दुरुस्त रखने के लिए मेला क्षेत्र को दस सेक्टरों में बांटा जाता है। सुरक्षा की दृष्टि से एक हजार से अधिक पुलिस और होमगार्ड जवान तैनात किये जाते हैं।
3, पीपलू मेला : ये मेला ऊना जिले का जिले स्तर का मेला है। ये पिपलू नामक स्थान पर मनाया जाता है। ये साल के मई जून में मनाया जाता है। ऐतिहासिक तीन दिवसीय पिपलू मेला पूजा-अर्चना एवं झंडा रस्म के साथ शुरू होता है। हिमाचल प्रदेश को देवभूमि के नाम से जाना जाता है।
यहां अनेक देवी-देवताओं के मंदिर हैं। ऐसा ही एक भगवान नृसिंह का मंदिर जिला ऊना की बंगाणा तहसील के तहत पीपलू नामक स्थान पर स्थित है। बंगाणा से सात किलोमीटर की दूरी पर पिपलू में प्रतिवर्ष लगने वाला वार्षिक पिपलू मेला जहां हमारी धार्मिक आस्था व श्रद्धा का प्रतीक है, वहीं प्राचीन सांस्कृतिक विरासत को भी सदियों से संजोए हुए है।
18 वीं शताब्दी के प्रारंभ में ऊना क्षेत्र के हटली महेड़ गांव के उतरू नामक किसान को एक दिन स्वप्न हुआ कि जंगल में जाकर आमुक स्थान पर जमीन मे गड़ी शिला को निकालो और उसे नगरोट (अब पिपलू गांव के सूखे पीपल के नीचे रखो। उतरू किसान प्रातः उठकर उस निर्दिष्ट स्थान पर पहुंचा। औजारों से खुदाई कर एक शिला मिली और वह शिला को घर ले आया। पर उसकी आंखों की रोशनी चली गई।
उसे अपनी गलती का एहसास हुआ और पीपल की ओर क्षमा याचना करने से उसी क्षण उसकी दृष्टि ठीक हो गई। उसने शिला को उसी सूखे पीपल के नीचे रख दिया। कुछ दिन बाद पीपल हरा हो गया, जो कि आज भी विद्यमान है। लोगों ने सुना और उसकी महतत्ता बढ़ती गई और बाद में वह पीपलू नामक पवित्र स्थान पे नाम से जाना गया।
4. बाबा बड़भाग सिंह मेला | Baba Badbhag Singh Fair : ये मेला ऊना जिले का राज्य स्तरीय मेला है। ये मेला हर साल जून महीने में मनाया जाता है। ये मेला हिन्दू और सिख धर्म के लिए मान्य है। कहीं न कहीं ये मेला धार्मिक आस्था के साथ जुड़ा हुआ है। अंब तहसील के ग्राम मैरी में डेरा बाबा गुरबरगढ सिंह, 3 कि.मी. उत्तर-पूर्व गाँव नेहरी जो ऊना-अंब- नादौन-हमीरपुर मार्ग पर स्थित है, लगभग 40 किलोमीटर है। ऊना से। माना जाता है कि 'डेरा' (पवित्र मंदिर) की यात्रा बुरी आत्माओं से पीड़ित रोगियों या अन्य घातक प्रभावों से प्रभावित रोगियों को ठीक करने के लिए की जाती है।
5. चिंतपूर्णी मेला :ऊना जिले का ये भी राज्य स्तर का मेला है। ये मेला माँ चिंतपूर्णी को समर्पित है। इस मेले में माँ चिंतपूर्णी की पूजा बड़ी ही धूमधाम से किया जाता है। ऊना जिले का चिंतपूर्णी मेला, जिसे स्थानीय लोग माता दा मेला ’(माँ देवी का मेला) के नाम से मानते हैं गाँव चिंतपूर्णी में इसी नाम की पहाड़ी श्रृंखला के लगभग 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
ये भरवां के पश्चिम में स्थित है। ऐसा माना जाता है कि देवी माँ ने प्राचीन काल में सूक्ष्म रूप में प्रकट हुई थीं। साइट ऊना, होशियारपुर और कांगड़ा से धातु की सड़क से संपर्क करती है जो क्रमशः 56, 48 और 64 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं।
अनादि काल से आयोजित होने वाले मेले को साल में तीन बार चेत (मार्च-अप्रैल), सावन (जुलाई-अगस्त) और असंज (सितंबर-अक्टूबर) में आयोजित किया जाता है।
5. चिंतपूर्णी मेला :ऊना जिले का ये भी राज्य स्तर का मेला है। ये मेला माँ चिंतपूर्णी को समर्पित है। इस मेले में माँ चिंतपूर्णी की पूजा बड़ी ही धूमधाम से किया जाता है। ऊना जिले का चिंतपूर्णी मेला, जिसे स्थानीय लोग माता दा मेला ’(माँ देवी का मेला) के नाम से मानते हैं गाँव चिंतपूर्णी में इसी नाम की पहाड़ी श्रृंखला के लगभग 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
ये भरवां के पश्चिम में स्थित है। ऐसा माना जाता है कि देवी माँ ने प्राचीन काल में सूक्ष्म रूप में प्रकट हुई थीं। साइट ऊना, होशियारपुर और कांगड़ा से धातु की सड़क से संपर्क करती है जो क्रमशः 56, 48 और 64 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं।
अनादि काल से आयोजित होने वाले मेले को साल में तीन बार चेत (मार्च-अप्रैल), सावन (जुलाई-अगस्त) और असंज (सितंबर-अक्टूबर) में आयोजित किया जाता है।