हिमाचल प्रदेश के, बिलासपुर जिले का इतिहास | History of Bilaspur District in Hindi
जिले का परिचय : बिलासपुर जिला हिमाचल प्रदेश के 12 जिलों में से एक है। जब देश आजाद हुआ उसके बाद 15 अप्रैल 1948 में इस जिले का तहसील के रूप में गठन हुआ था। मानव निर्मित झील गोविन्द सागर झील इस जिले का आकर्षण का केंद्र है।
बिलासपुर जिले का प्राचीन इतिहास:
हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले का इतिहास सातवीं शताब्दी से जुड़ा हुआ है जहां तक बिलासपुर जिले के नाम और नामकरण की बात करें तो इतिहासकार मानते हैं कि बिलासपुर शहर बनने से पहले ये केहलूर रियासत का हिस्सा था। पहले ये शहर चंदेल राजपूतों के अधीन था जो आज के मध्यप्रदेश राज्य के प्रसिद्ध राजा माने जाते थे। हिमाचल प्रदेश का बिलासपुर शहर प्राचीन काल में रतनपुर का हिस्सा हुआ करता था।
सत्तरवीं सदी में 1663 में इस बिलासपुर में कलचुरी वंश के राजा ने इस इस इलाके में राजा किया और इस शहर की स्थापना की। जानकारी के मुताबिक बिलासपुर शहर का नाम "बिलाशा" नामक के वीर महिला और बुद्धिमान महिला के नाम से रखा गया है। बिलाशा नामक महिला रतनपुर में मछली बेचने का काम करती थी। हम सभी जानते हैं हिमाचल प्रदेश भी मुग़लों के राज से नहीं बच सका है, जब शाहजहाँ ने रतनपुर के राजा कल्याण सिंह को कैद क्र लिया था तभी इस वीर महिला ने अपने राजा को छुड़वाने के लिए भरपूर प्रयास किये थे। इसी महिला के नाम पर जो बिलाशा के नाम से जानी जाती थी हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले का नम्म पड़ा।
बिलासपुर जिले में सिख इतिहास :
हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले के इतिहास से एक महत्वपूर्ण तारीख 13 मई 1665 ईस्वी से जब सिखों के नौवें गुरु श्री गुरु तेग बहादुर ने इस रियासत अर्थात बिलासपुर में भर्मण किया था। उन्होंने यहाँ एक कार्यक्रम में लिया था। यह कार्यक्रम ख़ुशी के मोके पर नहीं था पर गुरु जी ने बिलासपुर के प्रसिद्ध राजा, राजा दीप की मृत्यु पर शोक और अंत्येष्टि कार्यक्रम पर सांत्वना के कार्यक्रम में हिस्सा लिया था।
बिलासपुर के राजा दीप चंद की पत्नी चंपा रानी ने इस कार्यक्रम पर शामिल होने के लिए गुरु जी का धन्यवाद किया और रानी ने गुरु जी के सामने बिलासपुर रियासत का कुछ जमीन का हिस्सा देने का प्रस्ताव रखा। श्री गुरु तेग बहादुर ने इस प्रस्ताव को मंजूर किया और रानी ने बिलासपुर रियासत के लोधीपुर, मियांपुर और साहोता गाँव को गुरु जी जो दे दिए बदले में गुरु जी ने रानी को 500 रूपये दिए थे। 19 जून 1665 में श्री गुरु तेग बहादुर ने इस रियासत में बसेरा किया कर इस शहर का नाम के नाम से रखा।
स्वतंत्रता के बाद का इतिहास और जिले का निर्माण :
उस समय हिमाचल प्रदेश के कुल चार जिले थे उनके नाम थे चम्बा जिला, सिरमौर जिला, काँगड़ा जिला, मंडी जिला। शुरुआत में बिलासपुर जिले में दो तहसीलें थी घुमारवीं और बिलासपुर तहसील। जनवरी 1980 में एक नै तहसील का निर्माण किया गया उसका नाम था नैना देवी। 1984 में बिलासपुर जिले की दो उपतहसीलों को मिलकर एक तहसील बनाई गई ये तहसीलें थी झडूंता और घुमारवीं।
उस वक्त प्रशासनिक रूप से, बिलासपुर जिले को दो उपखंडों, तीन तहसीलों, 1 उप-तहसील, 3 सामुदायिक विकास खंडों, 136 पंचायतों, 2 नगर पालिकाओं और 2 अधिसूचित क्षेत्र समितियों में विभाजित किया गया था।
बिलासपुर जिला 1901 से पहले एक शहर नहीं था पर उसने 1931 में एक शहर के रूप में दर्जा प्राप्त किया। 1961 में बिलासपुर जिले को समिति के रूप में दर्जा मिला। 1981 में शाहतलाई नामक स्थान का समिति के रूप में गठन हुआ।
बिलासपुर रियासत के प्रमुख राजा | Kings of Bilaspur District
आज का हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले का इतिहास सातवीं शताब्दी के इर्द गिर्द घूमता है जब यह केहलूर रियासत का हिस्सा था। राजाओं के शासन काल में केहलूर था जिसके राजा, राजा वीर चंद थे और लगभग 607 ईस्वी में राजा वीर चंद ने इस राज्य स्थापना की थी। बाद में इस किले पर राजपूत शासकों प्रभुत्व जमाया और इस किले पर कब्ज़ा किया जब इस किले का नाम कोट कहलूर रखा गया था। बिलासपुर रियासत में कुछ मशहूर राजा हुए हैं जिनका जानकारी मुताबिक विवरण नीचे दिया गया है।
राजा मेघचंद ; राजा मेघचंद बिलासपुर रियासत के दूसरे राजा और शासक थे जिन्होंने बिलासपुर रियासत में शासन किया था। ऐसा माना जाता है कि ये बिलासपुर रियासत के योग्य शासक नहीं थे। इसके पीछे कारण यह है कि वे यहाँ की जनता के विश्वास पर खरे नहीं उतरे थे और बिलासपुर की जनता ने उनके शासन करने के तरीके और व्यव्हार को पसंद नहीं किया था। राजा मेघचंद के खिलाफ जनता के अच्छे व्यवहार न होने के कारण उन्हें इस रियासत का शासन छोड़ना पड़ा था।
राजा अभिषेक चंद : राजा अभिषेक चंद बिलासपुर रियासत के तीसरे राजा थे जो राजा मेघचंद के बाद सत्ता में आये। राजा अभिषेक चंद एक कुशल योद्धा और केहलूर रियासत के योग्य राजाओं में से एक थे। जब दिल्ली में सिकंदर लोदी का शासन था तो उस वक्त राजा अभिषेक चंद बिलासपुर रियासत में राज किया करते थे। वे एक कुशल शासक थे और अपनी जनता के लिए उन्होंने तातार खान (बंगाल के सुलतान) को भी युद्ध में हराया था।
राजा सम्पूर्ण चंद : राजा सम्पूर्ण चंद बिलासपुर जिले की केहलूर रियासत में 13 वीं शताब्दी में शासन किया था। उस वक्त भारत के सभी हिस्सों में सत्ता के लिए होड़ लगी होती थी इसलिए उनक परिवार में ही उनके अपने भाई के साथ शासन के लिए कलेश रहता था। उनके भाई रत्न चंद जो शक्तिशाली थे ने राजा सम्पूर्ण चंद की हत्या करवा दी थी जिसके कारण वे ज्यादा समय तक शासन नहीं कर सके थे।
राजा ज्ञान चंद: राजा ज्ञान चंद बिलासपुर के सोलवीं शताब्दी में 1570 ईस्वी में बिलासपुर के राजा बने थे। जब राजा ज्ञान चंद बिलासपुर के राजा थे उस समय दिल्ली में मुग़ल सम्राट अकबर का शासन था और उन्होंने राजा ज्ञान चंद पर धर्म परिवर्तन के लिए जोर डाला था। कुछ समय के लिए ज्ञान चंद के इंकार करने के बाद मुग़ल सम्राट अकबर के प्रभाव में आकर उन्होंने धर्म बदल लिया था और मुश्लिम धर्मं अडॉप्ट कर लिया था। ज्ञान चंद के साथ चार पुत्रों में से एक को छोड़कर बाकी सभी तीन पुत्रों ने भी अपना धर्म चेंज क्र लिया था।
राजा बीकचंद: सोलवीं शताब्दी के समाप्त होने के बाद और सत्तरवीं शताब्दी के प्रारम्भ में ज्ञान चंद की मौत हो गई और उनके पुत्र राजा बीकचंद बिलासपुर के राजा बने। राजा बीकचंद के समय ही बिलासपुर जिले के नैना देवी क्षेत्र का विकास हुआ था और उन्होंने नैना देवी से मंत्रमुग्ध होकर नैना देवी को अपनी कैपिटल बनाने के फैसला किया था।
राजा कल्याणचंद : राजा बीकचंद 1600 ईस्वी से लेकर ईस्वी तक बिलासपुर के राजा रहे और उसके बाद यहां पर राजा कल्याणचंद ने शासन किया। उस वक्त हुंडूर रियासत के विकास के लिए उन्होंने काम किया। हुंडूर रियासत में जो किला बनवाया गया था वह किला राजा कल्याणचंद ने ही बनवाया था। इस किले पर कब्ज़ा करने के लिए राजा कल्याणचंद और हुंडूर रियासत के राजा में आपस में युद्ध हुआ था जिसमें हुंडूर रियासत के राजा को हार का सामना करना पड़ा था और उनकी मृत्यु हो गई थी।
राजा दीपचंद : राजा दीप चंद भी बिलासपुर जिले के मशहूर राजा थे। उनकी पत्नी का नाम चंपा था। रजा दीप चंद ने बिलासपुर राज्य का शासन 1650 ईस्वी में संभाला और वे 1667 ईस्वी तक लगभग 17 साल बिलासपुर के किंग रहे। बिलासपुर रियासत पंजाब रियासत के साथ लगता था इसलिए राजा दीप चंद के सबंध सिखों के साथ अच्छे थे। राजा दीप चंद के समय तक बिलासपुर का नाम व्यासपुर था राजा दीप चंद ने ही इस रियासत का नाम व्यासपुर से बिलासपुर परिवर्तित किया था।
राजा भीम चंद : राजा दीप चंद के बाद बिलासपुर राज्य के राजा, राजा भीम चंद बने थे। राजा भीम चंद ने बिलासपुर रियासत की 1667 ईस्वी में कमान संभाली थी और वे 1712 तक लगभग 49 साल तक बिलासपुर जिले के शासक रहे थे। शायद हिमाचल प्रदेश के इतिहास में उनका सबसे लंबा शासन काल था। राजा भीम चंद जब राजा थे तो हिमाचल प्रदेश पर पहाड़ी राजाओं को छोड़कर किसी बाहरी शक्ति का प्रभुत्व बहुत कम था।
जहां राजा दीप चंद के सिखों के साथ अच्छे सबंध थे वहीँ राजा भीम चंद के सिखों के साथ अच्छे सबंध नहीं थे और उनके साथ युद्ध की स्थित बानी रही थी। सिखों के दसवें गुरु गुरु गोविन्द सिंह जी राजा भीम चंद के समकालीन थे और राजा भीम चंद और श्री गुरु गोविन्द सिंह के साथ लगातार 20 साल तक युद्ध की परिस्थिति बनी रही थी। भीम चंद और गुरु जी के इस युद्ध काल में अंत में गुरु जी की जीत हुई और भीम चंद को गुरु गोविन्द सिंह जी ने 1686 ईस्वी में हरा दिया था। दूसरी तरफ राजा भीम चंद के मुग़ल शासक औरंगजेब समकालीन थे।
राजा देव चंद : अजमेर चंद के बाद बिलासपुर रियासत के शासक राजा देव चंद बने थे। वे 1741 ईस्वी में इस रियासत के राजा बने और उन्होंने इस रियासत पर 1741 ईस्वी से लेकर 1778 ईस्वी तक लगभग 37 साल शासन किया। उनके शासन काल में ब्रिटिश इष्ट इंडिया ने हिमाचल प्रदेश में अपना विस्तार करना शुरू किया था।
राजा महानचन्द : राजा महान चंद हिमाचल प्रदेश के जितने भी शासक हुए हैं उनमे सबसे कम उम्र में शासन करना शुरू किया था वे जब मात्र 15 साल के थे तभी से उन्होंने शासन करना शुरू किया था। वे 1778 ईस्वी में बिलासपुर रियासत के राजा बने और 1824 ईस्वी तक बिलासपुर रियासत के राजा या शासक रहे थे।
आनंद चंद बिलासपुर रियासत के अंतिम राजा: आजादी से पहले हिमाचल प्रदेश में ही नहीं पूरा भारत रियासतों में बंटा हुआ था जब भारत आजाद हुआ तब बिलासपुर रियासत के राजा, राजा आनद चंद थे जो 1928 में बिलासपुर के शासक बने थे। वे बिलासपुर के अंतिम शासक थे और भारत की आजादी के बाद उन्होंने बिलासपुर को भारत के साथ मिलाने का फैसला किया था। आनंद चंद महात्मा गाँधी को अपना गुरु मानते थे।
बिलासपुर राज्य का गठन: हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर का गठन: आज का बिलासपुर जिला पहले हिमाचल प्रदेश का जिला नहीं था इसे 1 जुलाई, 1 9 54 में हिमाचल प्रदेश में शामिल किया गया और ये हिमाचल प्रदेश का पांचवां जिला बना था। जब बिलासपुर जिला तब जिले में केवल दो ही तहसीलें थी एक घुमारवीं तहसील,और दूसरी तहसील नाम बिलासपुर था।
ब्रिटिश प्रभाव: 19वीं सदी में, ब्रिटिश गुलामकाल के दौरान, बिलासपुर राज्य ब्रिटिश मुकुट के अधीन आया। यह पंजाब हिल स्टेट्स का हिस्सा था, जिसे ब्रिटिश ने एक संरक्षित राज्य के रूप में प्रशासित किया।
भारत से एकीकरण: 1947 में भारत की आजादी के बाद, बिलासपुर राज्य को पहले पंजाब राज्य में मिला। हालांकि, यह मिलाप अल्पकालिक था, और 1954 में बिलासपुर हिमाचल प्रदेश का हिस्सा बन गया, जो तब एक संघ शासित प्रदेश था।
भाखड़ा नंगल बांध प्रोजेक्ट: बिलासपुर जिले के इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण घटना में से एक है भाखड़ा नंगल बांध का निर्माण। इस बांध का निर्माण सुतलेज नदी पर किया गया था, जिससे पुराने बिलासपुर शहर का बड़ा हिस्सा, मंदिर और बसेरों को डूब जाना था। बिलासपुर के लोगों को पुनर्वास किया गया, और इस बांध के निर्माण के कारण, जिसका पूरा होना 1960 के दशक में हुआ, जिले में महत्वपूर्ण आर्थिक और बुनाई संरचना में बदलाव आया।
विकास और आधुनिकीकरण: बिलासपुर ने स्वतंत्रता के बाद काफी विकास और आधुनिकीकरण देखा है। यह हिमाचल प्रदेश में महत्वपूर्ण व्यापार, वाणिज्य, और पर्यटन केंद्र बन गया है।
बिलासपुर शहर: बिलासपुर का पुराना शहर, जिसे "न्यू टाउन" के नाम से जाना जाता है, इस बांध के जलस्रोत के किनारे डूब गया था। खोए गए शहर की जगह पर, गोबिंद सागर के किनारे एक नया बिलासपुर शहर बनाया गया। यह शहर अपनी प्राकृतिक सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध है और यह पर्यटकों के बीच एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है।
सांस्कृतिक धरोहर: बिलासपुर जिला में विभिन्न मंदिरों और त्योहारों के साथ एक धरोहर भरपूर है। नैना देवी मंदिर, लक्ष्मी नारायण मंदिर, और देवोली फिश फार्म जिले के प्रमुख आकर्षण हैं।