इसलिए GK Pustak के माध्यम से आज हम शिमला जिले के इतिहास की जानकारी हिंदी में दे रहे हैं जिसमे शिमला शहर के पुरे इतिहास की जानकारी दी गई है चाहे गोरखाओं का युद्ध हो या फिर शिमला के देसी राजाओं का राज हो। " Shimla History in Hindi" लगभग सभी पहलुओं को स ध्यान में रखा गया है इसलिए इसे ध्यान से पढ़ें शिमला का इतिहास रोचक भी है।
शिमला का इतिहास : Shimla History in Hindi
शिमला का नामकरण:
शिमला के खोज का श्रेय लेफ्टिनेंट रोज को जाता है उन्होंने 1819 में लगभग 28 रियासतों को इकठा करके शिमला नामक शहर की खोज की थी। लेफ्टिनेंट रोज ने सबसे पहले यहां लकड़ी के घर का निर्माण किया था। तो फिर शिमला में पक्का घर कब बना था। शिमला में पक्के घर का निर्माण 1822 ईसवी में हुआ था शिमला में पक्के घर का निर्माण चार्ल्स पेटी कैनेडी ने करवाया था। ये घर अभी भी शिमला में मोजूद है जो केनेडी हॉउस के नाम से जाना जाता है।
शिमला में गोरखा इतिहास:
शिमला का इतिहास 19 शताब्दी का भी बहुत ही रोचक है कियोंकि शिमला को अपने कब्जे में लेन के लिए ब्रिटिश और गोरखाओं के बीच युद्ध हुआ था। 1704 की काँगड़ा की लड़ाई भी शिमला के इतिहास से परे नहीं है ये लड़ाई सिखों और गोरखाओं के बीच हुई। ये लड़ाई शिमला से लगभग 65 मील की दुरी पर हुई थी जिसे काँगड़ा का किला कहा जाता था। गोरखाओं ने बहुत अत्याचार किये और हजारों लोगों की जान ली उन्होंने शिमला के आसपास की जितनी भी पहाड़ी रियासतें थी पर कब्ज़ा करना शुरू कर दिया।
गोरखाओं ने शिमला के आसपास अपने कई किले बनाने शुरू कर दिए। शिमला का जगत गढ़ का किला इनमे से एक है। ये किला जतोग नामक जगह पर बनाया गया था। हम आपको बता दें भारतीय सेना की छावनी आज भी वहाँ मौजूद है।
आखिकार ब्रिटिश सेना और गोरखाओं के बीच निर्णायक लड़ाई 15 मई,1815 को माला की लड़ाई को माना जाता है इसमें ब्रिटिश सेना ने तोपों का इस्तेमाल किया और गोरखों पर जबरदस्त हमला किया। लड़ाई ने गोरखों के सभी किलों का अंत कर दिया और शिमला के अधिकाँश भागों को अपने शासन में मिला लिया।
शिमला जिला जिले के रूप में :
शिमला जिले का मुख्यालय शिमला ही है। इस वक्त शिमला जिले के 9 उप- मंडल, 13- तहसील, 12 उप-तहसील और 10 ब्लॉक हैं।
शिमला के राजा और देशी रियासतें:
- राजा केहरी सिंह 1639 ईस्वी से 1696 ईस्वी तक :-- केहरी सिंह बुशहर रियासत के Famous राजा थे। उनका दूसरा नाम अजान बाहु केहरि भी था। मुग़ल साम्राज्य के ओरंगजेब उनके समकालीन थे। उनके कार्यों के लिए ओरंगजेब ने उन्हें दिल्ली बुलाकर उन्हें छत्रपति की उपाधि की उपाधि से सन्मानित किया था। केहरी सिंह ने शिमला में वाणिजय और व्यापार को बढ़ाने के लिए लवी के मेले का आरम्भ किया था जो आज भी शिमला जिले में मनाया जजता है।
- राजा राम सिंह 1767 ईस्वी से 1799 ईस्वी तक :- राजा राम सिंह ने "सराहन" जो अभी शिमला जिले की तहसील है को अपनी राजधानी बनाया था। उस समय कुल्लू के राजा विधि सिंह राम सिंह के समकालीन थे उन्होंने शिमला के बाहरी क्षेत्र पर हमला कर दिया और धवल, कोट खांडी और बलरामगढ़ पर कब्जा कर लिया। ये क्षेत्र आज भी कुल्लू जिले के ही हिस्से हैं।
- राजा महेंद्र सिंह 1810 ईसवी से 1815 तक :- जब गोरखों का शिमला पर अत्याचार जारी था तब बुशहर रियासत के राजा महेंद्र सिंह थे। उन्होंने ब्रिटिश शासन से गोरखों से लड़ने के लिए सहायता मांगी डेविड Auchterlony ने राम सिंह से Promise किया की वे उनके सहायता करेंगे ये घोषणा 1814 में की गई थी। इसमें ये भी ब्रिटिश शासन ने कहा कि गोरखों को भगाने के बाद उन्हें उनके पूर्वजो का साम्राज्य वापिस कर दिया जायेगा। उनके शासन काल में ही में 1814 में गोरखाओं और अंग्रेजों के बीच युद्ध हुआ।
- राजा शमशेर सिंह :- शमशेर सिंह ने 1857 ईस्वी के विद्रोह में अंग्रेजों का साथ नहीं दिया। बुशहर रियासत का ये एक ऐसा राजा था जिसका शासन संतोषजनक नहीं था। इनके शासन काल में ही में धूम का विद्रोह हुआ था। उनके शासन न अच्छी तरह से करने के कारण रघुनाथ सिंह जो महेंद्र सिंह के बेटे थे को शासन दिया गया। भारत सरकार ने उन्हें C I E की उपाधि से सम्मानित किया।
- राजा पदम सिंह 1873 ईसवी से 1947 ईस्वी तक :- इसके बाद बुशहर रियासत पर पदम सिंह का शासन हुआ। उनके शासन काल के समय ही दुनिया में प्रथम विश्व युद्ध हुआ था। और पदम सिंह ने अंग्रेजों का साथ दिया। इससे खुश होकर ब्रिटिश सरकार ने उन्हें नौ-बंदूक की सलामी भी दी थी।
2. जुब्बल रियासत के राजा :हिमाचल की जुब्बल रियासत की स्थापना उग्रसेन के बड़े बेटे करमचंद द्वारा की गई थी। उस समय कर्मचन्द द्वारा सूर्यपुर को जुब्बल रियासत की राजधानी बनाया गया था। जुब्बल उस समय सिरमौर रियासत का हिस्सा था और जुब्बल रियासत गोरखों के कब्जे में भी रहा जो गोरखा ब्रिटिश युद्ध के बाद आजाद हुआ था।
- गौर चंद : गौरचंद ने राजधानी को बदल दिया उन्होंने पुराना जुब्बल से राजधानी बदल कर देवरस बनाया था।
- पूर्णचंद : जब गोरखों का आक्रमण जारी था तब जुब्बल रियासत का राजा पूर्णचंद था। उनके वजीर डूंगी बजीर ने ब्रिटिश गोरखा युद्ध में जुब्बल सेना का नेतृत्व किया। 1815 ईसवी में गोरखाओं और अंगेजों के बीच एक संधि हुई जिसमे जुबल रियासत के हिस्सों को बांटा गया।
- पदम चंद 1877 ईस्वी से 1898 ईस्वी तक : पदम चंद ने 1877 ईस्वी से 1898 ईस्वी तक जुब्बल रियासत पर राज किया। वे एक ऐसे राजा थे जिहोने पहले से प्रचलित श्रम प्रणाली या फिर बेगार प्रथा का अंत कर दिया था।
- भक्त चंद 1911 ईस्वी से 1947 तक : 1911 में ब्रिटिश सम्राट जॉर्ज पंचम ने दिल्ली का दरबार लगाया था इस दरबार में भक्त सिंह को बुलाया गया था। भक्त सिंह ने जुब्बल रियासत में कई कार्य किये। चौपाल का वन विभाग उनकी देन है। जुब्बल रियासत में पहला माध्यमिक विद्यालय उन्होंने ही होला था। ये विद्यालय 1945 में खोला गया था। उन्हें उनके कार्यो के लिए कई बार अलग अलग उपाधियों से नवाजा गया था। 1928 और 1936 में उन्हें सी एस आई की उपाधि से ब्रिटिश सरकार द्वारा नवाजा गया था। 1921 और 1933 में पहाड़ी रियासतों के राजाओं ने उन्हें "हाउस ऑफ प्रिंसेस" का सदस्य चुना था। पहाड़ी राज्यों में सबसे पहले हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले में पन - बिजली का आरम्भ हुआ था। उसके बाद जुब्बल 1926 में जुब्बल में पनबिजली उत्पादन करने वाला हिस्सा बना था। भक्तचंद ने 1926 और 1933 के बीच दुनिया का दौरा किया था । उन्ही के शासन काल में लॉर्ड इरविन ने जुब्बल रियासत का दौरा किया था। वे एक ऐसे राजा थे जिन्होंने दुनिया का दौरा किया था अपने 1926 और 1933 के दौरे में वे जर्मनी में हिटलर और इटली में मुसोलिनी से मिले ये अपने आप में बहुत बड़ी बात थी।
बलसन रियासत के राजा :
शिमला की बालसन रियासत की स्थापना अलक सिंह द्वारा की गई थी। बालसन रियासत 1805 से पहले सिरमौर रियासत का हिस्सा था। 1805 से पहले जब गोरखा आक्रमण हुआ उससे पहले ये कुमारसेन रियासत का हिस्सा माना जाता था। इस रियासत के जोगराज सिंह एक ऐसे राजा थे जिन्होंने ब्रिटिश सरकार का खुल के साथ दिया। 1815 में जब गोरखा ब्रिटिश युद्ध हुआ तब उन्होंने अंग्रेजों का साथ दिया।
1857 के विद्रोह में भी बलसन ने अंग्रेजों का साथ दिया। इन्ही कार्यो से खुश होकर ब्रिटिश सरकार ने उन्हें 1858 में " खिलत" और "राणा" की उपाधि से भी नवाजा था। उन्होंने एक किताब लिखी थी जिसका नाम " बेलसन स्टेट हिस्ट्री" था। इस समय बालसन शिमला जिले के ठियोग रियासत का हिस्सा है।
भजी रियासत के राजा
:
शिमला की भज्जी की रियासत की स्थापना चारु / उदयपाल दुआरा की थी। चारु की 29 वीं पीढ़ी के सोहनपाल ने सुन्नी शहर की स्थापना की और इसे भज्जी के स्थान पर राजधानी बनाया। हिमाचल प्रदेश की भज्जी रियासत पर 1803 से 1815 ईस्वी तक गोरखाओं का कब्जा रहा था। राणा रामचंद्र पाल भज्जी की रियासत के अंतिम शासक थे। आज भज्जी सुन्नी तहसील का हिस्सा हैं। भज्जी का हिमाचल में विलय 1948 हिमांशु में हुआ।
कोटी रियासत:
शिमला में कोटा रियासत थी और इस रियासत की स्थापना चंद्रा नामक राजा द्वारा की गई थी उनका नाम चारु भाई भी था। कोटि को राजधानी के रूप में बदल दिया गया। इस रियासत के राजा, राजा हरिचंद थे जिन्होंने 1857 ईस्वी में विद्रोह के समय अंग्रेजों की मदद की थी।
ये रियासत भी गोरखाओं के अत्याचार का शिकार हुई थी। गोरखों ने 1809 ईसवी में इस रियासत पर कब्जा कर लिया था। अंग्रेजों की मदद के कारण उन्हें भी राणा की उपाधि से नवाजा गया था। 1948 में इस रियासत का कुसुम्पटी में विलय हो गया था।
थरोच रियासत:
इस रियासत की स्थापना किशन सिंह ने की थी। जब इस रियासत में गोरखाओं का हमला हुआ उस वक्त ठाकुर कर्म सिंह इस रियासत के राजा थे। इस रियासत के अंतिम शासक सूरत सिंह थे और उन्हें भी अंगेर्जों ने राणा की उपाधि दी थी। 1948 ईस्वी में इस रियासत का विलय हिमाचल प्रदेश के साथ हुआ।
कुमार सेन रियासत:
इस रियासत की स्थापना कीरत सिंह दुआरा की गई थी। जब गोरघाओं ने कुमारसेन पर हमला किया था तब यह बुशहर रियासत का हिस्सा था। जब गोरखाओं ने कुमारसेन रियासत पर आक्रमण किया तब अपनी जान बचाने के लिए यहां के राजा केहर सिंह ने कुल्लू के राजा के पास शरण ली थी। यहां के राजा प्रीतम सिंह ने श्री गढ़ के किले के घेराव के लिए ब्रिटिश की सहायता की थी। राणा विद्याधर सिंह कुमारसेन रियासत के अंतिम शासक थे। आजादी के बाद 1948 में ये रियासत हिमाचल प्रदेश के महासू जिले का हिस्सा बन गया।
धामी रियासत :
धामी रियासत की स्थापना गोबिंद पाल द्वारा की गई थी। धामी रियासत की राजधानी हलोग थी। जब 1805 में गोरखाओं ने इस रियासत पर कब्जा किया उस वक्त इस रियासत का राजा गोवर्धन था। गोरखाओं के आक्रमण से पहले इस रियासत पर बिलासपुर रियासत का कब्जा था। 1805 में गोरखों ने इस रियासत पर कब्जा किया और 1815 तक ये रियासत गोरखों के कब्जे में रहा। एंग्लो - गोरखा युद्ध में गोवर्धन ने अंग्रेजों का साथ दिया। 15 अप्रैल, 1948 को जब भारत देश आजाद हुआ उस वक्त ये कुसुम्पटी तहसील का हिस्सा बना।
रतेश रियासत:
रतेश की रियासत की स्थापना राय सिंह ने की थी। राजा सोमर प्रकाश ने रत्नेश को रियासत की राजधानी बनाया। हिमाचल की सभ रियासतों में ये सबसे छोटी पहाड़ी एक रियासत थी जो 2 वर्ग मील में फैली थी । रतेश रियासत उस वक्त सिरमौर और केओन्थल की जागीर थी। इस रियासत के अंतिम शासक शमशेर सिंह थे।
क्योंथल रियासत:
शिमला की पहाड़ी रियासतों में क्योंथल रियासत की स्थापना गिरसेन ने की थी इस रियासत की स्थापना 1211 में की गई थी। इस रियासत की राजधानी जुन्गा थी। इस रियासत पर तुगलक वंश का राज भी रहा है ,1379 में इस रियासत पर फिरोजशाह तुगलक ने राज लिया था। इस रियासत पर 1809 में गोरखाओं दुआरा आक्रमण किया गया। इस रियासत का राजा संसार सेन था जिसने 1857 के विद्रोह में अंग्रेजों का साथ दिया और अंग्रेजों ने इसके लिए उसे "खिलाफत" की उपाधि से नवाजा था। इस रियासत का अंतिम शासक हितेंद्रसेन था।
ठियोग रियासत:
ठियोग की रियासत की स्थापना जयचंद ने की थी। पर इस रियासत का स्वामित्व उस वक्त क्योंथल रियासत के पास था। इस रियासत का अंतिम शासक कृष्ण चाँद थे। जब भारत गणराज्य की स्थापना हुई तब ये रियासत हिमाचल प्रदेश में शामिल होने वाली सभ रियासतों में पहले नंबर पर थी।
कोटखाई रियासत:
इस रियासत की स्थापना अहिमल सिंह ने की थी जो कुमारसेन के रहने वाले थे 1815 तक गोरखाओं ने इस रियासत पर कब्जा कर लिया पर अंग्रेजों के जितने के बाद कोटखाई रियासत को राणा रंजीत सिंह को दिया गया और कोटगढ़ को राजा रंजीत को दे दिया गया।
शिमला के इतिहास का अवलोकन :
प्राचीन निवासी: शिमला के चारों ओर क्षेत्र में रिकॉर्ड किए जाने से बहुत पहले ही विभिन्न स्वदेशी जनजातियों और समुदायों द्वारा बसा था, जिनकी अपनी संस्कृति, परंपराएँ, और जीवन के तरीके थे।
मौर्य और गुप्तकाल: मौर्य और गुप्तकाल के दौरान (लगभग 4थी सदी ईसा पूर्व से 6थी सदी ईसा के आस-पास), यह क्षेत्र भारतीय उपमहाद्वीप का हिस्सा था और उस समय के साम्राज्यों के प्रभाव में था। हालांकि, इस दौरान शिमला के बारे में विशेष इतिहासिक रिकॉर्ड सीमित हैं।
मध्यकाल: मध्यकाल में, हिमाचल प्रदेश के पहाड़ों को, जिसमें शिमला भी शामिल है, अक्सर विभिन्न राजपूत वंशों द्वारा शासित किया जाता था। ये वंश उत्तर भारत के मैदानों में वाले वंशों के तरह प्रमुख नहीं थे, इसलिए इतिहासिक दस्तावेज़ बहुत कम हैं।
ब्रिटिश औपचारिक युग: शिमला के इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण दौर ब्रिटिश औपचारिक युग है। ब्रिटिश ने 19वीं सदी में शिमला को एक गर्मियों की राजधानी के रूप में विकसित किया। शिमला ने 1814-1816 के गोर्खा युद्धों के बाद महत्व प्राप्त किया, जब इसे गोर्खा शासकों द्वारा ब्रिटिश को सौंप दिया गया।
शिमला के रूप में गर्मियों की राजधानी: ब्रिटिश ने शिमला को गर्मियों की छुट्टियों के लिए एक छुट्टी रिट्रीट के रूप में स्थापित किया। उन्होंने विकोरेगल लॉज (जो अब राष्ट्रपति निवास के रूप में जाना जाता है), क्राइस्ट चर्च, और प्रसिद्ध मॉल रोड सहित कई कोलोनियल युग के इमारतें और बुनाई बनाई।
रेलवे कनेक्शन: कालका-शिमला रेलवे, जो एक UNESCO विश्व धरोहर स्थल है, शिमला को मैदानों से जोड़ने के लिए 19वीं सदी के आखिर में बनाया गया था। यह रेलवे इंजीनियरिंग का एक आश्चर्य है और पहाड़ी स्टेशन तक आसान पहुँचने की अनुमति देता है।
राजनीतिक महत्व: ब्रिटिश शासन के दौरान शिमला में कई महत्वपूर्ण राजनीतिक मीटिंग और निर्णयों का स्थल रहा है, जैसे कि 1945 का शिमला समझौता और 1947 का शिमला सम्मेलन, जो भारत के विभाजन से संबंधित थे।
स्वतंत्रता के बाद: ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता प्राप्त होने के बाद, शिमला को पंजाब की राजधानी के रूप में जारी रखा गया, जब हिमाचल प्रदेश को 1966 में एक अलग राज्य के रूप में गठित किया गया और शिमला इसकी राजधानी बन गया।
आज, शिमला एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है जिसे उसकी कोलोनियल वास्तुकला, चित्रसौदर्य, और सुहावना मौसम के लिए जाना जाता है। भारत में कुछ अन्य क्षेत्रों की तरह इसका प्राचीन इतिहास बहुत व्यापक रूप से दस्तावेज़ित नहीं है, लेकिन इसका कोलोनियल गुजरात और ब्रिटिश शासन के दौरान जिस भूमिका का यह खेला है, वह उसकी वास्तुकला और संस्कृति में दृष्टिगत है जिसे देखा जा सकता है।"