हिमाचल प्रदेश का काँगड़ा जिला हिमाचल प्रदेश के सभी जिलों में जनसँख्या की दृष्टि से सभी से बड़ा है। काँगड़ा जिले का इतिहास महाभारत काल से माना जाता है। हिमचाल प्रदेश में होने वाली सभ परीक्षाओं में HAS, HP अलाइड, HPTET, Clerk की परीक्षाओं में काँगड़ा जिले के इतिहास से सामान्य ज्ञान के प्रश्न पूछे जाते हैं।
आज हम GK Pustak के माधयम की इस पोस्ट "Kangara District History in Hindi" के माधयम से "काँगड़ा के इतिहास" की जानकारी दे रहे हैं। ये जानकारी परीक्षा की दृष्टि से आपके लिए बहुत जरूरी है। आप काँगड़ा के इतिहास के प्रश्नो की तलाश में रहते हैं इस भाग में काँगड़ा के इतिहास का सारा सामान्य ज्ञान दिया गया है।
History of Kngra District in Hindi | काँगड़ा जिले का इतिहास
A> काँगड़ा जिले का प्राचीन इतिहास :
काँगड़ा प्राचीन काल में त्रिगर्त रियासत का हिस्सा था। त्रिगर्त के नाम से पता चलता है कि वह धरती जो तीन नदियों से संबंध रखती हो। त्रिगर्त की स्थापना भूमिचंद दुआरा की गई थी। भूमि चंद की संतान सुशर्मा चंद्र ने काँगड़ा जिले की स्थापना की और उसे अपनी राजधानी बनाया था। काँगड़ा जिले की स्थापना के बारे में हूण त्सांग ने भी किया है।
महाभारत काल के बाद हर्षवर्धन काल में यह जिला प्रफुलित हुआ था पर तब ये जिला सीमित था। ये हर्ष काल ही था जब काँगड़ा जिले पर किसी बहरी शक्तियों ने अपना प्रभुत्व जमाने की कोशिश की। और हर्ष वर्धन ने इस जिले पर शासन भी किया।
कांगड़ा का प्राचीन इतिहास जब ये रियासत थी। | Ancient History of Kangra District
प्राचीन काल में यह क्षेत्र जिसे हम अब कांगड़ा के रूप में जानते हैं, उसे त्रिगर्त के रूप में प्रसिद्ध था, और इसकी उत्पत्ति महाभारत युद्ध से पहले की एक समय की मानी जाती है। इस साम्राज्य की स्थापना भूमि चंद द्वारा की गई थी, जिसकी राजधानी आरंभ में मुल्तान (जो आजकल की पाकिस्तान में है) में स्थित थी। इस वंश के 234 वें शासक, सुशर्मा, ने फिर कांगड़ा में एक बड़े किले की नींव रख दी, जो नई राजधानी बन गई।
कांगड़ा जिले की उत्पति : वैसे तो काँगड़ा भारत की आजादी के बाद जिले के रूपमें सामने आया था पर यह एक पुराना क्षेत्र है जिसकी उत्पति महाभारत काल से मानी जाती है जब इसे त्रिगर्त का नाम दिया गया था था ",त्रि" का अर्थ होता है तीन और "गर्त" का अर्थ भूमि होता है। इससे पता चलता है की पहले कांगड़ा त्रिगर्त का हिस्सा था। संक्षेप में कहें तो तीन नदियों के बीच वाली धरती को मिलाकर त्रिगर्त बना था और ये नदियां सतलुज,व्यास और रावी हैं।
त्रिगर्त के बाद बना जालंधर : पौराणिक कथाओं अर्थात हिन्दू धर्म के पुराण के अनुसार जालंधर एक राक्षस था और शायद उसका वास भी काँगड़ा और पंजाब के कुछ हिस्सों में था उसी के नाम पर जालंधर बना था और कांगड़ा उसी का हिस्सा था। राजधानी: त्रिगर्त साम्राज्य की राजधानी नागरकोट थी, जो अब कांगड़ा शहर के रूप में जानी जाती है, जिसके वैकल्पिक नाम भी थे, जैसे कि भीमकोट, भीम नगर, और सुशर्मपुर, जो सुशर्मा के साथ जुड़े थे। इतिहास में, महमूद गज़नवी के कवि ने इसे भीमनगर के रूप में उल्लिखित किया, फिरिस्ता ने इसे भीमकोट कहा, और अलबीरूनी ने इसे नागरकोट कहा।
त्रिगर्त नाम महाभारत, पुराणों, और राजतरंगिणी जैसे विभिन्न प्राचीन पाठों में उल्लेखित है। पाणिनि की अष्टाध्यायी में भी त्रिगर्त को एक योद्धा समुदाय के रूप में पहचाना गया है। महाभारत युद्ध के समय, सुशर्मा ने कौरवों के साथ मिलकर काम किया और मत्स्य राज्य, जिसे राजा विराट ने शासन किया था, पर हमला किया।कांगड़ा की उत्पत्ति: शब्द "कांगड़ा" इस कथा की धारणा से आता है कि भगवान शिव ने राक्षस जालंधर को परास्त किया। इस कथा के अनुसार, जालंधर के कान वही जगह गिरे जहां उसके कान गिरे थे उसी से कांगड़ा नाम सामने आया। इस बात का कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है पर ये बात पुरानी कथाओं में कही गई है।
B.कांगड़ा जिले का मध्यकालीन इतिहास:
कांगड़ा जिला, भारतीय राज्य हिमाचल प्रदेश में स्थित है और इसका समृद्ध और दिलचस्प मध्यकालीन इतिहास है। यह क्षेत्र प्राचीन मंदिरों, किलों, और ऐतिहासिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है। यहां कांगड़ा जिले के मध्यकालीन इतिहास की एक अवलोकन है:
प्रारंभिक बसेरे: कांगड़ा का इतिहास प्राचीन समय में जाने जा सकते हैं, जब इसे विभिन्न जनजातियों ने आवास किया था। हिमालय के पैरों में स्थित इस क्षेत्र की रणनीतिक स्थिति ने इसे प्रारंभिक बसेरे के लिए आकर्षक बनाया।
कांगड़ा किला: जिले में सबसे प्रमुख प्रमाणिकों में से एक है कांगड़ा किला माना जाता है कि इसे कटोच वंश द्वारा बनाया गया था, जो कई सदियों तक क्षेत्र का शासन करता था। किले के पास लम्बा और उतार-चढ़ाव भरा इतिहास है, जिसने कई आक्रमणों और हाथों के बदलने को देखा है।
कटोच वंश: कटोच वंश कांगड़ा में एक प्रमुख शासक परिवार था। उन्होंने इस क्षेत्र में अपनी प्रमुखता स्थापित की और कांगड़ा की संस्कृति और धरोहर में अपना योगदान दिया। कटोच वंश के राजा भुरि सिंह को कांगड़ा की संस्कृति और धरोहर के लिए उनके योगदान के लिए जाना जाता है।
आक्रमण: कांगड़ा का मध्यकालीन इतिहास कई आक्रमणों से चिह्नित था, जैसे कि 11वीं सदी में महमूद ऑफ गजनी और 12वीं सदी में मुहम्मद गजनवी द्वारा। इन आक्रमणों ने कांगड़ा घाटी की धन और खजाने की लूट की थी।
सांस्कृतिक प्रगति: आक्रमणों और उथल-पुथल के बावजूद, कांगड़ा सांस्कृतिक रूप से फलने लगा। इसे भारतीय कला के महत्वपूर्ण योगदान के रूप में माना जाता है, जिसमें उसकी दिलकश और गीतिक शैली के साथ कांगड़ा पेंटिंग का स्कूल मशहूर हुआ।
मुग़ल शासन: मध्यकालीन काल में कांगड़ा क्षेत्र मुग़ल प्रभाव के अधीन आया। मुग़ल साम्राज्य ने क्षेत्र पर नियंत्रण जमाया और इसे अपना हिस्सा बना लिया।
सिख शासन: 18 वीं सदी के अंत में, कांगड़ा घाटी को महाराजा रणजीत सिंह के सिख साम्राज्य ने जोड़ लिया। इस क्षेत्र ने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने 19वीं सदी के बीच जब तक कब्ज़ा नहीं किया था।
ब्रिटिश शासन: ब्रिटिश औपचारिक काल के दौरान, कांगड़ा बड़े पंजाब क्षेत्र का हिस्सा बन गया। ब्रिटिश ने इस क्षेत्र में सड़कों और रेलवे जैसे महत्वपूर्ण बुनाई काम किए।
स्वतंत्रता और आधुनिक काल: 1947 में भारत को स्वतंत्रता प्राप्त होने के बाद, कांगड़ा जिला नए बनाए गए हिमाचल प्रदेश का हिस्सा बन गया। तब से यह प्राकृतिक सौंदर्य, ऐतिहासिक स्थलों, और सांस्कृतिक धरोहर के कारण एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल में विकसित हुआ है, जो दुनियाभर से पर्यटकों और इतिहास शौकिनों को आकर्षित करता है।
आज, कांगड़ा जिले का मध्यकालीन इतिहास उसके कई ऐतिहासिक स्थलों में प्रकट होता है, जैसे कि कांगड़ा किला, विभिन्न मंदिर, और कटोच वंश की विरासत। यह जिला आज भी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व की जगह है, जो दुनियाभर से पर्यटकों और इतिहास प्रेमियों को आकर्षित करती है।
काँगड़ा जिले के इतिहास का कटोच वंश के साथ सबंध : कटोच वंश का सबंध हिमाचल प्रदेश के साथ बहुत पुराना है। सभी कटोच राजाओं में से महाराजा संसार चंद काँगड़ा के सबसे शक्तिशाली राजा थे जिन्हीने काँगड़ा का संगठित करते हुए काँगड़ा को पहाड़ी राज्य बनांने की कोशिश की। महाराजा संसार चंद काँगड़ा पर ही नहीं त्रिगर्त रियायत पर कब्जा करने का ख्वाब रखते थे।
पर उस वक्त सिखों के सम्राट महाराजा रणजीत सिंह ने इस सपने को पूरा नहीं होने दिया। उसके बाद कटोच वंश के राजा संसार चंद ने पहाड़ी रियासतों को संगठित करने का प्रयास किया। इस कार्य में उन्होंने पहाड़ी राजाओं के साथ लड़ाइयां भी लड़ी और विद्रोहियों को काँगड़ा के किले में कैद भी किया था।
1806 में गोरखाओं ने इस किले अपर आक्रमण कर दिया और उसे अपने कब्जे में कर लिया। महाराजा संसार चाँद ने फिर सिख राजा महाराजा रंजीत सिंह से मदद मांगी और काँगड़ा जिले को गोरखों से आजाद करवाया था।
- 1615 ईस्वी में थॉमस कोरियट इस जिले में आये।
- 1666 ईस्वी में थेनवोट ने इस जिले की यात्रा की।
- 1783 में फोस्टर इस जिले में आये।
- विलियम मूरक्राफ्ट ने इस जिले की 1783 में यात्रा की।
- महमूद गजनवी ने 1009 ईस्वी में कांगड़ा की और रुख किया उस वक्त कांगड़ा के राजा जगदीश चंद्र थे।
- 1043 ईसवी में काँगड़ा के किले पर तुर्कों ने अपने कब्जे में ले लिया।
- 1043 में इस किले को आजाद करवाया गया पर 1051 -52 में फिर इस किले को तुर्कों ने अपने कब्जे में ले लिया।
- 1060 में पहाड़ी राजाओं ने इस जिले या काँगड़ा के किले को अपने कब्जे में ले लिया।
- 1337 ईस्वी में मुहम्मद बिन तुगलक ने कांगड़ा पर आक्रमण किया उस समय कांगड़ा का राजा पृथ्वी चंद था।
- 1365 ईसवी में फिरोजशाह तुगलक ने कांगड़ा पर हमला किया उस समय रूपचंद कांगड़ा के राजा थे।
- फिरोजशाह का पुत्र नसीरुद्दीन 1389 में भाग कर महाराजा संसार चंद के यहाँ शरण ली थी।
- फिरोजशाह तुगलक ने ज्वालामुखी मंदिर से 1300 पुस्तकों को फारसी में अनुवाद करने का निर्देश दिया।
- इन किताबों का इजुद्दीन ख़ालिद खानी द्वारा दलील ए फ़िजाशी नाम से फ़ारसी में अनुवाद किया गया था।
- 1398 में तैमूरलंग ने इस रियासत पर कब्ज़ा किया उस वक्त मेघ चंद इसके राजा थे।
- महाराजा रंजीत सिंह और ब्रिटश सेना में आपस में युद्ध हुआ और ब्रिटश सेना ने इस जिले को अपने कब्जे में ले लिया। 1905 में काँगड़ा में भीषण भूकंप आया जिसे कांगड़ा जिले को बहुत नुक्सान हुआ और ब्रिटिश सेना इस जिले को छोड़ कर चले गए।
- 1660 ईस्वी से 1697 ईस्वी तक - बीजापुर
- 1697 ईस्वी -1748 ईस्वी - आदमपुर
- 1761 ईस्वी -1824 ईस्वी - सुजानपुर
- 1660 ईस्वी से पहले और बाद में -1824 कांगड़ा की राजधानी कांगड़ा शहर थी।
- 1855 में, अंग्रेजों ने धर्मशाला को कांगड़ा की राजधानी बनाया।
- विजय राम सिंह ने 1660 ईसवी से 1697 ईसवी तक काँगड़ा पर राज किया।
- विजय राम सिंह ने बीजापुर शहर की स्थापना की और इसे अपनी राजधानी बनाया।
- आलम चंद ने 1897 ईसवी से 1700 ईसवी तक काँगड़ा पर राज किया।
- 1700 ईसवी) आलम चंद ने 1697 ईसवी में सुजानपुर के पास आलम पुर शहर की नींव रखी।
- अभय चंद ने 1747 ईस्वी से 1750 ईस्वी तक राज किया।
- अभय चंद ने ठाकुरद्वारा और 1748 ईस्वी में तेहरा में एक किला स्थापित किया।
- घमंड चंद ने 1751 ईस्वी से 1774 ईस्वी तक इस जिले में शासन किया।
- घमंड चंद ने 1761 ईस्वी में जौनपुर शहर की स्थापना की थी।
- अहमद शाह दुर्रानी ने काँगड़ा पर कब्जा किया।
हिमाचल प्रदेश के भारतीय राज्य में स्थित कांगड़ा जिला का एक समृद्ध और विविध इतिहास है जो हजारों साल का है। यहां कांगड़ा जिले के आधुनिक इतिहास का एक संक्षेप दिया गया है:
कांगड़ा कई सदियों से विभिन्न राजपूत वंशों के नियंत्रण में रहा एक प्रिंसली राज्य था। हालांकि, 19वीं सदी में, यह ब्रिटिश औद्योगिक प्रभाव के तहत आया। ब्रिटिश ने क्षेत्र में अपनी प्राधिकृति स्थापित की और प्रशासनिक परिवर्तन की शुरुआत की।
पहला अंग्लो-सिख युद्ध (1845-1846):
कांगड़ा पहले अंग्लो-सिख युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाया, जिसमें ब्रिटिश पूर्वी भारत कंपनी और सिख साम्राज्य के बीच लड़ाई हुई। 1846 में ब्रिटिश ने कांगड़ा किला, एक ऐतिहासिक और रणनीतिक महत्वपूर्ण किला, को जीत लिया।
दूसरा अंग्लो-सिख युद्ध (1848-1849):
दूसरे अंग्लो-सिख युद्ध के दौरान, कांगड़ा एक बार फिर संघर्ष देखा। इस युद्ध में ब्रिटिश की जीत ने पंजाब क्षेत्र, जिसमें कांगड़ा भी था, को ब्रिटिश भारत में सम्मिलित कर दिया।
स्वतंत्रता के बाद की आवधि (20 वीं सदी):
1947 में भारत की स्वतंत्रता प्राप्त होने के बाद, 1948 में कांगड़ा जिला ने हिमाचल प्रदेश के नए गठन में शामिल हो गया। इस अवधि के दौरान जिले में महत्वपूर्ण राजनीतिक और प्रशासनिक परिवर्तन हुए।
विकास और पर्यटन:
20 वीं सदी के दूसरे भाग में और 21वीं सदी में, कांगड़ा जिले ने विशेष रूप से शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और बुनाई जैसे क्षेत्रों में महत्वपूर्ण विकास देखा है। जिले की प्राकृतिक सौन्दर्य और ऐतिहासिक स्थलों ने इसे प्रसिद्ध पर्यटन स्थल बना दिया है।
सांस्कृतिक धरोहर:
कांगड़ा प्राचीन पहाड़ी कला, संगीत और नृत्य फॉर्म्स के लिए अपनी दोस्ती भरी सांस्कृतिक धरोहर के लिए जाना जाता है। कांगड़ा की छोटी चित्रकला की शाला, जो इस क्षेत्र में उत्पन्न हुई, अपने जटिल और ब्रिलियंट काम के लिए प्रसिद्ध है।
प्राकृतिक आपदाएँ:
इस क्षेत्र ने भूकंप और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं का सामना भी किया है, जिनका इसके विकास और बुनाई में महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है।
कृषि और उद्यानिकी, जैसे की चाय की खेती, कांगड़ा में महत्वपूर्ण आर्थिक गतिविधियाँ रही हैं। जिला अपने पारंपरिक हस्तशिल्प और हाथकरघा उत्पादों के लिए भी प्रसिद्ध है।
आधुनिक चुनौतियाँ और विकास:
हाल के सालों में, कांगड़ा जिला ने पर्यावरण संरक्षण, सतत विकास, और सांस्कृतिक धरोहर की सराहना करते हुए पर्यटन को बढ़ावा देने जैसी आधुनिक चुनौतियों का सामना किया है।
आज, कांगड़ा जिला को केवल इसके ऐतिहासिक महत्व के लिए ही नहीं, बल्कि इसकी प्राकृतिक सौन्दर्य के लिए भी जाना जाता है, जिससे यह पर्यटकों के लिए एक प्रसिद्ध स्थल और एक क्षेत्र है जो आधुनिक युग में विकसित हो रहा है।"