HP, Hamirpur District History in Hindi : नमस्कार दोस्तों हमीरपुर हिमाचल प्रदेश का एक जिला है और हमीरपुर जिले के इतिहास के बारे में हर कोई जानना चाहता है। इसलिए हिमाचल प्रदेश में होने वाली परीक्षाओं में हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर जिले से एक सवाल जरूर पूछा जाता है। इसके इलावा हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर जिले का इतिहास बहुत रोचक है इसलिए इसे ध्यान से पढ़ें। हिमाचल प्रदेश में होने वाली सभी परीक्षाओं में सवाल इस जिले के इतिहास से पूछे जाते हैं।
हिमाचल प्रदेश | हमीरपुर जिले का इतिहास:
हिमाचल प्रदेश को देवी देवताओं की धरती कहा जाता है। हमीरपुर जिले के 6 विकास खंड है। हमीरपुर, नादौन, बिझड़ी, भोरंज, सुजानपुर, बमसन हिमाचल प्रदेश के विकास खंडों के नाम हैं। हिमाचल प्रदेश के उप -मंडलों की संख्या पांच है जिनका नाम क्रमश हमीरपुर, नादौन, बड़सर, भोरंज , सुजानपुर है। हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर जिले में कुल जो ग्राम पंचायतें हैं। उनकी संख्या निचे दी गई है।
हिमाचल के हमीरपुर जिले की पंचायतें :
- हमीरपुर विकासखंड -- 25 पंचायतें
- नादौन विकास खंड में --- 59 पंचायत
- बिझड़ी विकाश खंड में -- 52 पंचायतें
- भोरंज विकास खंड में -- 39 पंचायतें
- सुजानपुर विकासखंड में -- 22 पंचायतें
- बड़सर विकासखंड में -- 51 पंचायतें
महाभारत काल में ये त्रिगर्त का हिस्सा था, त्रिगर्त का अर्थ है तीन नदियों के बीच का साम्राज्य। इस त्रिगर्त साम्राज्य का नाम बाद में जालंधर के नाम से जाना गया जो आज पंजाब राज्य का हिस्सा है। महाभारत काल में जालंधर एक राक्षस था जिसका वध पांडवों ने किया था। तो महाभारत काल के इतिहास ने इस जिले को महान योद्धाओं के रूप में बताया है।
कटोच वंश के शासन काल को हमीरपुर का पहला स्वर्ण काल कहते हैं और उन्ही के नाम पर हमीरपुर जिले का नाम पड़ा। उन्होंने हमीरपुर जिले में एक किले का निर्माण भी करवाया था।
हमीरपुर जिले का इतिहास में राजा संसार चंद की भूमिका : राजा संसार चंद के शासन काल को हमीरपुर जिले का दूसरा स्वर्ण युग कहा जाता है उन्होंने यहां पर मंदिर का निर्माण और हमीरपुर में एक किले का निर्माण करवाया था जिसे आज भी लोग देखने आते है इस किले को "खजांची" किले के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इस किले माँ महाराजा संसार चंद का खजाना मौजूद है और ये किला हमीरपुर जिले की तहसील सुजानपुर तिहरा तहसील में स्थित है जो 1884 में बनाया गया था। महाराजा संसार चंद ने हमीरपुर में 1775 तक राज किया था।
क्या था महाराजा संसार चंद का सपना : उस वक्त सिख धर्म के महान राजा महाराजा रंजीत सिंह थे। महाराजा संसार चंद का एक सपना था कि वे त्रिगर्त/ जालंधर पर अपना राज्य स्थापित करेंगे। पर ये सपना उनका पूरा नहीं हो सका और महाराजा रंजीत सिंह ने ये सपना उनका धवस्त कर दिया था। संसार चाँद ने दो बार असफल प्रयास भी किये पर सफल नहीं हो सके। इसके चलते उन्होंने त्रिगर्त का सपना छोड़ दिया और पहाड़ी रियासतों को एकत्रित करना शुरू किया मंडी के ईशवरी सेन को उन्होंने कैद कर लिया जो 12 साल तक बदायूं नामक जगह पर कैद रहे।
हमीरपुर जिले का इतिहास में राजा संसार चंद की भूमिका : राजा संसार चंद के शासन काल को हमीरपुर जिले का दूसरा स्वर्ण युग कहा जाता है उन्होंने यहां पर मंदिर का निर्माण और हमीरपुर में एक किले का निर्माण करवाया था जिसे आज भी लोग देखने आते है इस किले को "खजांची" किले के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इस किले माँ महाराजा संसार चंद का खजाना मौजूद है और ये किला हमीरपुर जिले की तहसील सुजानपुर तिहरा तहसील में स्थित है जो 1884 में बनाया गया था। महाराजा संसार चंद ने हमीरपुर में 1775 तक राज किया था।
क्या था महाराजा संसार चंद का सपना : उस वक्त सिख धर्म के महान राजा महाराजा रंजीत सिंह थे। महाराजा संसार चंद का एक सपना था कि वे त्रिगर्त/ जालंधर पर अपना राज्य स्थापित करेंगे। पर ये सपना उनका पूरा नहीं हो सका और महाराजा रंजीत सिंह ने ये सपना उनका धवस्त कर दिया था। संसार चाँद ने दो बार असफल प्रयास भी किये पर सफल नहीं हो सके। इसके चलते उन्होंने त्रिगर्त का सपना छोड़ दिया और पहाड़ी रियासतों को एकत्रित करना शुरू किया मंडी के ईशवरी सेन को उन्होंने कैद कर लिया जो 12 साल तक बदायूं नामक जगह पर कैद रहे।
काटोच वंश के महान राजा संसार चंद के अत्याचारों से बचने के लिए पहाड़ी राजाओं ने गोरखाओं को आमत्रित किया जो उस वक्त सोलन रियासत में शासन करते थे। गोरखा और पहाड़ी राजाओं की संयुक्त सेना और महाराजा संसार चाँद का हमीरपुर के मोरियाँ महल में सक मुकाबला हुआ पर उसमे गोरखा और पहाड़ी राजाओं को हार का सामना करना पड़ा।
जनरल मुहमद की सलाह पर महाराजा संसार चंद की अर्थव्यवस्था डगमगा और संयुक्त सेना ने हमीरपुर के उसी स्थान दूसरी लड़ाई की और कटोच वंश के राजा संसार चंद को हार का सामना करना पड़ा। ये लड़ाई 1806 में हुई थी।
जनरल मुहमद की सलाह पर महाराजा संसार चंद की अर्थव्यवस्था डगमगा और संयुक्त सेना ने हमीरपुर के उसी स्थान दूसरी लड़ाई की और कटोच वंश के राजा संसार चंद को हार का सामना करना पड़ा। ये लड़ाई 1806 में हुई थी।
गोरखाओं ने इस जिले में संसार चंद के हारने के बाद भारी लूट पात मचाई और अत्याचार किया। संसार चंद ने मंडी के राजा ईश्वरी सेह को जहां कैद किया था उसको भी उन्होंने छोड़ दिया। परिणाम स्वरूप संसारचंद को सिखों के राजा महाराज रंजिर सिंह को आग्रह करना पड़ा और इस आग्रह को महाराज रणजीत सिंह ने मान लिया परिणाम सवरूप सिखो और गोरखाओं में 1809 में युद्ध हुआ और इसमें गोरखाओं की हार हुई।
पर इसका भी संसार चंद को भारी कीमत चुकानी पड़ी और काँगड़ा के 66 गांव को महाराजा रणजीत सिंह को देने पड़े। 1846 में एंग्लो-सिख युद्ध हुआ पर सीखो ने हमीरपुर पर अपना कब्जा बना के रखा।
पर इसका भी संसार चंद को भारी कीमत चुकानी पड़ी और काँगड़ा के 66 गांव को महाराजा रणजीत सिंह को देने पड़े। 1846 में एंग्लो-सिख युद्ध हुआ पर सीखो ने हमीरपुर पर अपना कब्जा बना के रखा।
हमीरपुर जिए का गठन और पुनर्गठन :
पर पंजाब के पुनर्गठन के बाद यह काँगड़ा का हिस्सा बना। 1 सितम्बर 1972 में हिमचाल प्रदेश का अपने जिलों का पुनर्गठन हुआ और हमीरपुर जिले को दो तहसीलें दी गई वे थी हमीरपुर और भोरंज तहसील। सुजानपुर टिहरा, बदायूं और भोरंज उप तहसील के रूप में 1980 में आई।
हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर जिले की प्रमुख रियासतें :
1. सुजानपुर टीहरा रियासत : सुजानपुर टीहरा आज हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर जिले का हिस्सा है। सुजानपुर टिहरा का इतिहास भी हिमाचल प्रदेश के पहाड़ी राजाओं से जुड़ा हुआ है। इस जिले का राजा अभयचन्द एक प्रसिद्ध राजा था जिसने सुजानपुर टिहरा रियासत के विकास कार्यों में काम किया और इस जिले सुजानपुर टिहरा की सुंदर पहाड़ियों में किले और महल का निर्माण किया। 1748 ईस्वी में सुजानपुर टिहरा में जो किला बनाया गया था वह राजा अभयचन्द ने ही बनवाया था।
घमंडचंद हमीरपुर जिले का शक्तिशाली राजा था जिसने हमीरपुर जिले में मंदिर निर्माण किया जिसका नाम चामुंडा देवी मंदिर है। राजा संसार चंद जो हिमाचल प्रदेश का प्रसिद्ध राजा था उन्होंने हमीरपुर जिले के सुजानपुर टिहरा को अपने साम्राज्य की राजधानी नियुक्त किया था। राजा संसार चंद ने भी इस जिले के लिए मिर्माण कार्य किये और प्रसिद्ध मंदिर गोरी मंदिर का निर्माण किया। सुजानपुर टिहरा में आज जो होली का त्यौहार प्रसिद्ध है उसका श्रेय भी महाराजा संसार चंद को जाता है।
2. नादौन रियासत : आज जो नादौन तहसील है वह हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर जिले में स्थित है। इस रियासत का इतिहास यहां के प्रसिद्ध राजा,राजा भीम चंद और सिखों के दसवें गुरु,गुरु गोविन्द सिंह जी से जुड़ा हुआ है जो जानकारी महत्वपूर्ण है। यह रियासत जो व्यास नदी के किनारे स्थित है, इसी रियासत में बिलासपुर के राजा भीमचंद ने और गुरु गोविन्द सिंह जी ने 1687 ईस्वी में मुगलों के अत्याचार से बचने के लिए मिलकर युद्ध किया था और मुग़लों को हराया था।
2. नादौन रियासत : आज जो नादौन तहसील है वह हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर जिले में स्थित है। इस रियासत का इतिहास यहां के प्रसिद्ध राजा,राजा भीम चंद और सिखों के दसवें गुरु,गुरु गोविन्द सिंह जी से जुड़ा हुआ है जो जानकारी महत्वपूर्ण है। यह रियासत जो व्यास नदी के किनारे स्थित है, इसी रियासत में बिलासपुर के राजा भीमचंद ने और गुरु गोविन्द सिंह जी ने 1687 ईस्वी में मुगलों के अत्याचार से बचने के लिए मिलकर युद्ध किया था और मुग़लों को हराया था।
रियासत की और हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर जिले के इतिहास की एक दिलचस्प घटना मंडी के राजा ईश्वरी सेन और महाराजा संसार चंद से जुडी हुई है ,जब महाराजा संसार चंद ने मंडी के राजा ईष्वरी सेन को बारह वर्षों तक नादौन की जेल में कैद किया था। प्रसिद्ध यात्री मूरक्राफ्ट ने 1820 में नादौन रियासत का भ्रमण किया था।
हिमाचल प्रदेश उत्तरी भारत में एक राज्य है, जिसका ऐतिहासिक धरोहर और विविध संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है। हमीरपुर इसके जिलों में से एक है, और जैसा कि हिमाचल प्रदेश के कई अन्य क्षेत्रों में है, इसमें एक प्राचीन इतिहास है। यहां हमीरपुर जिले के इतिहास का एक अवलोकन है:
प्राचीन निवासी: जो क्षेत्र अब हमीरपुर जिला है, उसमें विभिन्न जनजातीय समुदायों द्वारा शताब्दियों से बास लिया गया है। इनमें कटोच, गद्दीस, और चंदेला आदि जनजातियाँ शामिल हैं। वे कृषि और पशुपालन का अभ्यास करते थे और उनकी अपनी विशिष्ट संस्कृति और परंपराएँ थीं।
मध्यकालीन काल: मध्यकालीन काल में, इस क्षेत्र को विभिन्न राजवंशों और शासकों के प्रभाव के तहत आया। विशेष रूप से, कटोच राजवंश ने हमीरपुर के इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने इस क्षेत्र में अपनी सत्ता स्थापित की और कांगड़ा में अपनी राजधानी बसाई। कटोच शासक आर्ट, संस्कृति, और वास्तुकला में अपना योगदान करने के लिए प्रसिद्ध थे।
मुग़लों और सिखों का प्रभाव: उत्तरी भारत के कई हिस्सों की तरह, 16वीं और 17वीं सदी में हमीरपुर जिला भी मुग़ल साम्राज्य के प्रभाव के अंतर्गत आया। बाद में, 18वीं सदी में, इस क्षेत्र ने महाराजा रणजीत सिंह के नेतृत्व में सिख साम्राज्य के उत्थान का साक्षात्कार किया। सिख इस क्षेत्र पर नियंत्रण बनाए रखते थे, और यह उनके साम्राज्य का हिस्सा रहा, जिसे 19वीं सदी में ब्रिटिश पूर्व भारत कंपनी ने जब्त किया।
ब्रिटिश औद्योगिक काल: ब्रिटिश गुलामी काल में क्षेत्र के प्रशासन और बुनाई के संरचना में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए। हमीरपुर जिला ब्रिटिश शासन के तहत बड़े पंजाब क्षेत्र का हिस्सा था। ब्रिटिश ने नई प्रशासनिक व्यवस्थाएँ प्रस्तुत की और सड़कों और रेलवे के निर्माण के माध्यम से कनेक्टिविटी को बेहतर बनाया।
स्वतंत्रता के बाद: 1947 में भारत की स्वतंत्रता प्राप्त होने के बाद, 1971 में हिमाचल प्रदेश एक अलग राज्य बन गया, जिसमें हमीरपुर एक जिला था। इस क्षेत्र ने तब से शिक्षा, स्वास्थ्य, और बुनाई जैसे क्षेत्रों में आधुनिकीकरण और विकास देखा है।
सांस्कृतिक धरोहर: हमीरपुर, हिमाचल प्रदेश के बाकी हिस्सों की तरह, एक धनी सांस्कृतिक धरोहर रखता है। इस जिले के लोग दिवाली, दशहरा, और नवरात्रि जैसे त्योहारों का उत्सव धूमधाम से मनाते हैं। परंपरागत लोक संगीत और नृत्य भी स्थानीय संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।
पर्यटन: हमीरपुर जिले की प्राकृतिक सौन्दर्य, उसकी हरियाली भरी पहाड़ियों, नदियों, और जंगलों के साथ, पर्यटकों को आकर्षित करता है, जो इसकी दृश्य सौन्दर्य देखने और इसकी सांस्कृतिक धरोहर का अनुभव करने आते हैं। इस जिले में ऐतिहासिक स्थल और मंदिर भी हैं, जैसे कि सुजानपुर तीरा किला और नदौन किला, जो ऐतिहासिक और वास्तुकला के महत्वपूर्ण हैं।
संक्षेप में, हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर जिले में विभिन्न राजवंशों, जनजातियों, और साम्राज्यों के योगदान को समाहित करने वाला एक धनी और विविध इतिहास है। आज, यह हिमाचल प्रदेश के महत्वपूर्ण हिस्से के रूप में खड़ा है, जो राज्य की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर में योगदान करता है।
हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर जिले इतिहास का अवलोकन :
प्राचीन निवासी: जो क्षेत्र अब हमीरपुर जिला है, उसमें विभिन्न जनजातीय समुदायों द्वारा शताब्दियों से बास लिया गया है। इनमें कटोच, गद्दीस, और चंदेला आदि जनजातियाँ शामिल हैं। वे कृषि और पशुपालन का अभ्यास करते थे और उनकी अपनी विशिष्ट संस्कृति और परंपराएँ थीं।
मध्यकालीन काल: मध्यकालीन काल में, इस क्षेत्र को विभिन्न राजवंशों और शासकों के प्रभाव के तहत आया। विशेष रूप से, कटोच राजवंश ने हमीरपुर के इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने इस क्षेत्र में अपनी सत्ता स्थापित की और कांगड़ा में अपनी राजधानी बसाई। कटोच शासक आर्ट, संस्कृति, और वास्तुकला में अपना योगदान करने के लिए प्रसिद्ध थे।
मुग़लों और सिखों का प्रभाव: उत्तरी भारत के कई हिस्सों की तरह, 16वीं और 17वीं सदी में हमीरपुर जिला भी मुग़ल साम्राज्य के प्रभाव के अंतर्गत आया। बाद में, 18वीं सदी में, इस क्षेत्र ने महाराजा रणजीत सिंह के नेतृत्व में सिख साम्राज्य के उत्थान का साक्षात्कार किया। सिख इस क्षेत्र पर नियंत्रण बनाए रखते थे, और यह उनके साम्राज्य का हिस्सा रहा, जिसे 19वीं सदी में ब्रिटिश पूर्व भारत कंपनी ने जब्त किया।
ब्रिटिश औद्योगिक काल: ब्रिटिश गुलामी काल में क्षेत्र के प्रशासन और बुनाई के संरचना में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए। हमीरपुर जिला ब्रिटिश शासन के तहत बड़े पंजाब क्षेत्र का हिस्सा था। ब्रिटिश ने नई प्रशासनिक व्यवस्थाएँ प्रस्तुत की और सड़कों और रेलवे के निर्माण के माध्यम से कनेक्टिविटी को बेहतर बनाया।
स्वतंत्रता के बाद: 1947 में भारत की स्वतंत्रता प्राप्त होने के बाद, 1971 में हिमाचल प्रदेश एक अलग राज्य बन गया, जिसमें हमीरपुर एक जिला था। इस क्षेत्र ने तब से शिक्षा, स्वास्थ्य, और बुनाई जैसे क्षेत्रों में आधुनिकीकरण और विकास देखा है।
सांस्कृतिक धरोहर: हमीरपुर, हिमाचल प्रदेश के बाकी हिस्सों की तरह, एक धनी सांस्कृतिक धरोहर रखता है। इस जिले के लोग दिवाली, दशहरा, और नवरात्रि जैसे त्योहारों का उत्सव धूमधाम से मनाते हैं। परंपरागत लोक संगीत और नृत्य भी स्थानीय संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।
पर्यटन: हमीरपुर जिले की प्राकृतिक सौन्दर्य, उसकी हरियाली भरी पहाड़ियों, नदियों, और जंगलों के साथ, पर्यटकों को आकर्षित करता है, जो इसकी दृश्य सौन्दर्य देखने और इसकी सांस्कृतिक धरोहर का अनुभव करने आते हैं। इस जिले में ऐतिहासिक स्थल और मंदिर भी हैं, जैसे कि सुजानपुर तीरा किला और नदौन किला, जो ऐतिहासिक और वास्तुकला के महत्वपूर्ण हैं।
संक्षेप में, हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर जिले में विभिन्न राजवंशों, जनजातियों, और साम्राज्यों के योगदान को समाहित करने वाला एक धनी और विविध इतिहास है। आज, यह हिमाचल प्रदेश के महत्वपूर्ण हिस्से के रूप में खड़ा है, जो राज्य की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर में योगदान करता है।