हम सभी जानते हैं की हिमाचल प्रदेश के मेले और त्योहार हिमाचल प्रदेश के देवी देवताओं और आस्था से भी काफी जुड़े हुए है। हिमाचल प्रदेश के रीती-रिवाज अलग अलग क्षेत्र में अलग अलग कलाओं से जुड़े हुए हैं। यहां के मेले और त्योहारों में लोग मधुर सयंत्रों के साथ नाच और नृत्य का प्रदर्शन कर अपनी प्रथा का प्रचार और कला को कायम करते हैं।
GK Pustak के इस आर्टिकल में हम हिमाचल प्रदेश के काँगड़ा जिले के मेले और त्यौहार के सामान्य ज्ञान की जानकारी देने की कोशिश करेंगे की कांगड़ा जिले में कौन से मेले और त्यौहार मनाये जाते हैं।
कांगड़ा जिले के मेले और त्यौहार | Kangra District Fairs & Festivals in Hindi
हिमाचल प्रदेश के ज़िला काँगड़ा में मुख्य तौर से ज़िला स्तर , राज्य स्तर के और के 11 मेले होते हैं। इन मेले और त्योहारों का विवरण नीचे दिया गया है।1. नागिनी माता का मेला (Fair of Nagini Mata ) : ये मेला श्रावण मास में मनाया जाता है। ये मेला हिमाचल के कांगड़ा जिले के नूरपुर तहसील में मनाया जाता है। ये मेला नाग देवता को समर्पित इसलिए इस मेले में नाग देवता की पूजा की जाती है कांगड़ा जिले के सभी लोकल लोग इस मेले को बड़े ही उत्साह से मानते हैं।
2. शिवरात्रि मेला (Shivratri Mela ) : शिवरात्रि का त्यौहार वैसे तो पुरे भारत में बड़े ही उत्साह से मनाया जाता है पर हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के काठगढ़ में ये त्यौहार बड़े ही हर्षोउल्लाश से मनाया जाता हिअ। ये मेला भी काँगड़ा जिले का ज़िले level का मेला है। ये मेला काँगड़ा के काठगढ़ में मनाया जाता है। शिवरात्रि वाले दिन इस मेले का पूजन होता है और भगवान शिव की पूजा की जाती है।
4. ज्वालामुखी मेला (Jwalamukhi Mela ) : ये मेला काँगड़ा जिले के ज्वालामुखी तहसील में होता है और हर साल नवरात्रों में मनाया जाता है। ये मेला माता ज्वाला जी को समर्पित है जो हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के लोगों द्वारा ही नहीं बल्कि सभी हिन्दू धर्म की आस्था रखने वालों द्वारा मनाया जाता है।
3. डल मेला (Dal Mela ) : डल मेला भारत के हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में आयोजित किया जाता है। यह मेला हर साल अगस्त के महीने में मनाया जाता है। इस मेले में स्थानीय लोग भाग लेते हैं। इस मेले का इतिहास बहुत पुराना है। कांगड़ा जिले में धर्मशाला से लगभग 12 किमी दूर एक डल झील है, इसके तट पर यह मेला लगता है। डल झील कांगड़ा जिले में स्थित एक छोटी सी झील है जिसका इतिहास 200 साल पुराना है और यहां के दुर्वासा ऋषि से जुड़ा हुआ है।
इस झील की समुद्र तल से ऊंचाई करीब 1,775 मीटर है। यह मेला मक्लोटगंज से 2 किमी पश्चिम में डल झील के किनारे लगता है। हरे-भरे देवदार के पेड़ों के बीच लोग झील का आनंद लेते हैं और मेले का आनंद लेते हैं। डल झील अपनी सुंदरता और तीर्थस्थल के लिए प्रसिद्ध है। इस मेले की खासियत यह है कि इस मेले में भगवान शिव की पूजा की जाती है और यहां एक पौराणिक शिव मंदिर भी है जो यहां के लोगों की आस्था का प्रतीक है।
इस झील की समुद्र तल से ऊंचाई करीब 1,775 मीटर है। यह मेला मक्लोटगंज से 2 किमी पश्चिम में डल झील के किनारे लगता है। हरे-भरे देवदार के पेड़ों के बीच लोग झील का आनंद लेते हैं और मेले का आनंद लेते हैं। डल झील अपनी सुंदरता और तीर्थस्थल के लिए प्रसिद्ध है। इस मेले की खासियत यह है कि इस मेले में भगवान शिव की पूजा की जाती है और यहां एक पौराणिक शिव मंदिर भी है जो यहां के लोगों की आस्था का प्रतीक है।
4. ज्वालामुखी मेला (Jwalamukhi Mela ) : ये मेला काँगड़ा जिले के ज्वालामुखी तहसील में होता है और हर साल नवरात्रों में मनाया जाता है। ये मेला माता ज्वाला जी को समर्पित है जो हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के लोगों द्वारा ही नहीं बल्कि सभी हिन्दू धर्म की आस्था रखने वालों द्वारा मनाया जाता है।
5. कालेश्वर मेला (Kaleshvar Fair ) : ये भी कांगड़ा ज़िले का राज्य स्तरीय मेला है और बैसाखी वाले दिन अप्रैल महीने में मनाया जाता है।
6 बैजनाथ का शिवरात्रि मेला (Shivratri Fair of Baijnath ); काठगढ़ का शिवरात्रि मेला ज़िला स्तर का मेला है जबकि बैजनाथ का मेला काँगड़ा ज़िले का राज्य स्तरीय मेला है ये शिवरात्रि वाले दिन मनाया जाता है।
7. धर्मशाला का ग्रीष्मोत्सव मेला --- ये मेला धर्मशाला में मनाया जाता है। ये राज्य स्तर का मेला मई महीने में मनाया जाता है।
8. पालमपुर लोहड़ी मेला ----- ये मेला काँगड़ा जिले के पालमपुर तहसील में मनाया जाता है ये मेला लोहड़ी के आने पर जनवरी महीने में मनाया जाता है।
9. रंगो का होली मेला --- ये मेला काँगड़ा जिले के हर तह सील में होली वाला दिन मार्च month में मनाया जाता है।
10 - मकर संक्रांति काँगड़ा का मेला
हम सभी जानते हैं कि हालांकि मकर संक्रांति भारतीय त्योहार है, पर इसे कांगड़ा में थोड़ा अलग तरीके से मनाया जाता है। पौराणिक विचारों में ऐसा कहा जाता है कि माता बृजेश्वरी को खतरनाक राक्षस महिषासुर से लड़ते हुए चोट पहुंच गई थी। खुद को ठीक करने के लिए उसने अपने घाव पर घी या स्पष्ट मक्खन लगाया और जल्द ही ठीक हो गया।
मकर संक्रांति के दौरान ब्रजेश्वरी मंदिर में सात दिनों के लिए एक बड़ा मेला लगता है और देवता को विशेष पूजा भी प्रदान की जाती है। मक्खन की मूर्तियां, फूलों की सजावटी त्यौहारों का उतना ही हिस्सा है जितना कि बाण गंगा में पवित्र डुबकी। देवता के लिए भजन या भजन भी बहुत जोड़ते हैं।
6 बैजनाथ का शिवरात्रि मेला (Shivratri Fair of Baijnath ); काठगढ़ का शिवरात्रि मेला ज़िला स्तर का मेला है जबकि बैजनाथ का मेला काँगड़ा ज़िले का राज्य स्तरीय मेला है ये शिवरात्रि वाले दिन मनाया जाता है।
7. धर्मशाला का ग्रीष्मोत्सव मेला --- ये मेला धर्मशाला में मनाया जाता है। ये राज्य स्तर का मेला मई महीने में मनाया जाता है।
8. पालमपुर लोहड़ी मेला ----- ये मेला काँगड़ा जिले के पालमपुर तहसील में मनाया जाता है ये मेला लोहड़ी के आने पर जनवरी महीने में मनाया जाता है।
9. रंगो का होली मेला --- ये मेला काँगड़ा जिले के हर तह सील में होली वाला दिन मार्च month में मनाया जाता है।
10 - मकर संक्रांति काँगड़ा का मेला
हम सभी जानते हैं कि हालांकि मकर संक्रांति भारतीय त्योहार है, पर इसे कांगड़ा में थोड़ा अलग तरीके से मनाया जाता है। पौराणिक विचारों में ऐसा कहा जाता है कि माता बृजेश्वरी को खतरनाक राक्षस महिषासुर से लड़ते हुए चोट पहुंच गई थी। खुद को ठीक करने के लिए उसने अपने घाव पर घी या स्पष्ट मक्खन लगाया और जल्द ही ठीक हो गया।
मकर संक्रांति के दौरान ब्रजेश्वरी मंदिर में सात दिनों के लिए एक बड़ा मेला लगता है और देवता को विशेष पूजा भी प्रदान की जाती है। मक्खन की मूर्तियां, फूलों की सजावटी त्यौहारों का उतना ही हिस्सा है जितना कि बाण गंगा में पवित्र डुबकी। देवता के लिए भजन या भजन भी बहुत जोड़ते हैं।
11- हरियाली Festival
वर्षा देव के सम्मान में श्रवण के पहले दिन (आमतौर पर 16 जुलाई) आयोजित किया जाता है। इस त्यौहार से दस दिन पहले पांच से सात अलग-अलग प्रकार के अनाजों को एक साथ मिलाया जाता है और धरती से भरी टोकरी में बोया जाता है।
यह या तो घर के मुखिया या परिवार के पुजारी द्वारा किया जाता है। हरियाली के दिन शिव और पार्वती की मिट्टी की मूर्तियों का विवाह किया जाता है क्योंकि भक्तों का मानना है कि यह उनका मिलन है, जो भूमि की उर्वरता का कारण बनता है।
12- कांगड़ा में सायर और नवल:
वर्षा देव के सम्मान में श्रवण के पहले दिन (आमतौर पर 16 जुलाई) आयोजित किया जाता है। इस त्यौहार से दस दिन पहले पांच से सात अलग-अलग प्रकार के अनाजों को एक साथ मिलाया जाता है और धरती से भरी टोकरी में बोया जाता है।
यह या तो घर के मुखिया या परिवार के पुजारी द्वारा किया जाता है। हरियाली के दिन शिव और पार्वती की मिट्टी की मूर्तियों का विवाह किया जाता है क्योंकि भक्तों का मानना है कि यह उनका मिलन है, जो भूमि की उर्वरता का कारण बनता है।
12- कांगड़ा में सायर और नवल:
काँगड़ा में सायर मूल रूप से धन्यवाद देने का त्योहार है और सितंबर या अक्टूबर में मनाया जाता है। एक टोक री व्यक्ति (गलगल) में एक फल के साथ चक्कर लगाता है और वहां निवासियों को एक समृद्ध फसल की कामना करते हैं। नवाला भी धन्यवाद का त्योहार है.
13- नवाला : काँगड़ा में ये भी एक उत्सव है लेकिन यह मुख्य रूप से कांगड़ा के अलग-अलग गद्दी परिवारों द्वारा मनाया जाता है। यह विशेष त्यौहार भगवान शिव को समर्पित है, जिनके बारे में माना जाता है कि उन्होंने सभी प्रकार के दुर्भाग्य और विपत्ति को दूर किया। इस पर्व में भगवान शिव की छवि एक भगवान पुजारी जिस को चेला कहते हैं देखी जाती है।
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