कुल्लू जिले के मेले और त्यौहार | HP GK | Kullu District Fairs and Festivals in Hindi

हिमाचल प्रदेश के मेले और त्योहार यहां के रहने वाले लोगों की,वेश- भूषा ,कला ,संस्कृति ,नृत्य ,सामाजिक रीती- रिवाजों ,समाजिक और धार्मिक आस्था के साथ काफी जुड़ी हुई है। हिमाचल प्रदेश के मेले और त्योहार हिमाचल प्रदेश के देवी देवताओं और आस्था से भी काफी जुड़े हुए है।

कुल्लू जिले में कौन से मेले और त्यौहार होते हैं इसके बारे में हिमाचल प्रदेश की परीक्षाओं में प्रश्न पूछा जा सजता है इसलिए इस आर्टिकल में हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले के फायर्स एंड फेस्टिवल्स के बारे में पढ़ेंगे। 


                                

 कुल्लू जिले के मेले और त्यौहार:


वसंतोत्सव:

बैशाख कुल्लू घाटी में खिलने वाले वसंत के मौसम का महीना है। इसलिए मेले का नाम बदलकर वसंतोत्सव या बसंत उत्सव कर दिया गया। सांस्कृतिक कार्यक्रम शास्त्रीय संगीत गीत और नृत्य के साथ आयोजित किए जाते हैं। अब हर साल 28 अप्रैल से 30 अप्रैल तक आयोजित किया जाता है। यह व्यापार के दृष्टिकोण से भी बहुत महत्वपूर्ण है।

लाहौल से जुड़े लोग घाटी में ठंड से गुजरने के बाद अपने मूल स्थान पर लौटने लगते हैं। यह मेला उन्हें अपने कृषि उपकरण और अन्य उपयोगी / जरूरतमंद उपकरणों और वस्तुओं को खरीदने का अवसर देता है।

शमशी विरशु:

कुल्लू में यह मेला यह मेला 1 बैसाख (13 अप्रैल) को एक दिन के लिए गांव खोखन में आयोजित किया जाता है। मेला धार्मिक और धार्मिक आस्था के साथ जुड़ा हुआ है । माना जाता है कि यहां पर आकर्षक सुंदरियों द्वारा इस स्थान पर नृत्य करती थीं, ये सुंदरियां ऋषियों और मुनियों की बेटियाँ थीं। यहां के स्थानीय निवासी खुद को उन ऋषियों और मुनियों की पुत्रियों का संतान मानते हैं।

देवी की पूजा मंदिर के बाहर की जाती है और फिर इसे मंदिर के अंदर ले जाया जाता है। यहाँ के युवा लोग जौ की पीली चादर चढ़ाते हैं जो विशेष रूप से माला के साथ देवी को चढ़ाने के अवसर के लिए बोई जाती हैं। तत्पश्चात महिलाओं ने देवी को ले जाने वाले रहटा के चारों ओर गीत गाए और नृत्य किया। देवी के बारे में भी नृत्य किया जाता है। पुरुष-दर्शक और दर्शक के रूप में।

भडोली मेला कुल्लू: 


कुल्लू में यह मेला हर 3 साल के बाद एक बार आयोजित किया जाता है। मेला 4 दिनों तक चलता है। इस मेले के लिए स्थानीय ब्राह्मण अधिकारियों द्वारा मेले के दिन तय किए जाते हैं। इस मेले का आयोजन ऋषि परशुराम की याद में किया जाता है।

हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह माना जाता है कि ऋषि परशुराम ने उस स्थान पर ध्यान या तपस्या की थी जहां मेला आयोजित किया जाता है। मेले के दिन पहले दिन देवी, देवताओं और उनके परिचारकों का भव्य स्वागत किया जाता है।

मेले के दूसरे दिन, स्थानीय पुरुषों और महिलाओं द्वारा नृत्य और गीतों के माध्यम से देवी-देवताओं को प्रसन्न किया जाता है। 3 वें दिन, देवी और देवताओं के जुलूस की व्यवस्था की जाती है। मेले के अंतिम दिन, एक सामुदायिक दावत का आयोजन किया जाता है और मेले का समापन होता है

 कुल्लू ज़िला का राष्ट्रीय स्तर का मेला | International Dussehra Festival

दशहरा (Dushehra )


ये मेला एक राष्ट्रीय स्तर का मेला है इसकी विशेषता ये है की ये लगातार 7 दिन तक चलता है। इस मेले की शुरुआत 1651 ई में वहां के राजा जगत सिंह द्वारा की गई। ये मेला मशहूर ground ढालपुर में मनाया जाता है। हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले का दशहरा कुल्लू में अपने में ही अंदाज में मनाया जाता है हालांकि देश के अन्य हिस्सों में दशहरा समारोह से कुछ खास तरीकों से अलग है।

दशहरा यहां लोगों के सांस्कृतिक लोकाचार और उनकी गहरी धार्मिक मान्यताओं को प्रस्तुत करता है जो इस त्योहार के दौरान पारंपरिक गीत, नृत्य और रंगीन पोशाक के साथ प्रकट होते हैं। यह विजयादशमी पर शुरू होता है और एक सप्ताह तक चलता है। दशहरा महोत्सव की शुरुआत के पीछे एक दिलचस्प कहानी है। और अब भी, कुल्लू का अंतर्राष्ट्रीय प्रसिद्ध दशहरा उसी परंपरा में मनाया जाता है।

कुल्लू के दुशहरे का इतिहास | History of Kullu Dussehra in Hindi

कुल्लू का दशहरा दुनिया में अपना अपना ही ही इतिहास रखता है। यहां के रीति रिवाजों के अनुसार, 17 वीं शताबदी में कुल्लू में जगत सिंह के नाम का राजा हुआ करता था। जगत सिंह का समृद्ध राज्य था। जनता उसके कार्यों और कार्यकलापों से खुश बह थी। एक दिन की बात है जगत सिंह ने एक किसी से एक बात सुनी कि उसकी रियासत में एक किसान है जिसके पास कीमती मोती हैं। 

राजा को इस बात का ज्ञान नहीं था कि ऐसा भी कोई व्यक्ति उसके राज्य में रहता है। जगत सिंह ने अपने सैनिकों को उस किसान के पास भेजा और मोतियों की मांग की। सैनिकों ने जाकर किसान से मोती मांगे बदले में किसान ने यह कहा की उसके पास कोई भी मोती नहीं हैं। किसान ने ये बात कही की उसके पास मोती हैं पर वे ज्ञान के मोती हैं। पर जगत सिंह के सैनिकों ने उसकी बात पर यकीन नहीं किया। किसान के इंकार करने पर सैनिकों ने उसे प्रताड़ित भी किया। अंत में सैनिकों ने उस किसान को राजा जगत सिंह लाया। 

जगत सिंह ने भी मोतियों की मांग की पर किसान ने फिर से वे ही बात कही और मोतियों से इंकार कर दिया। राजा जगत सिंह गुस्से में हो गया। गुस्से में राजा ने मारने के आदेश दिए। किसान इस बात से बहुत दुखी था। किसान ने मरने यया आत्मा हत्या करने से पहले राजा को श्राप दिया। कुछ दिनों तक राजा जगत सिंह ठीक रहा पर कुछ दिनों बाद राजा की तबीयत ख़राब होने लगी। राजा जगत सिंह ने सभी जगत इलाज करवाया पर राजा की तबियत में कोई भी सुधार नहीं हुआ। एक दिन राजा जगत सिंह फुहारी बाबा के नाम से जाने जाने वाले किशन दास नामक संत के पास गए संत ने उन्हें कुल्लू में भगवान रघुनाथ जी की प्रतिमा की स्थापना की सलाह दी। राजा ने वैसा ही किया और जुलाई 1651 में उत्तर प्रदेश अयोध्या के लिए रवाना हो गए। 

अयोध्या से उन्होंने भगवान रघुनाथ की मूर्ति लाई और बड़े ही रश्मों के साथ उस मूर्ति की स्थापना की। मूर्ति की स्थापना के साथ उन्होंने अपना सारा जीवन भगवान रघुनाथ को समर्पित कर दिया। रघुनाथ जी के चरणस्पर्श से जगत सिंह की असाध्य बीमारी ठीक हो गए। जगत सिंह ने अपना सारा जीवन भगवन रघुनाथ को समर्पित किया। उसी दिन से कुल्लू में दशहरा बड़ी ही धूम धाम से मनाया जाने लगा। आज भी कुल्लू में उस प्रतिमा की पूजा की जाती है।

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