राजस्थान के अलवर जिले का अपना इतिहास है, भौगोलिक स्थिति है, मंदिर है,वन्य जीव हैं पर्यटन स्थल हैं और भी ऐसी जानकारी है जिसका प्रश्न राजस्थान में होने वाली परीक्षाओं में हमेशा पूछा जाता है इसलिए GK Pustak के माध्यम से इस भाग में राजस्थान के अलवर जिले के सामान्य ज्ञान की जान कारी आपके लिए लाये है ताकि आगे होने वाली परीक्षाओं में अगर इस जिले में से कोई भी सवाल पूछा जाता है तो आपको आसानी हो सके। इस भाग में अलवर जिले के इतिहास, भौगोलिक स्थिति, प्रशासनिक ढांचा, जनसांख्यिकी, नदियों, मेलों, और पर्यटन स्थलों के सामान्य ज्ञान की जानकारी हिंदी में दी गई है।
Rajasthan Alwar District GK | राजस्थान के अलवर जिले की सम्पूर्ण जानकारी
इस जिले के नाम के पीछे अलग - अलग इतिहासकारों की अलग - अलग राय है। इतिहासकार कनिंघम का मानना है कि इस शहर का नाम सलवा नामक जनजाति से माना जाता है। ये जनजाति मुख्य रूप से सलवापुर के रहने वाले थे। एक अन्य इतिहासकार के अनुसार इसका नाम अरालपुर से पड़ा है जो अरावली पर्वत श्रेणी से बना है।
Rajasthan Alwar District GK | राजस्थान के अलवर जिले की सम्पूर्ण जानकारी
राजस्थान के अलवर जिले का इतिहास | Alwar District History GK
इस जिले के नाम के पीछे अलग - अलग इतिहासकारों की अलग - अलग राय है। इतिहासकार कनिंघम का मानना है कि इस शहर का नाम सलवा नामक जनजाति से माना जाता है। ये जनजाति मुख्य रूप से सलवापुर के रहने वाले थे। एक अन्य इतिहासकार के अनुसार इसका नाम अरालपुर से पड़ा है जो अरावली पर्वत श्रेणी से बना है।
कुछ लोग इसे एक शाषक अलावाल खान से मानते हैं। पर अगर सही तथ्यों की बात करें तो महाराज जय सिंह के समय उनके दूसरे बेटे ने यहां लगभग 1106 विक्रमी संवत (1049 ई।) में यहां राज किया था। और इस शहर का नाम अलवर रखा था।
जयसिंह के समय ये शहर उलावर के नाम से जाना जाता था पर बाद में ये शहर अलवर में बदल दिया गया। ब्रिटिश गजट के अनुसार अलवर निम्नलिखित भागों में बंटा हुआ था
जयसिंह के समय ये शहर उलावर के नाम से जाना जाता था पर बाद में ये शहर अलवर में बदल दिया गया। ब्रिटिश गजट के अनुसार अलवर निम्नलिखित भागों में बंटा हुआ था
1. नलखेड़ा क्षेत्र - इस क्षेत्र पर नरुका और राजावत राजपूत राज किया करते थे। अलवर के सभी राजा इस क्षेत्र से थे।
2. मेवात क्षेत्र - इस क्षेत्र पर मेव जाति के राजपूतों या मुस्लिम समुदायों का शासन हुआ करता था। मेव जाति में तोमर वंश और कुशवाहा जाति के दोनों राजपूतों का इतिहास मिलता है। इन्होने कई समय तक यहां राज किया था।
3 .राठ क्षेत्र - इस क्षेत्र पर चौहान राजपूतों का शासन रहा है।
2. मेवात क्षेत्र - इस क्षेत्र पर मेव जाति के राजपूतों या मुस्लिम समुदायों का शासन हुआ करता था। मेव जाति में तोमर वंश और कुशवाहा जाति के दोनों राजपूतों का इतिहास मिलता है। इन्होने कई समय तक यहां राज किया था।
3 .राठ क्षेत्र - इस क्षेत्र पर चौहान राजपूतों का शासन रहा है।
4 .वई क्षेत्र - वई क्षेत्र पर शेखावत राजपूतों का राज था आज का यह बहरोड़ और थाना गाजी का क्षेत्र कहलाता है।
राजस्थान के अलवर जिले की भौगोलिक स्थति और भूगोल | Alwar District Geography GK
इस जिले के भूगोल स्थिति में नदियों, पहाड़ों, मैदानों और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों का समावेश है। वह अरावली पहाड़ियों की खूबसूरत रेंज शहर को घेरते हैं, जो शहर के लिए एक प्राकृतिक बाधा के रूप में कार्य करते हैं, जो इसे गर्मी के मौसम में कठोर और शुष्क हवाओं से बचाते हैं। अरावली की चट्टानी श्रेणियां खंडित पठार को टुकड़ों में तोड़ती हैं। यह शहर घने पर्णपाती जंगलों के विस्तृत हिस्सों से सुसज्जित है जो समृद्ध वन स्पतियों और जीवों द्वारा बसे हुए हैं।
1 - बानसूर - 40 , 2. बहरोड़ --30 ,3 - कठूमर - 42 , 4 - किशास्गरहबस - 34 , 5. कोट कासिम - 24 ,
6. लक्ष्मणगढ़ - 45, 7 - मुण्डावर - 43, 8 - नीमराना - 33, 9 - राजगढ़ - 31, 10 रामगढ़ - 43, 11.
रेनी - 26,12 - थानागाजी- 36, 13 - तिजारा - 44, 14 - उम्रें - 41
अलवर जिले में मनाये जाने वाले मेले | Alwar District Fair and Festivals GK
अलवर मेला
अलवर जिले में मनाए जाने वाले प्रमुख त्योहारों में से एक है। यह दो दिवसीय त्योहार है जो हर साल जिले के प्रशासन द्वारा पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए आयोजित किया जाता है और 25-26 नवंबर को मनाया जाता है। देश भर के पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए बहुत सारी सांस्कृतिक कार्यक्रमों और ग्रामीण गतिविधियों का आयोजन किया जाता है।
फेस्टिवल के मुख्य कार्यक्रम हाथी पोलो, फैंसी ड्रेस प्रतियोगिता, फ्लावर शो और स्केटिंग प्रतियोगिता हैं। जगह की प्राचीन वस्तुओं को प्रदर्शित करने के लिए एक प्रदर्शनी भी आयोजित की जाती है।
जगन्नाथ मेला
जगन्नाथ मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है साल जुलाई मैं मनाया जाता है। पीठासीन देवता पुरी के भगवान जगन्नाथ का मानव रूप है और अन्य दो देवता सीताराम जी और जानकीजी हैं। जगन्नाथ जी का मेला अपने वार्षिक रथ यात्रा के लिए मना जाता है। जहाँ भगवान जगन्नाथ को इंद्र विमना नामक रथ में ले जाया जाता है। रथ यात्रा उत्सव पुरी की तुलना में विभिन्न परंपराओं और अनुष्ठानों का पालन करता है।
राजस्थान के अलवर जिले की भौगोलिक स्थति और भूगोल | Alwar District Geography GK
- अलवर जिले का जिला मुख्यालय - अलवर
- उत्तरी अक्षांश में स्थिति - 27 ° 34 '
- पूर्वी देशांतर में स्थिति - 76 ° 35'
- कुल क्षेत्रफल - 8380 वर्ग किमी
- पर्वत शृंखला - अरावली पर्वत श्रृंखला
- दिल्ली से कुल दुरी - 160 KM
- जयपुर से कुल दुरी - 150 KM
- उतर में स्थित राज्य - हरियाणा गुडगाँव
- दक्षिण में स्थित जिला - राजस्थान का दोसा जिला
- पश्चिम में स्थित जिला- राजस्थान का जयपुर जिला
- पूर्व में स्थित जिला- राजस्थान का भरतपुर जिला
- खेती योग्य भूमि क्षेत्र - 5,09,107 हेक्टेयर
- अलवर जिले की प्रमुख फसलें - गेहूं, जौ, ग्राम, सरसों, तारामीरा, बाजरा, ज्वार, खरीफ दलहन,
- जिले में सामान्य वर्षा औसत - 657.3 मिमी
इस जिले के भूगोल स्थिति में नदियों, पहाड़ों, मैदानों और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों का समावेश है। वह अरावली पहाड़ियों की खूबसूरत रेंज शहर को घेरते हैं, जो शहर के लिए एक प्राकृतिक बाधा के रूप में कार्य करते हैं, जो इसे गर्मी के मौसम में कठोर और शुष्क हवाओं से बचाते हैं। अरावली की चट्टानी श्रेणियां खंडित पठार को टुकड़ों में तोड़ती हैं। यह शहर घने पर्णपाती जंगलों के विस्तृत हिस्सों से सुसज्जित है जो समृद्ध वन स्पतियों और जीवों द्वारा बसे हुए हैं।
राजस्थान जिले के अलवर जिले की जनसांख्यिकी 2011 जनगणना के अनुसार
- अलवर जिले की कुल जनसंख्या - 3,674,179
- अलवर जिले की पुरुष जनसंख्या - 1,939,026
- अलवर जिले की स्त्री जनसंख्या की स्त्री जनसंख्या - 1,735,153
- अलवर जिले की जनसंख्या में दशकीय वृद्धि दर - 22.78%
- अलवर जिले का कुल क्षेत्रफल - 8,380 वर्ग KM
- अलवर जिले की राजस्थान की जनसंख्या का % - 5.36%
- अलवर जिले का जनसंख्या घनत्व - 438
- अलवर जिले का लिंगानुपात - 895 /1000
- अलवर जिले का शिशु लिंगानुपात - 865
- अलवर जिले की साक्षरता दर - 70.72
- अलवर जिले की पुरुष साक्षरता दर - 83.75
- अलवर जिले की स्त्री साक्षरता दर - 56.25
राजस्थान के अलवर जिले का प्रशासनिक ढांचा
- अलवर जिले की के उप -खण्डों की संख्या - 12
- अलवर जिले की तहसीलों की संख्या - 16 (अलवर,बानसूर, बहरोड़, गोविन्दगढ,कठूमर, किशनगढ़बास, कोटकासिम,लक्ष्मणगढ़, मालाखेड़ा, मुंडवाकर, नीमराना,राजगढ़, रामगढ़, रेनी, थानागाजी,तिजारा)
- अलवर जिले की पंचायत समितियों की संख्या - 14
- पंचायत समिति का नाम ग्राम पंचायतों की संख्या नीचे दी गई है।
1 - बानसूर - 40 , 2. बहरोड़ --30 ,3 - कठूमर - 42 , 4 - किशास्गरहबस - 34 , 5. कोट कासिम - 24 ,
6. लक्ष्मणगढ़ - 45, 7 - मुण्डावर - 43, 8 - नीमराना - 33, 9 - राजगढ़ - 31, 10 रामगढ़ - 43, 11.
रेनी - 26,12 - थानागाजी- 36, 13 - तिजारा - 44, 14 - उम्रें - 41
- अगर हम अलवर जिले की ग्राम पंचायतों की संख्या की बात करें तो ये 512 बनती है।
- अलवर जिले का कुल क्षेत्रफल - 8380 वर्ग किमी.
- अलवर जिले की विधानसभा क्षेत्र की संख्या - 11
- अलवर जिले में कुल रहने योग्य गांव - 1946
- अलवर जिले में न रहने योग्य गांव - 54
अलवर जिले में मनाये जाने वाले मेले | Alwar District Fair and Festivals GK
अलवर मेला
अलवर जिले में मनाए जाने वाले प्रमुख त्योहारों में से एक है। यह दो दिवसीय त्योहार है जो हर साल जिले के प्रशासन द्वारा पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए आयोजित किया जाता है और 25-26 नवंबर को मनाया जाता है। देश भर के पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए बहुत सारी सांस्कृतिक कार्यक्रमों और ग्रामीण गतिविधियों का आयोजन किया जाता है।
फेस्टिवल के मुख्य कार्यक्रम हाथी पोलो, फैंसी ड्रेस प्रतियोगिता, फ्लावर शो और स्केटिंग प्रतियोगिता हैं। जगह की प्राचीन वस्तुओं को प्रदर्शित करने के लिए एक प्रदर्शनी भी आयोजित की जाती है।
जगन्नाथ मेला
जगन्नाथ मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है साल जुलाई मैं मनाया जाता है। पीठासीन देवता पुरी के भगवान जगन्नाथ का मानव रूप है और अन्य दो देवता सीताराम जी और जानकीजी हैं। जगन्नाथ जी का मेला अपने वार्षिक रथ यात्रा के लिए मना जाता है। जहाँ भगवान जगन्नाथ को इंद्र विमना नामक रथ में ले जाया जाता है। रथ यात्रा उत्सव पुरी की तुलना में विभिन्न परंपराओं और अनुष्ठानों का पालन करता है।
मेले में भगवान जगन्नाथ और जानकी जी के बीच वार्षिक विवाह उत्सव मनाया जाता है। यह जिले का एक महत्वपूर्ण मेला है जहां समाज के विभिन्न क्षेत्रों से श्रद्धालु आते हैं। पर्यटन विभाग प्रत्येक वर्ष जगन्नाथ जी मेले में सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करता है।
राजस्थान का अलवर जिले की नदियां | Alwar District Rivers GK
और इनमे पानी की मात्रा लगभग न के बराबर है।हाँ कभी कभी वरसात में इन नद्दियों का पानी बढ़ जाता है पर इसके पीछे कोई Source ऐसा नहीं है जिससे इस पांच नदियों को ये खा जाये की ये नदियां भारत में सिंचाई के काम आती है अगर दूसरी बात करें तो ये नदियाँ खत्म होने के कगार पर हैं। विजय सागर, मान सरोवर, तिजारा बाँध, जयसमंद बाँध इस जिले के अन्य जलाशय हैं।
नीलकंठ नामक जगहएक समय में बडग़ुर्जरों की राजधानी थी। यहाँ पर बड़ गुर्जर राजा अजयपाल ने नीलकंठ महादेव का मन्दिर बनवाया। इस मंदिर में नाचते हुए गणेश की मूर्ति भी स्थित है। यहां पर काले रंग का नीलम धातु का बना एक शिवलिंग है विराजमान है।
जैनों का तिजारा का मंदिर
अलवर जिले का सरिस्का वन्य जीव अभयारण
राजस्थान के अलवर जिले के पर्यटन स्थल संबंधी सामान्य ज्ञान
नीलकंठ नामक जगहएक समय में बडग़ुर्जरों की राजधानी थी। यहाँ पर बड़ गुर्जर राजा अजयपाल ने नीलकंठ महादेव का मन्दिर बनवाया। इस मंदिर में नाचते हुए गणेश की मूर्ति भी स्थित है। यहां पर काले रंग का नीलम धातु का बना एक शिवलिंग है विराजमान है।
जैनों का तिजारा का मंदिर
यहां पर जैन धर्म से संबंधित तिजारा मंदिर है जो जैन धर्म के लिए आस्था का प्रतीक है।
अलवर का संग्रहालय
अलवर जिले में 1837 में महाराजा विनय सिंह ने कुतुबखाना पुस्तकालय की स्थापना की।
पांडुपोल
अलवर का संग्रहालय
अलवर जिले में 1837 में महाराजा विनय सिंह ने कुतुबखाना पुस्तकालय की स्थापना की।
पांडुपोल
इस स्थान का इतिहास महाभारत से जुड़ा हुआ है ऐसा माना जाता है कि अज्ञात वास के समय पांडवों को जब कौरवों ने घेर लिया था तब भीम ने गदा से इस जगह से निकलने के लिए स्थान बनाया था इस लिए इसे पांडुपोल के नाम से जाना जाता है। यहां पर हनुमान जी की मूर्ति भी विराजमान है।
नारायणी माता का मंदिर
यह मंदिर अलवर जिले की राजगढ़ तहसील के समीप बरबा की डूंगरी की तलहटी में स्थित मंदिर है। ऐसा माना जाता है की ये माता नाई जाति की कुलदेवी है। और नाई जाति में मीणा जाति सबसे प्रमुख है।
नारायणी माता का मंदिर
यह मंदिर अलवर जिले की राजगढ़ तहसील के समीप बरबा की डूंगरी की तलहटी में स्थित मंदिर है। ऐसा माना जाता है की ये माता नाई जाति की कुलदेवी है। और नाई जाति में मीणा जाति सबसे प्रमुख है।
ताल वृक्ष
ये वृक्ष ऋषि माँड़वैये का तपोस्थान माना जाता है। इस स्थान पर उन्होंने तपस्या की थी।
भर्तृहरि धाम
उज्जैन के राजा भृर्तहरी ने अपने जीवन के अंतिम समय में यहाँ पर तपस्या की थी। यहाँ पर भाद्रपद शुक्ल पक्ष सप्तमी व अष्टमी को मेला बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। भृर्तहरी का जन्म चाकसू में हुआ था और उनकी तपस्या स्थान गुफा पुष्कर में है। इस मेले में मीणा व अहीर जाति के लोग सर्वाधिक भाग लेते हैं।
ये वृक्ष ऋषि माँड़वैये का तपोस्थान माना जाता है। इस स्थान पर उन्होंने तपस्या की थी।
भर्तृहरि धाम
उज्जैन के राजा भृर्तहरी ने अपने जीवन के अंतिम समय में यहाँ पर तपस्या की थी। यहाँ पर भाद्रपद शुक्ल पक्ष सप्तमी व अष्टमी को मेला बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। भृर्तहरी का जन्म चाकसू में हुआ था और उनकी तपस्या स्थान गुफा पुष्कर में है। इस मेले में मीणा व अहीर जाति के लोग सर्वाधिक भाग लेते हैं।