दोस्तों पुरे विश्व में हर साल कोई न कोई दिवस जरूर मनाया जाता है और उस दिवस को मनाने का अपना उद्देश्य होता है और उसकी अपनी Theme होती है Gk Pushak के माध्यम से हम आपको विश्व सामाजिक न्याय दिवस (World Social Justice Day) के बारे में जानकारी दे रहे हैं जिसमे ये बताया गया है कि ये दिवस किउं मनाया जाता है और कब मनाया जाता है। सबसे पहले हम इसके बारे में बताएंगे कि विश्व सामाजिक न्याय दिवस (World Social Justice Day) कब मनाया जाता है और उसके पीछे क्या मकसद है।
विश्व सामाजिक न्याय दिवस (World Social Justice Day) -- GK
विश्व सामाजिक न्याय दिवस (World Social Justice Day) कब मनाया जाता है।
हर साल 20 फरवरी को विश्व सामाजिक न्याय दिवस (World Social Justice Day) मनाया गया।
वर्ष 2020 विश्व सामाजिक न्याय दिवस की थीम क्या थी ?
"सामाजिक न्याय प्राप्ति की दिशा में असमानता अन्तराल को समाप्त करना" (Closing the Inequalities Gap to Achieve Social Justice)
विश्व सामाजिक न्याय की अवधारणा आने के क्या कारण थे अर्थात इसका क्या तातपर्य था ?
सामाजिक न्याय का अभिप्राय ये है की हम आपस में शांति पूर्ण ढंग से रहने के तरीके सीखें और सह अस्तित्व और विकास की भावना को बनाये रखें।
सामाजिक न्याय में हमेशा ही समानता की भावना होती है इस समानता का अर्थ भारतीय सविंधान के अनुसार ये नहीं होती कि कोई कद में बड़ा हो पैसे में बड़ा हो या फिर रुतवे में बड़ा हो पर समानता का अर्थ ये होता है की हम सभी नागरिक एक दूसरे की भावनाओं को समझ कर बिना किसी जाति, रंग,नस्ल,उम्र और लिंग में भेदभाव करके एक दूसरे से प्यार करें। भारत में सामाजिक न्याय का अर्थ दूसरे शब्दों में अपने समाज से प्यार करना है ये समाज किसी भी शारीरिक भेदभाव को नहीं देखता है।
क्या कोई संस्था विश्व समाजिक न्याय के लिए काम कर रही है ?
वैसे तो सामाजिक न्याय के लिए कई संस्थायें काम कर रही हैं पर संयुक्त राष्ट्र संघ ‘अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक संगठन’ (International Labour Organization- ILO) हमारे समाज और वैश्वीकरण के लिये न्याय और सामाजिक सुधारों के लिए काम कर रहा है।
विश्व सामाजिक न्याय की पीछे क्या इतिहास है ?
सामाजिक न्याय की पहल अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन द्वारा की गई थी। ILO (International Lab-our Organisation) अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ने सर्वसम्मति से 10 जून, 2008 को निष्पक्ष न्याय के लिये घोषणा की थी। यह प्रयास 1919 के बाद हमारे सविंधान के लागु होने के बाद से दूसरा प्रयास था। पर इस प्रयास में जो सामाजिक न्याय के लिए प्रयास, सिद्धांतों और नीतियों को नजर अंदाज नहीं किया गया था।
कहीं न कहीं सामाजिक न्याय की अवधारणा आज भी 1944 के ‘फिलाडेल्फ़िया घोषणा’ और मौलिक सिद्धांतों और अधिकारों की घोषणा’ 1998 से जुडी हुई है। 2008 में वैश्वीकरण के युग की घोषणा की गई थी। यह घोषणा ILO (International Lab-our Organisation) अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन दुआरा की गई थी।
विश्व सामाजिक न्याय दिवस में 2008 की घोषणा का महत्त्व
यह घोषणा सामाजिक आयाम को बनाये रखने और सामाजिक समानता को बनाये रखने के लिए सबसे बड़ी पहल थी ये एक त्रिपक्षीय परामर्श का परिणाम है।
यह घोषणा ILO अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक संगठन’ (International Labour Organization के मद्देनज़र शुरू हुई हुई थी। इस घोषणा का उदेश्य वैश्वीकरण के सामाजिक आयाम को एक मुकाम पर ले के आना था। इस घोषणा का उदेश्य वर्ष 1999 के बाद से ILO द्वारा विकसित "आदर्श कार्य अवधारणा" (Decent Work Agenda) को संस्थागत रूप प्रदान करना था।
इस घोषणा के उदेश्य थे निम्नलिखित थे।
वैश्विक वित्तीय संकट को डोर करना।
वैश्विक गरीबी को दूर करना।
वैश्विक रंग भेद को दूर करना।
वैश्विक जातिवाद को दूर करना।
वैश्विक सामाजिक असुरक्षा को दूर करना।
वैश्विक बहिष्कार को दूर करना।
और विकासशील देशों की अर्थव्यवस्थाओं को वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ एकीकरण एवं पूर्ण भागीदारी जैसे लक्ष्यों कि प्राप्ति की दिशा की ओर ले कर जाना।
क्या सामाजिक न्याय के लिए हमारे सविंधान में कोई जगह है ?
हमारे सविंधान में सीधे तोर से अधिकारों की रक्षा के लिए प्रावधान है जहां पर नागरिक के सामाजिक आर्थिक और राजनैतिक न्याय को संविधान के लक्ष्यों के रूप में निर्धारित किया गया है। हमारे सविंधान में सामाजिक न्याय की सुरक्षा का प्रावधान मौलिक अधिकारों एवं नीति निदेशक तत्वों में अंकित है। हाँ ये बात याद रहे कि ये अवधारणा किसी विशेष जाति के लिए नहीं है या किसी भी विशेष वर्ग के लिए नहीं है पर सामाजिक न्याय की अवधारणा आम नागरिक के लिए है।
हमारे सविंधान के अनुच्छेद 14 में यह सीधे तोर से अंकित किया गया है कि सामाजिक समानता का अर्थ सकारात्मक है नकारात्मक नहीं है। मिनर्वा मिल्स मामले (1980) में सर्वोच्च न्यायालय ने यह व्याख्या की कि संसद निदेशक तत्वों को लागू करने के लिये मूल अधिकारों को संशोधित कर सकती है, यदि ये संशोधन मूल ढ़ाँचे को क्षति नहीं पहुँचाते हो।
विश्व सामाजिक न्याय को लेकर चुनौतियां
आज भारत में ही नहीं पुरे विश्व में सामाजिक न्याय को लेकर बहुत चुनौतियां है जैसे रंगभेद की चुनौती जिसे पूरा इतिहास भरा पड़ा है। आर्थिक वैश्वीकरण की चुनौती जो पुए विश्व में है। और भारत जैसे बड़े देश में लिंग भेद को लेकर चुनोती। अगर चुनौतियों की बात करें तो बहुत हैं पर जरूरत है तो हम सब को मिलकर इनको दूर करने की।