प्रयागराज का इतिहास ( Prayagraj History in Hindi) :-- नमस्कार दोस्तों, प्रयागराज उत्तर प्रदेश के 75 जिलों में से एक जिला है। प्रयाग राज इतिहास बहुत पुराना है और रोचक भी है। हर किसी के मन में ये सवाल आते हैं कि उत्तर प्रदेश के प्रयाग राज का इतिहास क्या है ? या फिर प्रयाग राज जिले के नाम इलाहाबाद कैसे पड़ा और क्यों पड़ा। इन सवालों के जवाब हमेशा उत्तर प्रदेश की परीक्षाओं में भी पूछे जाते हैं। इसलिए Gk Pustak के माध्यम से आज हम उत्तर प्रदेश के प्रयागराज के इतिहास (History of Prayagraj in Hindi) दे रहे हैं जिसमे प्रयागराज का नाम इलाहाबाद कैसे पड़ा इसकी जानकारी आपको मिलेगी।
उत्तर प्रदेश प्रयागराज जिले का इतिहास (History of Prayagraj in Hindi)
प्रयागराज उत्तर प्रदेश स्थित एक धार्मिक स्थान है। इस धरती को बहु यज्ञ की धरती भी कहा जाता है। इस धरती का इतिहास हिन्दू धर्म के देवता ब्रम्हा से जुड़ा हुआ है हिन्दू शास्त्रों के अनुसार भगवान् विष्णु ने यहां पर यज्ञ किया था। तब से इस धतरी को यज्ञ भूमि माना जाता है। भगवान् ब्रम्हा को सृष्टि के रचनाधर माना जाता है। उनके यज्ञ केने के बाद इस धरती पर कई यज्ञ हए हैं।
आज का प्रयाग राज भारतियों के लिए ही नहीं बल्कि पुरे विश्व के लिए धार्मिक स्थान रहा है। इस क्षेत्र के पूर्व में मौर्य वंश का परचम था अर्थात वे राज करते थे और पश्चिम में गुप्त साम्राज्य ने इस धरती पर राज किया है। उस वक्त इस स्थान को कौशांभी का हिस्सा माना जाता था।
समय के साथ इस धरती पर कन्नौज साम्राज्य ने अपना अधिपत्य जमाया। 1526 जब मुग़ल सम्राट भारत आया तब ये धरती इलाहबाद के अधीन था। ये धरती मराठों के आक्रमण से भी परे नहीं है। अर्थात मराठों ने भी इस धरती पर राज किया है। मुगलों के बाद इस धरती पर अंग्रेजों ने अपना अधिपत्य जमाया। 1775 में इस धरती पर एक दुर्ग का निर्माण किया गया था।
1857 के सवतंत्रता संग्राम में भी इस धरती का सहयोग रहा है। 45 साल तक 1909 से 1949 तक ये धरती उत्तर प्रदेश सयुंक्त प्रान्त की राजधानी रहा।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के दो वार्षिक सम्मेलन भी इस धरती पर हुए हैं पहला सम्मेलन 1888 में हुआ था और दूसरा सम्मेलन 1892 में हुआ था। इस स्थान का इतिहास आजादी के लड़ाके चंद्रशेखर से भी जुड़ा हुआ है। ये वे ही धरती है जिस स्थान पर चंद्रशेखर को ब्रिटिश पुलिस के घेरे जाने के बाद अल्फ्रेड पार्क में खुद को गोली मार ली गई थी। भारत के पहले प्रधानमंत्री इसी धरती से सबंध रखते है।
1931 में चंद्रशेखर ने अपने आप को गोली मारी थी हिंदी भाषा में प्रयाग का अर्थ होता है "नदियों का संगम" अर्थात इस धरती पर भारत की तीन नदियों गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम होता है। इसलिए ये धरती हिन्दुओं के लिए पवित्र स्थान बन गया। "पांच प्रयागों का राजा" भी इस धरती का नाम है। इस धरती को अकबर ने ईश्वर की धरती का नाम दिया था। और ईश्वर की धरती को 'इलाहाबास' भी कहा जाता है। बाद में उसका नाम 'इलाहबास' से बदलकर इलाहाबाद किया गया।
प्रयाग राज का नाम इलाहाबाद कब पड़ा ?
आजादी के बाद 1961 में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश की सरकार ने प्रयागराज के रूप में इलाहाबाद का नाम बदलने के कई प्रयास किए। पर 1962 में इसका नाम बदलने की योजना असफल रही। 1990 में तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को बाबरी मस्जिद विध्वंस का आरोपी माना गया और इस मामले के बाद इस्तीफा देना पड़ा।
2001 में तत्कालीन मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह की सरकार के नेतृत्व में एक बार फिर नाम बदलने का प्रयास किया गया पर उसे भी अधूरा छोड़ दिया गया। इस शहर का नाम बदलने का प्रयास आखिरकार 2014 में किया गया। और में 14 अक्टूबर 2014 में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में सरकार ने आधिकारिक रूप से इसका नाम बदलकर प्रयागराज कर दिया।
भगवान ब्रह्मा ने पृथ्वी को बचाने के लिए इसी धरती पर यज्ञ किया था
History of Praygraj in Hindi and Brahma ji
हिन्दू धर्म के देवता भगवान ब्रह्मा ने पृथ्वी को बचाने के लिए यहां एक महान यज्ञ किया।वे इस यज्ञ में वे स्वयं एक पुजारी बने भगवान विष्णु जो जीवन के पालनहार हैं भगवान शिव जो सृष्टि के तारणहार हैं ने भी इस यज्ञ में भाग लिया था। इस यज्ञ के अंत में तीन देवताओं ने ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने अपनी ताकत से पृथ्वी से पाप के बोझ को हल्का करने के लिए एक "पेड़" बनाया। यह एक बरगद का पेड़ था जिसे आज "अक्षयवट" के नाम से जाना जाता है। यह आज भी मौजूद है।
क्यों नहीं नष्ट होता ये अक्षयवट का वृक्ष अर्थात अमर क्यों है
मुग़ल काल के सम्राट ने इस वृक्ष को नष्ट करने की कोशिश की थी। इस वृक्ष को ख़त्म करने के लिए ओरंगजेब ने इस वृक्ष की जड़ों को खुदवाया, आग लगवा दी, इस वृक्ष पर तेज़ाब तक भी फेंकवाया था पर वह इस पेड़ के वजूद को ख़तम नहीं कर सका। अंत में ये वृक्ष फिर से ऊगा। आज ये स्थान भारतीय पर्यटन स्थल बना हुआ है। चीनी यात्री ह्वेन सांग ने भी इसकी प्रभावित से तंग होकर अपनी पुस्तक में इसका उल्लेख किया हुआ है।