भारत में आजादी प्राप्त करने के लिए कई आंदोलन हुए और उन आंदोलनों में कई क्रांतिकारिओं की जाने भी गई और कइयों को जेल भी जाना पड़ा। महात्मा गाँधी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन चलाया गया जिसमें सभी लोगों ने बढ़ चढ़ क्र हिस्सा लिया। आज हम Gk Pustak के माध्यम से असहयोग आंदोलन के कारणों विस्तार से जानकरी दे रहे हैं।
असहयोग आंदोलन के कारण, विवरण और परिणाम
1915 ई० में महात्मा गाँधी दक्षिण अफ्रीका से भारत आ गए थे। उस समय प्रथम विश्व युद्ध चल रहा था। गाँधी जी ने इस संकट की घडी में भारतीयों से अंग्रेजों को पूर्ण सहयोग देने का अनुरोध किया। परिणामस्वरूप भारतीयों ने ब्रिटिश सरकार का हर प्रकार से सहायता की। सरकार ने इस सहायता से प्रसन्न होकर महात्मा गाँधी को केसर- ए-हिंद की उपाधि से विभूषित किया। गाँधी जी का विचार था कि युद्ध में विजय के पश्चात् अंग्रेज़ भारत को अवश्य स्वराज्य दे देंगे परंतु उनका यह अनुमान गलत निकला।
ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों को स्वराज्य की अपेक्षा रॉलेट एक्ट का उपहार दिया। जलियाँवाला हत्याकांड तथा तुर्की के साथ किए गए अन्याय से गाँधी जी को भारी आघात पहुँचा। परिणामस्वरूप गाँधी जी 1920 ई० में ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध असहयोग आंदोलन चलाने के लिए विवश हो गए। यह आंदोलन भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के इतिहास में ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध 1857 ई० के बाद किया जाने वाला प्रथम एवं प्रभावी आंदोलन था। इसके परिणामस्वरूप अंग्रेजी साम्राज्य की भारत में नींव हिल गई।
असहयोग आंदोलन के कारण
1920 ई० में महात्मा गाँधी द्वारा असहयोग आंदोलन आरंभ करने के अनेक प्रमुख कारण थे। इनका संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है
1. 1919 ई० के अधिनियम से निराशा (Disappointment with the Act of 1919 CE)
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ब्रिटिश ने 1919 ई० का अधिनियम पारित करके भारत में जो सुधार लागू किए उनसे भारतीयों को घोर निराशा हुई। इसका कारण यह था कि उन्हें यह पूर्ण आशा थी कि इस अधिनियम द्वारा भारतीयों को स्वराज्य देने की व्यवस्था की जाएगी। परंतु इसने स्वराज्य देना तो दूर इसका विश्वास भी न दिलाया। परिणामस्वरूप इस अधिनियम ने भारतीयों की आशाओं पर पानी फेर दिया। नेहरू जी ने इस अधिनियम को स्वराज्य की पहली किश्त कह कर इसका उपहास सरकार उड़ाया। तिलक का कहना था कि, हमें सूर्य के बिना सुबह दी गई है। इस एक्ट से गाँधी जी को बड़ी निराशा हुई। श्रीमती एनी बेसेंट के शब्दों में, न तो इंग्लैंड के लिए इस प्रकार का अधिनियम देना और न ही भारत के लिए उसे स्वीकार करना शोभनीय बात थी।
2. रॉलेट एक्ट (Rowlatt Act) :-
प्रथम विश्व युद्ध के समय ब्रिटिश सरकार ने डिफैंस ऑफ़ इंडिया एक्ट पारित करके बहुत से आपात्कालीन अधिकार प्राप्त कर लिए थे। इन अधिकारों का प्रयोग क्रांतिकारियों के दमन के लिए किया गया। युद्ध के पश्चात् यह एक्ट समाप्त हो गया परंतु सरकार अपने विशेषाधिकार छोड़ने के लिए तैयार नहीं थी। इस उद्देश्य से सरकार ने सर सिडनी रॉलेट से दो बिल तैयार करवाए। इनमें से एक बिल 18 मार्च, 1919 ई० को केंद्रीय विधानमंडल ने पारित कर दिया जो रॉलेट एक्ट के नाम से जाना गया।
इस एक्ट के अधीन किसी भी व्यक्ति को बिना कारण बताए बंदी बनाया जा सकता था तथा उसे बिना मुकद्दमा चलाए दंड दिया जा सकता था। उन्हें दलील, वकील तथा अपील का कोई अधिकार नहीं था। इस प्रकार रॉलेट एक्ट पारित करके ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों के घावों पर नमक छिड़कने का कार्य किया। डॉक्टर राजा राम के शब्दों में, रॉलेट एक्ट ने एक चिंगारी दिखलाई जिससे एक भीषण अग्निकांड प्रज्वलित हो उठा।
3. जलियाँवाला बाग़ का हत्याकांड (The Jallianwala Bagh Massacre)-
13 अप्रैल, 1919 ई० को जलियाँवाला बाग़ में एक ऐसी घटना हुई जिसने कन्याकुमारी से लेकर हिमालय तक समस्त भारतवासियों को ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध भड़का दिया। उस दिन रॉलेट एक्ट के विरुद्ध रोष प्रकट करने के लिए बड़ी संख्या में लोग वश जलियाँवाला बाग़ में एकत्र हुए थे। उस दिन बैसाखी का पवित्र दिवस था इसलिए बहुत-से बच्चे, स्त्रियाँ तथा बूढ़े कया जलियाँवाला बाग़ में लगते मेले को देखने चले आए थे। जनरल डायर भारतीयों को सबक सिखाने के लिए ऐसे ।
सन् उस समय भारतीय मुसलमानों ने अंग्रेजों को इस शर्त पर समर्थन दिया था कि युद्ध के पश्चात् तुकी व खलीफ़ा से अच्छा व्यवहार किया जाएगा। परंतु युद्ध के पश्चात् ब्रिटिश सरकार अपने वचन से फिर गई। उसने न केवल तुर्की भड़क उठे। उन्होंने 1919 ई० में अली बँधुओं (शौकत अली तथा मुहम्मद अली) के नेतृत्व में खिलाफ़त आंदोलन को कई भागों में विभाजित कर दिया अपितु खलीफ़ा को भी बंदी की स्थिति में ले लिया। इस कारण भारतीय मुसलमान आरंभ करने का निर्णय किया। अंग्रेजों ने जब इस आंदोलन की कोई परवाह न की तो गाँधी जी ने मुसलमानों को उनके द्वारा आरंभ किए जाने वाले असहयोग आंदोलन में सम्मिलित होने का आह्वान किया, जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया।
आंदोलन का विवरण
सितंबर, 1920 ई० को कलकत्ता (कोलकाता) में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का लाला लाजपत राय कीअध्यक्षता में विशेष अधिवेशन बुलाया गया। इस अधिवेशन में एक प्रस्ताव पारित किया गया कि जब तक पंजाब में किए गए अत्याचारों तथा खिलाफ़त के प्रश्न का समाधान नहीं कर लिया जाता तथा जब तक स्वराज्य प्राप्त नहीं हो जाता तब तक अंग्रेज़ी सरकार से असहयोग किया जाए।
गाँधी जी का कथन था कि यदि असहयोग का ठीक ढंग से पालन किया जाए तो भारत एक वर्ष के भीतर ही स्वराज प्राप्त कर लेगा। दिसंबर, 1920 ई० में नागपुर में हुए कांग्रेस के अधिवेशन में इस प्रस्ताव की पुष्टि कर दी गई। असहयोग आंदोलन को महात्मा गाँधी के नेतृत्व में चलाए जाने का निर्णय किया गया। इस आंदोलन के लिए निम्नलिखित प्रस्ताव पारित किए गए :-
(1) सरकारी नौकरियों का परित्याग कर दिया जाए तथा सरकारी सम्मानों एवं उपाधियों को वापस
कर दिया जाए।
(2) सरकारी उत्सवों एवं समारोहों में भाग न लिया जाए।
(3) सरकारी न्यायालयों का बहिष्कार किया जाए तथा अपने विवादों का निर्णय पंचायतों द्वारा
करवाया जाए।गए। चुनावों का बहिष्कार भी काफी रहा।
कोई भी कांग्रेसी चुनायों के लिए खड़ा नहीं हुआ तथा बहुत कम लोग मतदान करने के लिए गए। कई कस्यों एवं नगरों में मध्य वर्ग हड़ताल पर चला गया। सरकारी और गैर सरकारी लोगो ने कानूनों का उल्लंघन किया था। किसानों ने लगातरा हड़ताल की। आंध्र प्रदेश के किसानों ने भी सरकार का बहिस्कार किया। किसानों द्वारा लगभग 305 हड़तालें की गई। पूरे आंदोलन के दौरान हिन्दू और मुसलमानो ने अभूतपूर्व एकता दिखाई दी। 17 नवंबर, 1921 ई० को जब प्रिंस ऑफ़ वेल्प जब भारत आई तो उसका काले झंडों से स्वागत किया गया। दिसंबर, 1921 ई० में झागदाबाद में कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन में आंदोलन को अधिक तीव्रता करने का निर्णय किया गया।
सरकार का अत्याचार
आरंभ में ब्रिटिश सरकार ने आंदोलन की ओर कोई ध्यान नहीं दिया। पशु इसकी तीव्रता से बढ़ती हुई प्रगति की देख कर सरकार ने इसे निर्माता से कुचलने का निर्णय लिया। उसने कांग्रेस तथा खिलाफत संगठनों को अवैध पोधित का दिया। प्रेस, जुलूसों तथा भाषण देने पर प्रतिबंध लगा दिए गए। 1921 ई० के अंत तक 30,000 आंदोलनकारिये को जेलों में बंद कर दिया गया। इनमें गाँधी जी को छोड़ कर कांग्रेस तथा खिलाफत आंदोलन के लगभग सभी प्रमुख नेता शामिल थे।
सरकार ने आंदोलनकारियों पर अगानुषिक अत्याचार किए। स्त्रियों से भी अपमानजनक अपार किया गया। बंबई (मुंबई) ये प्रिंस ऑफ वेल्स के विरुद्ध एक बड़े प्रदर्शन को कुचलने के लिए सरकार ने गोली चला दी जिसके परिणमस्वरूप 53 आंदोलनकारी गारे गए तथा 400 अन्य घायल हुए । सरकार के इस क्रुद्ध दमन के न्याय लोगों के प्रोत्साहन में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं
आरंभ में ब्रिटिश सरकार ने आंदोलन की ओर कोई ध्यान नहीं दिया। परन्तु इसकी तीव्रता से बढ़ती हुई प्रगति की देख कर सरकार ने इसे कुचलने का निर्णय लिया। उसने कांग्रेस तथा खिलाफत संगठनों को अवैध घोषित कर दिया। प्रेस, जुलूसों तथा भाषण देने पर प्रतिबंध लगा दिए गए। 1921 ई० के अंत तक 30,000 आंदोलनकारिये को जेलों में बंद कर दिया गया। इनमें गाँधी जी को छोड़ कर कांग्रेस तथा खिलाफत आंदोलन के लगभग सभी प्रमुख नेता शामिल थे। सरकार ने आंदोलनकारियों पर अगानुषिक अत्याचार किए। स्त्रियों से भी अपमानजनक अपार किया गया।
बंबई (मुंबई) ये प्रिंस ऑफ वेल्स के विरुद्ध एक बड़े प्रदर्शन को कुचलने के लिए सरकार ने गोली चला दी जिसके परिणमस्वरूप 53 आंदोलनकारी गारे गए तथा 400 अन्य घायल हुए । सरकार के इस क्रुद्ध दमन के न्याय लोगों के प्रोत्साहन में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं की और आंदोलन को कुचलने के प्रयास किये।
क्यों स्थगित किया महात्मा गाँधी ने असहयोग आंदोलन ?
जिस समब असहयोग आंदोलन अपनी पूरी चरम सीमा पर था तो अचानक चौरी-चौरा की घटना के काम महात्मा गाँधी ने असहयोग अंदोलन को स्थगित करने का निर्णय किया। घटना इस प्रकार थी, 5 फरवरी, 1922 को उत्तर प्रदेश के जिला गोरखपुर के एक गाँव चौरी-चौरा में 3000 किसान एक प्रदर्शन में भाग ले रहे थे। कुछ पुलिस वालों ने प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चलाकर उनमें डराने का प्रयत्न किया। इस कारण आंदोलनकारी भड़क उठे । उन्हों क्रोधित होकर पुलिस थाने पर आक्रमण कर उसे आग लगा दी।
परिणामस्वरूप 22 पुलिस कर्मचारियों की मृत्यु हो गई। गांधी जी को इस घटना से बहुत दुख हुआ। क्योकि उन्हें यह भय था कि इस कारण आंदोलन एक हिंसक रूप ले सकता है इसलिए 12 फरवरी, 1922 ई. को बारदोली (गुजरात) में महात्मा गाँधी ने असहयोग आंदोत्तर के स्थगित करने की घोषण की। महात्मा गांधी का कथन था कि, किसी भी तरह को उत्तेजना को निहत्थे और एक तरह से भीड़ की दया पर निर्भर व्यक्तियों को प्रति हत्या के आधार पर उचित नहीं ठहराया जा सकता है।
महात्मा गाँधी के असहयोग आंदोलन को स्थगित करने के निर्णय को सुभाष चंद्र बोस, जवाहरलाल नेहरू सात लाजपत राय तथा अन्य युगक राष्ट्रवादियों ने कटु आलोचना को इस कारण महात्मा गाँधी की लोकप्रिया में से कमी हुई। इस का लाभ उठाकर भरकार ने 10 मार्च, 1922 ई० को उन्हें गिरफ्तार कर लिया। उन पर देशद्रोही की ने कहा कि, मुकदमा चला कर 6 वर्षों की सजा दी गई।
असहयोग आदोलन के परिणाम
असहयोग आंदोलन के खत्म होने के बाद इसमें कोई संदेह नहीं कि असहयोग आंदोलन के कारण भारतीय दीनान ने एक नए युग में प्रवेश किया। इस आंदोलन में पहली बार जर साधारण के सभी वर्गों ने जड़ चड़मसा लिया। इस आंदोलन में हिन्दू मुस्लिम एकता का विस्तार हुआ और सभीहिन्दू मुस्लिम ब्रिटिशर के विरुद्ध हो गए। परिणामस्वरूप उनमें एकता का एक नया रूप सामने आया। कांग्रेस पार्टी लोगों में बहुत लोकप्रिय हुई। लोगों को यह विश्वास हो गया कि कांग्रेस ही अंग्रेजी सरकार के खिलाफ काम कर सकती है।