आजादी से पहले चंबा रियासत के राजा और उनकी सूची | Chamba History GK | Rajas and Kings of Chamba in Hindi

चंबा हिमाचल प्रदेश के सबसे पुराना जिला है। चंबा के अस्तित्व में आने से पहले अर्थात जिला बनने से पहले  चंबा के वर्मन और सिंह dynasty के राजे हुए हैं इस आर्टिकल में हम चंबा जिले के जितने भी राजे हुए हैं उनके बारे में Gkpustak के माधयम से जानने की कोशिश करेंगे। जहाँ चम्बा का पहला राजा मेरु वर्मन था वहीँ अंतिम राजा लक्षमण सिंह थे। आइये जानते हैं आजदी से पहले चंबा रियासत के कितने राजा हुए हैं। 

चंबा के राजे  कौन थे ? | Who were the Kings and Rajas of Chamba?

1. चंबा का पहला राजा मेरूवर्मन : चंबा जिले का पहला राजा राजा मेरु वर्मन था जिसने चंबा में लगभग 680 ईस्वी में राज किया था। हालाँकि उस वक्त चंबा का नाम अस्तित्व में नहीं था उस वक्त चंबा की राजधानी बरहमपुर थी जिसे आजकल भरमौर के नाम से जाना जाता है। उन्होंने अपने राज्य के विस्तार के लिए कुल्लू के मशहूर राजा दतेश्वर पाल का हराकर राज्य का विस्तार किया था। भरमौर में स्थित मणिमहेश मंदिर, नरसिंघ मंदिर शक्तिदेवी मंदिर और लक्षणा देवी मंदिर का निर्माण मेरु वर्मन ने ही करवाया था।

2. चंबा का दूसरा राजा लक्ष्मीवर्मन : चंबा का दूसरा राजा राजा लक्ष्मीवर्मन था जिन्होंने मेरु वर्मन के बाद 800 ईस्वी में चंबा पर राज करना शुरू किया था। उनके शासनकाल की एक मुश्किल ये रही थी की उनके शासनकाल को एक महामारी का सामना करना पड़ा था जिसके चलते उनका शासन डामाडोल हो गया था और उस वक्त ब्रह्मपुर राज्य का विस्तार रुक गया था और किरातों ने ब्रह्मपुर में ज्यादातर कब्ज़ा कर लिया था।

3. चंबा का तीसरा राजा : चंबा का तीसरा राजा लक्ष्मीवर्मन के बाद उनका बेटा मुसानवर्मन था जिन्होंने ब्रह्मपुर (भरमौर} में अपना राज्य स्थापित किया था। मुसानवर्मन के पीछे एक दिलचस्प इतिहास छुपा है। मुसानवर्मन जब छोटे थे तो उनके पिता लक्ष्मीवर्मन को दुश्मनों ने मार दिया और दुशमन मुसानवर्मन को भी मारना चाहते थे। जब सभी सहायता बंद कर दी गई तो मुसानवर्मन की माता की ने मुसानवर्मन को एक गुफा में छुपा दिया था। 

और आप सुकेत के राजा की शरण में चली गई थी। लगभग चार दिन बाद जब रानी गुफा में वापिस आई तो मुसानवर्मन जिन्दा थे और उनके इर्द गिर्द चार चूहे थे। ऐसा माना जाता है उनकी रक्षा वे चूहे ही कर रहे थे। उसके बाद उनका नाम मुसानवर्मन पड़ा था। बाद में मुसानवर्मन का पालन पोषण सुकेत के राजा के यहां हुआ और उन्ही की सहायता से मुसानवर्मन ने फिर से ब्र्हम्पुर में पुंन अपना राज्य स्थापित किया था।

4. चंबा के चौथे राजा : चंबा के चौथे राजा साहिलवर्मन थे जिन्होंने ब्रह्मपुर में लगभग 920 में अपना राज्य स्थापित किया था। चंबा शहर की स्थापना का श्रेय साहिल वर्मन को है। ऐसा माना जाता है की उनके शासन काल के दौरान उनकी बेटी चम्पावती ने चंबा में एक रात गुजारी थी जिससे चम्पावती को ये जगह पसंद आ गई। चंपावती ने अपने पिता साहिल वर्मन से चंबा में रहने का फैसला किया। बाद में चंपावती के नाम पर ही चंबा का नाम पड़ा। साहिल वर्मन ने भरमौर (ब्रह्मपुर) से अपनी राजधानी बदल ली और चंबा को अपना मुख्यालय बनाया था।

5. चंबा के पांचवें राजा : चंबा के पांचवें राजा, राजा युगांकर वर्मन थे जो लगभग 940 में चंबा रियासत के राजा बने थे। उन्होंने चंबा में प्रशाशनिक विस्तार किया और गोरी मदिर का निर्माण उनके द्वारा किया गया था।

6. चंबा के
 छठे राजा : चंबा के छठे राजा, राजा सलवाहन वर्मन थे जो लगभग 1040 ईस्वी में चंबा के राजा बने थे। राजतरंगिणी के अनुसार, राजा सलवाहन वर्मन के शासन काल में कश्मीर के राजा ने चंबा पर आक्रमण किया था। चंबा जिला के तीसा नमक स्थान पर राजा सलवाहन वर्मन के शासन काल के समय के कुछ शिलालेख मिले हैं।

7. चंबा के 
सातवें राजा : चंबा के सातवें राजा, राजा जसाटा वर्मन थे। चंबा जिले के लाहौल-टिकरी चुराह (चम्बा) के पास पाए गए पत्थर लेख राजा जसाटा वर्मन से संबंधित पाए गए है। जसाटा वर्मन ने कश्मीर के राजा सुशाला के विरुद्ध अपने रिश्तेदार हर्ष और उसके पोते भिक्षचाचरा का समर्थन किया था। जसाटा वर्मन के समय का शिलालेख चुराह के लौहटिकरी में मिला है।

8. चंबा के 
आठवें राजा : चंबा के आठवें राजा, राजा उदयवर्मन थे जिन्होंने 1120 ईस्वी से लेकर 1143 ईस्वी तक चंबा में शासन किया। उदयवर्मन के कश्मीर के राजा के साथ अच्छे सबंध थे और इसी के चलते उदयवर्मन ने अपनी दो बेटियों देवलेखा और तारालेखा की शादी कश्मीर का राजा, राजा मशाला के साथ करवाई थी।

9. चंबा का नौवें राजा : चंबा का नौवें राजा, राजा ललितवर्मन था जो 1143 ईस्वी में उदयवर्मन के बाद चंबा के राजा बने थे। हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले के तीसा नामक स्थान और पांगी नामक स्थान पर मिले शिलालेख इस बात का प्रमाण देते हैं कि चंबा में ललितवर्मन का शासनकाल हुआ करता था। गौरतलब है कि ललितवर्मन के शासन काल के समय के शिलालेख के दो पथर ढिबरी कोठी (तीसा) और पांगी तहसील के सेचुनाला में मिले हैं इन शिलालेखों से पता चलता है कि पांगी और तीसा तहसील दोनों चंबा रियासत का हिस्सा हुआ करते थे।

10. चंबा का दसवां 
राजा: चंबा का दसवां राजा , राजा विजयवर्मन था जिसने चम्बा रियासत पर 1175 ईसवी में राज किया था। विजय वर्मन चंबा के ऐसे राजा थे जिन्होंने मुहम्मद गोरी के दो आक्रमणों का फायदा उठाया था जो 1191 और 1192 में किये गए थे, और कश्मीर लद्दाख के अधिकतर हिस्से पर कब्ज़ा कर लिया था।

11. चंबा के ग्यारवें 
 राजा: : चंबा के ग्यारवें राजा, राजा गणेश वर्मन थे जो चंबा रियासत के राजा लगभग 1512 ईसवी में बने। चंबा रियासत के गणेश वर्मन एक ऐसे राजा थे जिन्होंने वर्मन सर नाम को खत्म करके नाम के साथ "सिंह" शब्द को जोड़ा था। वे बाबर के समकालीन थे।

12. चंबा के 
बारहवें राजा : चंबा के बारहवें  राजा, राजा प्रताप सिंह वर्मन थे जिन्होंने चंबा रियासत पर 1559 ईस्वी में सियासत की। उनके शासनकाल में मुगलों ने चंबा पर अपना प्रभाव जमाना शुरू कर दिया था और अकबर ने टोडरमल की सहायता से चंबा के रिहलू क्षेत्र पर कब्ज़ा कर लिए था। प्रताप सिंह वर्मन चम्बा का शक्तिशाली शासक था और उन्होंने काँगड़ा के राजा चंद्रपाल को हराकर गुलेर को अपने शासन में मिला लिया था।

13. चंबा के  
तेरहवें राजा : चंबा के  तेरहवें राजा, राजा बलभद्र थे जिन्होंने 1589 ईसवी में चंबा जिले में शासन किया था। बलभद्र जो जनार्दन के नाम से भी जाना जाता है। वे अपनी दयालुता और दान पुण्य के लिए जाने जाते थे। इसी विशेषता के चलते उन्हें लोग बाली - कर्ण के नाम से पुकारते थे। जनार्धन, उनके पुत्र ने उसे गद्दी से हटाकर स्वयं गद्दी पर कब्जा कर लिया। जनार्धन की शासनकाल में नूरपुर के राजा सूरजमल मुग़लों से बचने के लिए उनके राज्य में छिपे रहे। 

सूरजमल के भाई जगत सिंह को मुग़लों ने कांगड़ा किले के रक्षक के तौर पर नियुक्त किया और बाद में सूरजमल के राज्य के राजा बनाया। 1622 में, जब सम्राट जहांगीर कंगड़ा आए, तब चम्बा के राजा जनार्धन और उनके भाई ने उनसे मिलने के लिए जाना। ढोलोग में राजा जनार्धन और जगत सिंह के बीच एक भयानक युद्ध हुआ, जिससे चम्बा की सेना की हार हुई। दुर्भाग्यपूर्ण रूप से, जनार्धन के भाई भिस्सबर ने युद्ध में अपनी जान गंवाई। 1623 में, जगत सिंह ने धोखे से जनार्धन की हत्या की। चम्बा के राजा बलभद्र को पुनः गद्दी पर बैठाया गया। हालांकि, चम्बा दो दशकों तक जगत सिंह के नियंत्रण में रहा, और जब बलभद्र के पत्र जगत सिंह द्वारा पकड़े गए, तो उसकी हत्या के आदेश जारी किए गए। बलभद्र के एक पुत्र का नाम पृथ्वी सिंह था, जिसे नर्स वाटलू द्वारा बेचा गया और अंततः मंडी राजघराने तक पहुंचा।

चंबा में सिंह वंश का उदय :

14. चंबा के चौहदवें 
राजा : चंबा के चौहदवें  राजा, राजा पृथ्वी सिंह थे जिन्होंने 1641 ईस्वी में चंबा का कार्यभार संभाला। 1641 ई. में, जगत सिंह ने शाहजहाँ के खिलाफ विद्रोह किया। इस मौके का फायदा उठाते हुए पृथ्वी सिंह, मंडी और सुकेत के सहयोग से रोहतांग पास, पांगी और चुराह को पार कर चम्बा तक पहुँचे। जगत सिंह के शत्रु गुलेर के राजा मान सिंह ने भी पृथ्वी सिंह की सहायता की। पृथ्वी सिंह ने भलेई तहसील देकर राजा संग्राम पाल के साथ गठबंधन बनाया। अपने राज्य की स्थापना के बाद, पृथ्वी सिंह ने चुराह और पांगी में राजसिंहासन बनवाए। 

पृथ्वी सिंह और संग्राम पाल के बीच भलेई तहसील संबंधी विवाद हुआ, जिसे मुग़ल सलाहकारों ने सुलझाया। 1648 ई. में भलेई चम्बा को प्रदान की गई। पृथ्वी सिंह मुग़ल सम्राट शाहजहाँ के समकालीन थे। उन्होंने शाहजहाँ के शासनकाल में नौ बार दिल्ली की यात्रा की और एक बैठक में शाहजहाँ ने पृथ्वी सिंह को रघुवीर की मूर्ति प्रदान की। चम्बा में खज्जीनाग (खजियार), हिडिम्बा मंदिर (मेहला) और सीताराम मंदिर (चम्बा) का निर्माण पृथ्वी सिंह की नर्स (दाई) बाटलू ने कराया, जिन्होंने पृथ्वी सिंह की जीवनरक्षा की।


15. चंबा के 
पन्द्रहवें   राजा : चंबा के पन्द्रहवें  राजा, राजा चतर सिंह थे जो 1664 ईस्वी में चंबा के राजा बने थे। राजा पृथ्वीराज के निधन के बाद, उनके पुत्र छत्र सिंह गद्दी पर उभरे, 1664 से 1694 तक शासन करते रहे। वह एक भयंकर शासक साबित हुए, मुग़ल सम्राट औरंगज़ेब की अधिकार पर चुनौती देने से नहीं डरते थे। एक विशेष अवसर पर, सम्राट ने चम्बा में सभी प्रसिद्ध मंदिरों के नाश के आदेश जारी किए। उसे मानने के बजाय, यह साहसी राजा ने केवल आदेश का अवहेलना नहीं की, बल्कि मंदिर के शिखरों को चमकदार सोने की परत से सजाया। चतर सिंह की साहसिकता से नाराज़ औरंगज़ेब ने उन्हें दिल्ली बुलवाया, उनके कार्यों के लिए उन्हें डांटने का इरादा रखते हुए। हालांकि, राजा के हित में भाग्य आया, क्योंकि सम्राट शीघ्र ही दक्षिणी देक्कन में एक संघर्ष में फंस गए, जिसके कारण उन्हें चम्बा और बुलाए गए शासक को भूल गए।

16. चंबा के 
सोलवें राजा: चंबा के सोलवें राजा, राजा उदय सिंह थे जो चंबा रियासत के राजा सन 1694 ईस्वी से लेकर सन 1720 ईसवी तक लगभग 26 साल तक रहे। वे चतर सिंह पुत्र थे और उनके शासनकाल में उनके चाचा जय सिंह वजीर हुआ करते थे। उनके शासनकाल में चम्बा का विकास हुआ।

17. चंबा के सत्तरवें  राजा : चंबा के सत्तरवें  राजा, राजा अगरसिंह थे जो सन 1720 ईस्वी से लेकर सन 1735 ईस्वी तक चंबा के राजा रहे। उन्होंने चम्बा रियासत पर लगभग 15 साल तक राज किया।

18. चंबा के अठारहवें राजा: चंबा के अठारहवें राजा, राजा दलेल सिंह थे जो चंबा के सन 1735 में चंबा के राजा बने और 13 साल तक सन 1748 तक चंबा के शासक बने रहे।

19. चंबा के उनीसवें राजा:: चंबा के उनीसवें राजा:, राजा उम्मेद सिंह सिंह थे और वे चंबा के 1748 बने उन्होंने लगभग 26 साल तक चंबा जिले पर राज किया और 1764 तक चम्बा जिले के राजा बने रहे। जो चंबा में रंगमहल बना है उसका शिलान्यास उमेद सिंह द्वारा किया गया था। उनके शासन काल या मृत्यु के बाद चंबा में एक बहुत सराहनीय घटना थी की उन्होंने अपनी मौत के बाद रानी को सती न होने का आदेश दिया था।

20. चंबा के बीसवें 
राजा: चंबा के बीसवें  राजा, राजा राज सिंह थे जो चंबा के राजा 1764 में बने थे। 1764 से लेकर 1794 तक वे लगभग 30 साल तक चंबा रियासत के राजा के पद पर विराजमान रहे। अपने पिता के निधन के बाद, राज सिंह नवाबी उम्र 9 वर्ष की कम उम्र में गद्दी पर बैठे। हालांकि, घमण्ड चंद ने उससे चंबा को हथिया लिया। 

फिर भी, जम्मू के रणजीत सिंह की सहायता से रानी ने इसे पुनः प्राप्त कर लिया। चंबा के राजा राज सिंह और कांगड़ा के राजा संसार चंद के बीच रेहल क्षेत्र पर नीति संघर्ष तथा न्यायसंगतता के लिए एक कठोर युद्ध भयंकर व्यक्ति हुआ। दुर्भाग्यपूर्ण रूप से, 1794 में शाहपुर के युद्ध में राजा राज सिंह का निधन हो गया। राज सिंह के दरबार के कलाकारों में निक्का, राजा, छज्जू, और हरकू उत्कृष्ट कलाकार थे।

21. चंबा के इकीसवें राजा: चंबा के तेइसवें राजा, राजा जीत सिंह थे जो सन 1794 में चम्बा के राजा बने थे और 1764 से लेकर वे 1808 तक चंबा के राजा बने रहे थे। राजा जित सिंह, एक प्रसिद्ध सेनापति, 1794 से 1808 तक राजघराने में थे। अपनी जवानी में, उन्होंने कश्मीर के कश्तवाड़ में विजयी अभियान का नेतृत्व करके अपने असाधारण नेतृत्व कौशल का प्रदर्शन किया। शासन प्राप्ति के बाद, उन्होंने बशोली का अधिपत्य भी बढ़ाया। हालांकि, अपनी उदारता प्रदर्शित करते हुए, जब बशोली के राजा ने स्वेच्छा से युद्ध भरणी करने के समझौते को स्वीकार किया तो उन्होंने संपत्ति को वापसी दी।

22. चंबा के बाइसवें 
 राजा : चंबा के बाइसवें  राजा, राजा चरहट सिंह थे जो सन 1808 में चंबा की राजगद्दी पर बैठे थे। राजा जीत सिंह की मृत्यु के साथ ही, 1808 में एक नया युग उभरा जब उनके पुत्र चरहट सिंह शासन को आया। उनकी शासनकाल 1808 से 1844 तक थी, जो उत्तर पश्चिम भारत में एक अस्थिर राजनीतिक माहौल के साथ चिह्नित थी। 

पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने पड़ोसी राज्यों को जीतकर एक विशाल सिख साम्राज्य स्थापित करने की खोज में उत्पन्न हुए, जबकि कांगड़ा के राजा संसार चंद कटोच गोरखाओं को जीतकर अपने राज्य का विस्तार करने की कोशिश कर रहे थे। इन परिस्थितियों के बीच, चम्बा खुद को एक अनिश्चित स्थिति में पाया, जिसके कारण वह सतर्कतापूर्वक सावधानी बरतने और महाराजा के साथ तालमेल बनाने के लिए मजबूर था।

1809 में, राजा चरहट सिंह के शासनकाल में, चम्बा के वजीर नाथू ने महाराजा रणजीत सिंह और राजा संसार चंद कटोच के बीच संवाद को सुगम बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसका परिणामस्वरूप, महाराजा ने कांगड़ा किले और आसपास के गांवों का अधिग्रहण किया। इसके अलावा, वजीर नाथू ने कश्मीर में अपने अभियान के दौरान महाराजा को एक नये घोड़े प्रदान करके उसकी जान की रक्षा की। इस परिणामस्वरूप, रणजीत सिंह जी ने चम्बा को जीतने की कोशिश नहीं की बल्कि इसकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एक गैरिसन स्थापित की।

23. चंबा के तेइसवें
 राजा: चंबा के तेइसवें राजा, राजा श्री सिंह थे जो 1844 में चंबा के राजा बने थे। राजा श्री सिंह जब राजघराने की गद्दी पर चढ़े, तो वह मात्र पाँच साल के थे, जिसके कारण प्रशासन का प्रमुख व्यवस्थापन वजीर बघा द्वारा किया जाना आवश्यक था। इस अवधि ने चम्बा के लिए महत्वपूर्ण साबित हुई। अंग्रेजी-सिख युद्ध के कारण, चम्बा में स्थित सिख गणराज्य की सेना वापस ले ली गई। जबकि ब्रिटिश ने सिख साम्राज्य पर हमला करके उसे तबाह कर दिया, तब चम्बा की किस्मत अनिश्चित हो गई। पहले यह निर्णय लिया गया था कि चम्बा राज्य को जम्मू और कश्मीर के साथ मिलाकर एकीकृत किया जाएगा। 

लेकिन वजीर बघा के समय पर समय पर बचाव की वजह से ऐसा निर्णय वापस लिया गया और चम्बा ब्रिटिश सरकार के अधीन संरक्षित क्षेत्र बन गया। इस परिणामस्वरूप, 1846 में लाहौर का संधि ट्रीटी पर हस्ताक्षर हुए, जिससे ये व्यवस्थाएँ प्रमाणित हुईं।

राजा श्री सिंह ने 1839 से 1870 तक शासन किया, जबकि इसके दौरान जनता की स्थिति सुधारने के लिए कई कल्याणकारी उपाय अपनाए गए। चंबा में पहला पोस्ट ऑफिस 1863 में खोला गया और 1866 में क्षेत्र का पहला अस्पताल निर्मित किया गया। इसके अतिरिक्त, इस दशक में दो सड़कें बनीं - एक दालहौज़ी से जुड़ी हुई और दूसरी खजियार के लिए - जो लोगों के लिए संचार और पहुंच को सुगम बनाने में सहायता करती थीं।

24. चंबा के चौबीसवें
 राजा : चंबा के चौबीसवें राजा, राजा गोपाल सिंह थे जो 1870 ईसवी में चंबा रियासत के राजा बने थे। राजा श्री सिंह को एक ही पुत्र मिला, जो दुःखद रूप से अपने शिशुता के दौरान ही निधन हो गया। इस दुःखद नुकसान के पश्चात, उनके छोटे भाई राजा गोपाल सिंह ताकत की गद्दी पर उभरे। राजा गोपाल सिंह ने 1870 से 1873 तक शासन किया, लेकिन कुछ आंतरिक समस्याओं के कारण, उन्होंने अपने पुत्र राजा शम सिंह के पक्ष में गद्दी सौंपने का फैसला किया।

25. चंबा के पच्चीसवें 
 राजा : चंबा के पच्चीसवें  राजा, राजा शाम सिंह थे जो चम्बा रियासत के 1873 में राजा बने। 17 अप्रैल 1873 को, राजा श्याम सिंह को आधिकारिक रूप से ताजपोषण किया गया, हालांकि उस समय वह केवल सात साल का ही था। इसलिए, वयस्कता तक पहुंचने तक उसने प्रशासनिक परिषद के मार्गदर्शन में शासन किया। यह मात्र नवंबर 10, 1884 तक नहीं हुआ जब उसे पूर्ण प्राधिकार प्राप्त हुआ।

राजा श्याम सिंह के पास दूरदर्शी आत्मा और कला के प्रति गहरा सम्मान था। उन्होंने न्यायिक, डाक, और सार्वजनिक कार्यों जैसे विभिन्न सरकारी विभागों का व्यापक पुनर्गठन किया। इसके अलावा, उन्होंने स्कूल, अस्पताल, सड़कें, और डाकघर, न्यायालय, पुलिस स्टेशन, और जेल जैसी महत्वपूर्ण आवश्यक संरचनाएं जैसे महत्वपूर्ण बुनियादी सुविधाओं के निर्माण में अपना समर्पण किया। उनकी एक प्रमुख उपलब्धि मानी जाती है कि वह रावी नदी को लांघने वाले एक सस्पेंशन पुल का निर्माण किया। इसके अलावा, उन्होंने कुष्ठरोगियों के लिए एक आश्रय स्थापित किया।

चंबा शहर की सौंदर्यिकता को बढ़ाने के लिए, राजा श्याम सिंह ने कई सौंदर्यीकरण परियोजनाओं की शुरुआत की। उन्होंने केवल मनोहारी बाग-बगीचे नहीं विकसित किए बल्कि शहर के रूप को आकर्षक बनाने के लिए अराजक ढंग से बने इमारतों को बदलने का प्रयास भी किया। उनकी प्रगतिशील सोच ने लॉर्ड कर्जन की ध्यान आकर्षित की, जो 1900 में सितंबर में चंबा की यात्रा पर गए। इस यात्रा की स्मृति के रूप में, कर्जन गेट, जिसे अब गांधी गेट के नाम से जाना जाता है, आज भी उस घटना का स्मारक है। राजा की गरीबों के प्रति महान सेवा ने उन्हें ब्रिटिश सरकार से कई सोने के पदक प्राप्त किए। इसके अतिरिक्त, उन्हें 1877 में दिल्ली में आयोजित इम्पीरियल दरबार और 1903 में कॉरोनेशन दरबार में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया गया।

दुर्भाग्य से, राजा श्याम सिंह की स्वास्थ्य स्थिति कमजोर होने लगी, जिससे उन्हें अनुभव हुआ कि वह अब राजसी कर्तव्यों को पूरा नहीं कर सकते। इसलिए, 22 जनवरी 1904 को उन्होंने अपने भाई राजा भूरि सिंह के पक्ष में गद्दी त्याग दी। राजा 1905 में निधन हो गए।

26. चंबा छब्बीसवें 
 राजा : चंबा छब्बीसवें राजा, राजा भूरी सिंह था जो 20 सदी का चंबा रियासत का पहला राजा था जिसने 1904 में चंबा रियासत का कार्यभार संभाला था। राजा भूरी सिंह ने 22 जनवरी 1904 से 22 सितंबर 1919 तक चंबा पर शासन किया। वह सिर्फ एक शासक ही नहीं थे, बल्कि उन्हें कला के प्रति गहरी सम्मान और चंबा की समृद्ध संस्कृति को संरक्षित रखने की बहुत अधिक इच्छा भी थी। जब भूरी सिंह संग्रहालय स्थापित हुआ, तो उन्होंने अपने विरासत में मिली कला संग्रह को संग्रहालय को समर्पित किया। राजा भूरी सिंह के निधन के बाद, उनके वरिष्ठ पुत्र, राजा राम सिंह, राजघराने की गदी पर उभरे। वह 22 सितंबर 1919 से 7 दिसंबर 1935 तक चंबा का शासन करते थे।

चंबा का अंतिम राजा : 

चंबा का अंतिम राजा, राजा लक्ष्मण सिंह था जो चंबा का 1935 में राजा बना था। राजा राम सिंह के पुत्र राजा लक्ष्मण सिंह चंबा पर शासन करने वाले अंतिम राजा थे। उन्होंने 7 दिसंबर 1935 को अपने पिता की मृत्यु पर राज्याभिषेक किया था। भारत 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्र हुआ था, इसलिए उन्हें देश के राजनीतिक नेतृत्व ने आग्रह किया था कि वे स्वतंत्र भारत में शामिल हों और उसके विकास में हिस्सा लें। इस प्रकार, उन्होंने इस क्षेत्र के अन्य प्राम्परागिक राज्यों के साथ 15 अप्रैल 1948 को सम्मेलन संधि पर हस्ताक्षर किए। इस प्रकार, भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे लंबे शासक वंश का अंत हुआ।
Rakesh Kumar

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