हिमाचल प्रदेश की भारत का पहाड़ी राज्य है। हिमाचल प्रदेश का इतिहास बहुत पुराना है। हिमाचल प्रदेश के इतिहास की बात करें तो यह महाभारत काल से के समय का है। हिमाचल प्रदेश के इतिहास में से हिमाचल प्रदेश में होने वाली सभी परीक्षाओं में सवाल पूछे जाते हैं। Gk Pustak के इस भाग में हम हिमाचल प्रदेश के मध्यकालीन इतिहास "Medieval History of Himachal
Pradesh" की जानकारी हिंदी में दे रहे हैं। इस पोस्ट में हिमाचल प्रदेश के सबंध मुगलों के साथ, सिखों के साथ, और पहाड़ी राजाओं के साथ कैसे थे उसका विवरण दिया गया है।
हिमाचल प्रदेश का मध्यकालीन इतिहास
इतिहास कारो के अनुसार हिमाचल प्रदेश में महाभारत काल के बाद हर्ष वर्धन ने हिमाचल प्रदेश में रुख किया। हिमाचल प्रदेश के मध्यकाल के इतिहास की बात करें तो हिमाचल प्रदेश की और सभी राजाओं का ध्याना आकर्षित हुआ था। हिमाचल प्रदेश का आज का काँगड़ा किला जो हिमाचल प्रदेश का केंद्र था ने सभी राजाओं के ध्यान इस और आकर्षित किया था।
काँगड़ा के किले को स्थापित करने का श्रेय कटोच वंश के राजा संसार चंद को जाता है। हिमाचल प्रदेश की और गोरखों ने, मुगलों ने, और सिखों ने रुख किया था। जनते हैं हिमाचल प्रदेश के मध्यकाल का इतिहास क्या है ?
महमूद गजनवी का हिमाचल प्रदेश का मध्यकालीन इतिहास
हम सभी जानते हैं कि महमूद गजनवी ने भारत पर 17 आक्रमण किये थे। 1009 ईसवी में मेहमूद गजनवी ने हिमाचल प्रदेश के आनंद पाल को हराया और उसके बाद हिमाचल प्रदेश के काँगड़ा जिले के नगरकोट रियासत की तरफ रूख किया। नगर कोट को उन्होने लुटा।
1143 तक नगर कोट रियासत पर दिल्ली के शासक तोमर ने राज किया और मेहमूद गजनवी के शासन का हिमाचल प्रदेश में अंत कर दिया। मेहमूद गजनवी के समय भारत का मशहूर शासक जयपाल था। उस वक्त नगरकोट रियासत पर जगदीश चंद के राजा थे। मेहमूद गजनवी ने नगरकोट में लूट पाट की।
हिमाचल प्रदेश में मध्यकाल में तुगलक साम्राज्य :
भारत में तुगलक काल 1206 से लेकर 1526 तक रहा जब भारत में बाबर का आगमन हुआ था। तुगलक वंश के राजाओं ने हिमाचल प्रदेश की और ज्यादा ध्यान नहीं दिया पर फिर नहीं उन्होंने हिमाचल प्रदेश जो आक्रमण किये उसका ब्यौरा निम्नलिखित है।
मुहम्मद बिन तुगलक का हिमाचल प्रदेश पर आक्रमण 1337 में किया था उस वक्त नगरकोट रियासत का राजा पृथ्वी चंद था।
हिमाचल
प्रदेश पर फिरोजशाह तुगलक का आक्रमण -- फिरोजशाह तुगलक ने हिमाचल प्रदेश की नगरकोट रियासत पर 1361 में आक्रमण किया था। इस आक्रमण के समय नगर कोट का पहाड़ी राजा रूप चंद था। उसने जवालामुखी नामक स्थान पर 1300 किताबों को हिंदी में अनुवाद करें का हुक्म दिया था। इन किताबों का हिंदी में अनुवाद अब्दुल -खालिद कहानी ने फ़ारसी में किया था।
हिमाचल प्रदेश
पर तैमूर
लंग का आक्रमण -- तैमूर लंग ने हिमाचल प्रदेश पर 1398 ईसवी में आक्रमण किया था। उस समय हिमाचल प्रदेश की नगरकोट रियासत का राजा मेघचन्द था। और नालागढ़ का राजा आलम चंद था। तैमूर ने नगरकोट रियासत पर एक साल के लिए कब्ज़ा किया पर 1399 में वः वापिस चला गया। वापिस जाते नालागढ़ पर उसे कोई भी नुक्सान नहीं किया।
हिमाचल प्रदेश के मध्यकाल में मुग़ल काल का इतिहास
मुग़ल काल भारत में 1526 ईसवी में शुरू हुआ जब बाबर को भारत बुलाया गया था। बाबर को भारत दौलत खान लोधी और मेवाड़ के राजा राणा प्रताप ने इब्राहिम लोधी के खिलाफ लड़ने के लिए बुलाया था।
बाबर ने भारत में पहली लड़ाई तो 1526 में लड़ी थी जिसे पानीपत की पहली लड़ाई कहते हैं पर बाबर ने अपनी चौकी हिमाचल प्रदेश काँगड़ा में "मलोट"नामक स्थान पर बनाई थी। बाबर के बाद हिमाचल प्रदेश कि और अकबर ने रूख किया अकबर के शासन काल में नूरपुर रियसत का राजा राजा जयचंद था।
जय चंद ने अकबर के खिलाफ विद्रोह भी किया था। इस विद्रोह को दबाने के लिए अकबर ने उसके परिवार को बंदी बना लिया था। जय चंद की मोत के बाद नूरपुर की गद्दी पर विधि चंद बैठा बिधिचंद अकबर के समकालीन थे पर बिधि चंद ने अपने पुत्तर आलम चंद को बंदी बनाकर मुग़ल द्वार में रखा था।
नगरकोट रियासत और जहांगीर -- अकबर के बाद मुग़ल शासक जहाँगीर 1605 में राजगद्दी पर बैठा। उस तरफ 1605 में पहाड़ी राजा बिद्धि चंद की मोत होचुकी थी और नूरपुर की रियासत का राजा त्रिलोकचंद बना। जहांगीर ने 1615 में नूरपुर रियासत पर कब्जा करने के लिए मुर्तजा के नेतृत्व में नूरपुर विजय के लिए सेना भेजी पर मृतजा की मृत्यु के बाद ये अभियान कामयाब नहीं हो सका।
1617 में जहांगीर ने फिर नूरपुर रियासत पर हमला किया इस बार सूरज मल और कुली खान में आपसी अनबन हो गई थी इसलिए नूरपुर रियासत पर जहांगीर का कब्ज़ा हो गया।
हिमाचल के पहाड़ी राज्य और ओरंगजेब
हिमाचल प्रदेश के इतहास में औरंगज़ेब ने भी प्रभाव डाले हैं उस जब औरंगज़ेब राजा था तब चम्बा का राजा चत्तर सिंह था। ये 1678 की बात है जब औरंगज़ेब ने भारत के सभ मंदिरों को तुड़वाने का आदेश दिया था। उस वक्त चम्बा के राजा चटर सिंह थे।
चतर ने औरंगज़ेब के इस आदेश को मानने के लिए इंकार कर दिया। चतर सिंह ने जम्मू के राजा, बसोली के राजा और गुलेर के राजा के साथ मिलकर अपने खोये हुए राज्य वापिस ले लिए।
औरंगज़ेब के समय बुशहर रियासत के राजा केहरि सिंह थे उनके सबंध केहरि सिंह के साथ अच्छे थे। औरंगज़ेब ने उसे छत्रपति की उपाधि से नवाज़ा था।
ओरंगजेब और सिरमौर रियासत -- औरंगज़ेब के सिरमौर जिले के राजाओं के साथ अच्छे सबंध थे उस वक्त सिरमौर जिले के बुध प्रकाश और मेदनी प्रकाश राजा थे। सिरमौर के राजाओं ने औरंगज़ेब से कई उपाधियाँ प्राप्त की थी।
राजा घमंड चंद और अहमदशाह
अब्दाली -- एहमदशाह अब्दाली ने 1748 से लेकर 1788 के बीच 10 बार आक्रमण किया। उसने पंजाब में मुगलों की कमर तोड़ दी इसका फायदा उठाया घमंड चंद ने। घमंड चंद को अहमदशाह अब्दाली ने दोआब क्षेत्र का जागीरदार बना दिया। अहमदशाह अब्दाली ने हिमाचलप्रदेश में कई परिवर्तन किये थे।
हिमाचल प्रदेश
और सिख इतिहास
सिखों के पहले गुरु जी गुरु, गुरु गोंद सिंह ने हिमाचल प्रदेश के ज्वालाजी,काँगड़ा,कुल्लू, लाहौल,केहलूर,मंडी,सुकेत की यात्रा की थी उस पहाड़ी राजा बहमों में फसें थे उन्हें उसे निकला था।
सिखों के पांचवें गुरु,गुरु अर्जुन देव जी ने चम्बा,कुल्लू,मंडी के राजाओं से अमृतसर साहिब के निर्माण के लिए पैसे इकट्ठे कर अमृतसर साहिब का निर्माण कार्य भी किया था।
गुरु गोविन्द जी जो सिखों के छठे गुरु थे ने पहाड़ी राजाओं के साथ मिलकर रापद के राजा को हराया था।
सिखों के नौवें गुरु गुरु तेग बहादुर जी ने कहलूर रियासत की रानी से दो गांव प्राप्त किये उनके नाम और पखोवाल का निर्माण किया जो बाद में आनंदपुर शहर के नाम से जाना गया था।
सिरमौर रियासत और सिख गुरु, गुरु गोविंद सिंह जी
सिखों के दसवें गुरु गुरु गोविंद सिंह जी को सिरमौर के राजा मेदिनी प्रकाश ने 1683 में हिमाचल के की सिरमौर रियासत में बुलाया। गुरु जी 1683 से 1688 तक हिमाचल प्रदेश की इस रियासत में रहे। उन्होंने यहां पर रह कर ही गुरु ग्रंथ साहिब की रचना की थी। आज भी पांवटा साहिब का गुरु दुआरा गुरु जी के इतिहास को दर्शाता है।
भगाणी सही का युद्ध -- भगाणी साहिब का युद्ध सिखों के दसवें गुरु गुरु, गोविंद सिंह और हिमाचल प्रदेश के रामचंद्र के बीच हुआ था ये यद्ध सफेद हाथी को लेकर हुआ था। इस युद्ध में गुरु गोविंद सिंह जी की जीत हुई और हुंडरू के राजा हमीर चंद की गुरु जी के तीर से मौत हो गई। ये युद्ध 1686 ईसवी में हुआ था गुरु जी ने हमीर के राजा को उनकी जमीन लोटा दी और गुरु जी संबंध भी चंद के साथ भी सही हो गए।
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