हिमाचल प्रदेश का आधुनिक इतिहास | Modern History of Himachal Pradesh in Hindi : HP GK
हिमाचल प्रदेश भारत का उत्तरी राज्य है हिमाचल प्रदेश का इतिहास बहुत पुराना है। महाभारत काल से लेकर आजादी तक का इतिहास हिमाचल प्रदेश का इतिहास है हर इतिहास की कड़ी की अपनी भूमिका है। हिमाचल प्रदेश के इतिहास की विभिन्न कड़ियों में आज हम हिमाचल प्रदेश के आधुनिक इतिहास की जानकारी दे रहे हैं।
Gk Pustak की इस पोस्ट "Modern History of Himachal
Pradesh in Hindi" में हिमाचल प्रदेश के पहाड़ी राजाओं, सिखों, और गोखाओं के इतिहास पर नजर डाली गई है। ये भाग बहुत जरूरी है किउंकि इससे संबंधित सवाल Objective और Subjective दोनों किस्म के सवाल पूछे जाते हैं। इसलिए ये पोस्ट दोनों को ही cover करेगी।
हिमाचल प्रदेश का आधुनिक इतिहास | Modern History of Himachal Pradesh in Hindi
हिमाचल का पुराना इतिहास जानने से पहले एक नजर प्रचीन और मध्यकालीन इतिहास पर :--
हिमाचल प्रदेश भारत का उत्तरी राज्य है। हिमाचल प्रदेश का इतिहास इतना पुराना है कि यह पूर्व इतिहास काल से और इतिहास काल दोनों से जुड़ा हुआ है। पूर्व इतिहास वह होता है ऐतहासिक प्रमाण नहीं होते हैं और इतिहास वह होता है जिसके इतहासिक प्रमाण होते हैं।
कहने का अर्थ यह है कि हिमाचल प्रदेश का इतिहास महाभारत काल से भी पहले का है। महाभारत काल के सुशर्मा चंद्र थे जिन्होंने कौरवों की तरफ से महाभारत का युद्ध लड़ा था। और उन्होंने ही हिमाचल प्रदेश के काँगड़ा जिले की स्थापना की थी। सिंघु घाटी सभ्यता खत्म होने के बाद आर्यों ने दक्षिण की और कूच किया था।
इसका कारण यह था कि वहां की सप्तसिंधु नदी और सरस्वती नदी लगभग सुख चुकी थी और यही कारण है कि सिंधु सभ्यता और हड़पा सभ्यता का शायद पतन हुआ था। हिमाचल की और आर्यों ने कूच किया उस वक्त आर्यों का सबसे शक्क्तिशाली राजा शांबर था। यहां पर रहने वाले पहले निवासी दस्यु थे।
40 साल के युद्ध के बाद आर्यों ने दस्यु जाति के लोगों को यहां से खदेड़ दिया था। हिमाचल प्रदेश के बसने वाले जातियों में सबसे पुराने कोल., और नागा जाती के लोग हैं जो अभी भी हिमाचल के कुल्लू जिले और चम्बा जिले में हैं।
हिमाचल प्रदेश का आधुनिक काल कब शुरू हुआ ?
ये प्रश्न सभी के दिमाग में है तो हिमाचल प्रदेश में आधुनिक काल 18 शताब्दी से शुरू हुआ था। जानते हैं हिमाचल प्रदेश के आधुनिक काल के बारे में। हिमाचल प्रदेश के इतिहास में तीन मुख्य स्तंभ है जिन्हें करना जरूरी है। पहले सिखों के साथ हिमाचल का इतिहास, फिर गोरखों के साथ , और फिर ब्रिटिश के साथ हिमाचल प्रदेश का इतिहास।
हिमाचल प्रदेश प्रदेश में सिखों का आगमन
हिमाचल प्रदेश के 18 सताब्दी के सबसे शक्तिशाली शासक महाराजा संसार चंद थे उनका एक सपना था कि वे त्रिगर्त / जालंधर राज्य पर राज करेंगे पर ये सपना उनका पूरा इस लिए नहीं हो सका किउंकि उस वक्त त्रिगर्त रियासत का सबसे शक्तिशाली राजा महाराजा रणजीत सिंह जी थे। उन्होंने महाराजा संसार चंद के इस सपने को पूरा नहीं होने दिया था।
उसके बाद संसार चंद ने पहाड़ी राज्यों की और अपना ध्यान किया और उन्होंने पहाड़ी राज्यों को संगठित करने के लिए पहाड़ी राज्यों को अपने कब्जे में लिया था। मंडी के राजा को उन्होंने 12 साल तक कैद रखा था। परिणाम स्वरूप पहाड़ी राजाओं ने संसार को हराने के लिए गोरखाओं को बुलाया। गोरखों ने संसार चन्द को हराकर काँगड़ा के किले पर कब्ज़ा कर लिया। उसके बाद महाराजा संसार चंद ने सिखों के सरदार महाराजा रणजीत सिंह को सहयता के लिए बुलाया।
18 शताब्दी के अंत में बंदा सिंह बहादुर की मृत्यु के बाद सिख धर्म 12 मिसलों में बंट चूका था और 12 मिसलों के सरदार थे जस्सा सिंह रामगढ़िया। जस्सा सिंह रामगढ़िया ने काँगड़ा रियासत , नूरपुर रियासत पर कब्जा कर लिया था। उन्होंने इन रियासतों पर 1770 में कब्ज़ा किया। पर 1775 में कन्हिया मिसल के सरदार कन्हिया ने काँगड़ा के किले पर कब्ज़ा कर लिया।
हिमाचल प्रदेश में महाराजा संसार चंद और महाराजा रणजीत सिंह का इतिहास
महाराजा संसार चंद ने बिलासपुर की एक रियासत जिसका नाम केहलूर था पर आक्रमण कर दिया। उस वक्त केहलूर रियासत का राजा महानचन्द था। राजा महान चंद ने संसार चंद को हराने के लिए 1804 में गोरखा के कमांडर अमर सिंह थापा से सहयता मांगी। अमर सिंह थापा ने ये बिनती स्वीकार कर ली। 1806 में संसार चंद और गोरखा कमांडर अमरसिंघ थापा के बीच मेलमोरियाँ नामक स्थान युद्ध हुआ इस युद्ध में गोरखाओं की जीत हुई और महाराजा संसार चंद की हार।
उसके बाद महाराजा संसार चंद ने महाराजा रंजीत सिंह जो सिखों के सरदार थे से सहायता मांगी परिणाम स्वरूप सहयता स्वीकार कर ली गई और महाराजा संसार चंद और महाराजा रणजीत सिंह के बीच 1809 में एक संधि हुई जिसे जवालामुखी की संधि के नाम से जाना जाता है। इस संधि में संसार चंद ने ये माना कि अगर संसार चंद गोरखों से जीत हासिल करता है तो उसे 66 गांव महाराजा रंजीत सिंह को देने पड़ेंगे। इसके बाद महाराज संसार चंद की सहायता महाराजा रणजीत सिंह ने की और गोरखाओं को हरा दिया। 1823 में महाराजा संसार चंद कि मृत्यु हुई।
महाराजा रणजीत सिंह और संसार चंद अनिरुद्ध सिंह
1823 में महाराजा संसार चंद की मृत्यु हो गयी उनकी मौत के बाद काँगड़ा की गद्दी उनके पुत्तर अनिरुद्ध सिंह ने संभाली। महाराजा महाराजा रणजीत सिंह अनिरुद्ध की दो बहनो के साथ अपने पुत्र की शादी करना चाहते थे और उन्होंने हाथ था अनिरुद्ध सिंह ने इसे स्वीकार भी कर लिया पर बाद में ताल मटोल कर गया और अपनी बहनो की शादी किसी और के साथ कर दी। इसके इलावा महाराजा रणजीत ने अन्य पहाड़ी राजाओं पर आक्रमण कर के गुलेर रियासत पर 1813 में, और जसवां रियासत पर 1815 में कब्ज़ा कर लिया गया।
हिमाचल प्रदेश में गोरखाओं का आक्रमण और इतिहास --
हिमाचल प्रदेश के इतिहास में गोरखों कासे पहले भी बहुत रोचक और पढ़ने योग्य इतिहास रहा है। गोरखों का हिमाचल पर कब्ज़ा कर अपने राज्य का विस्तार करना उदेश्य था। सबसे पहले गोरखाओं को कुमाऊं क्षेत्र में बुलाया गया था इस क्षेत्र में हरिदेव जोशी ने गोरखाओं को बुलाया था उस वक्त नेपाल के नरेश रनबहादुर शाह था। रनबहादुर शाह ने अमर सिंह थापा जो गोरखा था कुमाऊं पर कब्ज़ा करने के लिए भेजा। गोरखाओं ने उस क्षेत्र पर कब्ज़ा भी कर लिया।
1804 में हिमाचल के पहाड़ी राजा महान चंद ने अमर सिंह थापा को महाराजा संसार चंद के खिलाफ युद्ध के लिए आमंत्रित किया। गोरखाओं ने महल मोरियाँ नामक स्थान पर महाराजा संसार चाँद के साथ युद्ध किया और उसे हरा दिया। महाराजा संसार चंद ने फिर सिखों के महाराजा रणजीत सिंह को बुलाकर गोरखों को पराजित किया था। 1806 की जीत के बाद 1810 में गोरखों ने हुँड्डोर,जुब्बल और धामी रियासत पर अपना कब्ज़ा किया। यही नहीं 1811 में अमर सिंह थापा ने ठिओग बालसर, जुब्बल और धामी रियासत पर कब्ज़ा कर लिया। उस वक्त गोरखों की राजधानी आज के सोलन जिले के अर्की में स्थित थी।
पहाड़ी राजाओं का ब्रिटिश का साथ और सुगौली की संधि --
गोरखों से परेशान होकर पहाड़ी राजाओं ने ब्रिटिश की सरकार की और रूख किया। गोरखा ब्रिटिश युद्ध के दूसरे कारण गोरखों का विस्तार था जो पहाड़ी रियासतों में बढ़ता जा रहा था। 1 नवंबर 1814 में ब्रिटश सेना ने गोरखाओं के विरुद्ध युद्ध छेड़ दिया इस युद्ध में गोरखों की हार हुई और ब्रिटिश सेना ने गोरखाओं को नेपाल जाने के लिए मजबूर कर दिया। 28 नवंबर को अंग्रेजो और गोरखों के बीच संधि हुई। कुछ महीने गोरखों ने इस संधि को नजर अंदाज किया पर 1816 में इस संधि को उन्होंने मान लिया और हिमाचल प्रदेश छोड़ कर नेपाल चले गए। उसके बाद हिमाचल प्रदेश में ब्रिर्टिश राज की स्थापना हुई।
हिमाचल प्रदेश में ब्रिटिश राज्य --
गोरखाओं को हराने के बाद हिमाचल प्रदेश में ब्रिटिश सरकार ने छावनियों का निर्माण करना शुरू कर दिया ये छावनियां सैनिक छावनियां थी। आपको यह भी याद होना चाहिए उस वक्त पुरे भारत में लगभग 70 छावनियां थी। हिमाचल प्रदेश में कहाँ कहां छावनियों का निर्माण किया उसके बारे में जानते हैं।
हिमाचल प्रदेश में ब्रिटिश द्वारा स्थापित सबसे पहली छावनी सोलन जिले में 1815 में स्थापित की गई जिसका नाम सुबाथू छावनी है इसे हारे हुए गोरखों के साथ मिलकर बनाया गया था।
दूसरी छावनी ब्रिटिश ने सोलन ही जिले में बनाई थी जो 1815 में बनाई गई इस छावनी का नाम कसौली की छावनी था। इस छावनी का निर्माण भी गोरखा ब्रिटिश चढ़ के दौरान किया गया था।
तीसरी छावनी का निर्माण 1843 में किया गया जो आज के शिमला जिले में स्थित है।
चौथी सैनिक छावनी का निर्माण बकलोह में किया गया को आज भी गोरखा रेजीमेंट के लिए जानी जाती है ये छावनी हिमाचल प्रदेश के चम्बा जिले में स्थित है।
डलहौजी की जो चम्बा जिले की तहसील है का निर्माण 1867 में किया गया था और इस छावनी के निर्माण के लिए साथ दिया था चम्बा के राजा हरी सिंह ने। इसके बाद हिमाचल प्रदेश के 1857 के विद्रोह का इतिहास शुरू होता है।
ये पोस्ट "Modern History of Himachal Pradesh
in Hindi" हिमाचल प्रदेश में सभी परीक्षाओं के लिए बहुत जरूरी है।
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