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हिमाचल प्रदेश के इतिहास में सिख इतिहास 1500 ईसवी से लेकर 1707 ईसवी तक
हिमाचल प्रदेश भारत का उत्तरी राज्य है। हिमाचल प्रदेश का इतिहास रोचक और हिमाचल प्रदेश में होने वाली विब्भिन परीक्षाओं के लिए जरूरी है। हिमाचल प्रदेश के इतिहास को मुख्य रूप तीन भागों में बांटा गया है। प्राचीन काल, मध्य काल,और आधुनिक काल। इसके इलावा हिमाचल प्रदेश में कब्ज़ा करने करने वालों राजाओं में अलग अलग हैं।
हिमाचल प्रदेश पर मुग़लों का राज हुआ, हिमाचल प्रदेश पर गोरखों ने भी कब्ज़ा किया, सिखों ने भी हिमाचल प्रदेश पर कई इलाकों में कब्ज़ा किया। Gk Pustak के इस भाग में हम हिमाचल प्रदेश के सिख इतिहास की चर्चा करेंगे।
हिमाचल प्रदेश का सिख इतिहास | Sikh History of Himachal Pradesh in Hindi
पहले गुरु गुरु नानक देव जी -- सिखों के पहले गुरु गुरु, गुरु गोविन्द सिंह जी थे। गुरु नानक देव जी ने हिमाचल प्रदेश में ही नहीं पुरे विश्व में भर्मण कर मानव जाति को जागृत किया गया था। हिमाचल प्रदेश में गुरु नानक देव जी ने काँगड़ा जिले के ज्वालामुखी मंदिर, कुल्लू जिले में, लाहौल स्पीति जिले में,चम्बा जले में ,सिरमौर जिले में, सुकेत जिले में यात्रायें की।
हिमाचल प्रदेश में गुरु अर्जुन देव जी की भूमिका -- सिखों के पांचवें गुरु,गुरु गोविन्द सिंह थे उनके संबंध हिमाचल प्रदेश के पहाड़ी राजाओं के साथ अच्छे थे पंजाब के अमृतसर जिले में जो हरिमंदिर साहिब गुर द्वारा बना है उसके निर्माण के लिए उन्होंने पहाड़ी राजाओं से धन एकत्रित भी किया था। हिमाचल प्रदेश के हरिपुर रियासत के राजा हरिचंद को गुरु जी ने अमृतसर बुलाकर अपना शिष्य बनाया था।
सिखों के, गुरु हरगोविंद सिंह जो सिखों के छठे गुरु थे जी ने केहलूर के राजा के साथ अच्छे संबध थे। केहलूर के राजा ने गुरु जी को हिमाचल प्रदेश में एक भूभाग प्रदान किया था जहां पर गुरु जी ने 1634 ईसवी में कीरतपुर शहर बसाया था। और आज भी किरतपुर सिखों के लिए पवित्र स्थान बना हुआ है। उनकी मदद से पहाड़ी राजाओं ने 1642 ईस्वी में रोपड़ के राजा को हराया था।
हिमाचल प्रदेश और नौवें गुरु तेगबहादुर सिंह जी -- सिखों के नौवें गुरु, गुरु तेगबहादुर के पहाड़ी राजाओं के साथ भी अच्छे संबंध थे उन्होंने ने केहलूर के राजा के साथ मित्रता की थी। केहलूर के राजा की जो रानी थी उन्होंने गुरु तेगबहादुर तेग बहादुर को मखोवाल नामक स्थान पर तीन गांव भेंट किये थे और उन्ही गांव को मिलाकर जो स्थान बना था आज वह सिखों के लिए धार्मिक स्थान बना हुआ है जिसे आज आनदपुर साहिब के नाम से जाना जाता है।
हिमाचल प्रदेश का गुरु गोविन्द सिंह के संबंध
गुरु गोविन्द सिंह सिखों के दसवें गुरु थे। उनका भरण पोषण आनंदपुर में हुआ था। हिमाचल प्रदेश के पहाड़ी राजाओं में सिरमौर रियासत के राजा मेदनी प्रकाश के साथ अच्छे सबंध थे उन्होंने (मेदनी प्रकाश) ने 1683 ईसवी में सिरमौर रियासत में बुलाया। गुरु जी सिरमौर रियासत के पौंटा साहिब नामक स्थान पर 1683 से 1688 तक पांच साल रहे। और पौंटा साहिब में गुरुद्वारा साहिब का निर्माण किया।
इसी गुरुद्वारा सही से गुरु गोविन्द सिंह जी ने सिखों के पवित्र ग्रन्थ, गुरु ग्रन्थ साहिब की रचना की थी। 1686 में गुरु गोविन्द सिंह और केहलूर के राजा भीमचंद के बिच में टकराव हुआ यह टकराव सफ़ेद होती को लेकर हुआ दोनों के बीच में 1686 में युद्ध हुआ और इसमें भीमचंद की हार हुई बाद में भीमचंद के साथ गुरु जी के सबनध अच्छे हो गए।
इन सबंधों के चलते गुरु जी ने भीमचंद के साथ मिलकर नादौन में मुगलों के साथ लड़ी लड़ी जिसमे गुरु जी ने मुग़ल सेनापति को पराजित किया था। मुग़ल सेना के सेनापति ने आनंदपुर साहिब पर भी आक्रमण किया था पर गुरु जी ने उसे भी नाकाम कर दिया था।
सिख इतिहास में बंदा सिंह बहादुर एक महान लड़का साबित हुआ उसने हिमाचल प्रदेश के सिरमौर रियासत को उसने अपना शिकार बनाया। सिरमौर रियसत के नाहन क्षेत्र पर कब्ज़ा करने के बाद उसने किरतपुर पर अपना अधिकार किया। हिमाचल प्रदेश की केहलूर रियासत के राजा भीमचंद को बंदा सिंह बहादुर ने बुरी तरह से हरा दिया।
इसी हार के चलते मंडी के राजा सिद्धसेन ने और चम्बा के राजा हरिसिंह ने अपनी हार स्वीकार कर ली। 1715 ईसवी में बाँदा सिंह बहादुर को पकड़ लिया गया और 1716 में दिल्ली में फांसी की सजा सुनाई। इसके बाद सिख 12 मिसालों में बांट गया था।
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