भारत में बहुत राष्ट्रवादी के समर्थक हुए हैं और क्रन्तिकारी सोच वाले व्यक्ति हुए हैं। आज हम बात करेंगे भारत के ऐसे सपूत की जिन्होंने आजादी की लड़ाई के लिए योगदान दिया और भारत के युवाओं एक नै प्रेरणा दी। उनका नाम था “विनायक दामोदर सावरकर” या वीर सावरकर।
जब भी भारतीय आजादी की लड़ाई की बात आती है उनका नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाता है। अपने जीवन में उन्होंने सदैव सच का सहारा लेते हुए अपनी मातृभूमि की सेवा की। तो आईये जानते हैं "GK Pustak" में आज वीर सावरकर की जीवनी, उनके इतिहास,शिक्षा, परिवारिक जिंदगी, क्रन्तिकारी जिंदगी और कुछ अनसुने तथ्यों के बारे में।
वीर सावरकर जीवन परिचय | जन्म | परिवार | क्रन्तिकारी गतिविधियां | कहानी | सोच | अनसुने तथ्य
वीर सावरकर बायोग्राफी:
- सावरकर का पूरा नाम (Swarkar Full name) -- विनायक दामोदर सावरकर उपनाम
- पिता जी का नाम ( Father Name) ---- दामोदर पन्त सावरकर
- माता जी का नाम (Mother name) ---- राधाबाई
- जन्म स्थान (Birth Place) ---- नासिक, मुंबई, भारत
- जन्म तारीख (Birth date) ---- 28 मई सन 1883
- राष्ट्रीयता (Nationally) ---- भारतीय
- धर्म और जाति (Religion and Caste) ---- हिन्दू धर्म, ब्राह्मणव्यवसाय (occupation) ---- एक कुशल वकील, हिन्दू कार्यकर्ता
- शैक्षिक योग्यता (Education Qualification) ---- वकालतजिंदगी के आदर्श ( Idols) ---- लाल बाल पाल
- पत्नी का नाम (Wife name) ---- यमुनाबाई
- कुल संतानें children)---- दो एक बेटा, एक बेटी
- पुत्र --पुत्री का नाम (Name of son and daughter) ---- विश्वास सावरकर और चिपलूनकर
- मृत्यु की तारीख (Death Date) ---- 26 फरवरी 1966
विनायक दामोदर सावरकर का जन्म और पारिवारिक :
विनायक दामोदर सावरकर का जन्म आज भारत के महाराष्ट्र राज्य में हुआ था। एक क्रांतिकारी सोच वाले व्यक्ति का जन्म 28 मई 1883 को नासिक के नजदीक एक छोटे से गांव में हुआ था जिस गांव का नाम भगुर था। उनकी माता जी का नाम राधाबाई था और पिता जी का नाम दामोदर पन्त सावरकर था। दामोदर जी के दो और भाई थे एक का नाम गणेश और दूसरे का नाम दामोदर सावरकर था।
दामोदर जी के बहन का नाम नैनाबाई था जो उनसे बड़ी थी और उन्हें बहुत प्यार करती थी। बचपन से उनका भाग्य ने साथ नहीं दिया और मात्र जब वे 15 साल के थे तो उनके सर से माता और पिता का साया उठ गया और उन्हें अपनी जिंदगी अपनी बहन के साथ गुजारने पड़े। उन्होंने अपने जीवन में अपने भाइयों और बहन से संस्कारों की प्राप्ति की और भारत में एक महान क्रांतिकारी और महान लेखक के रूप में अपने आप को उभारा।
सन् 1901 में रामचन्द्र त्रयम्बक चिपलूणकर की पुत्री यमुनाबाई के साथ उनका विवाह हुआ जब वे दसवीं के छात्र थे। विनायक दामोदर सावरकर और यमुनाबाई की दो संतानें हुई एक पुत्र और एक पुत्री, पुत्र का नाम विश्वास सावरकर और पुत्री का नाम चिपलूनकर था।
विनायक दामोदर सावरकर की शिक्षा और आरंभिक जीवन:
जब दामोदर जी 9 वर्ष की छोटी आयु के थे तो उनकी माता जी का देहांत एक भयानक बीमारी हैजे से देहांत हो गया इसके बाद भी वक्त ने उनका साथ नहीं दिया और जब वे 16 वर्ष के थे तो उनके पिता जी दामोदर पन्त सावरकर का भी देहांत 1899 में हो गया। विनायक दामोदर सावरकर अपने माता पिता जी से बहुत प्यार करते थे। इन दोनों घटनाओं ने उनके जीवन पर एक गहरा प्रभाव डाला। अब उनके पालन पोषण और उनकी शिक्षा का सारा कार्यभार उनके बड़े भाई गणेश जी पर था। उनके भाई ने उनकी एडमिशन अपने गांव के नजदीक नासिक में एक स्कूल में करवा दी।
बचपन से वे पढ़ने में लायक और एक कर्मण्ठ स्वभाव के व्यक्ति थे। उस वक्त उनके परिवार की आर्थिक स्थिति भी कुछ अच्छी नहीं थी पर आर्थिक स्थितयों को भांपते हुए उन्होंने सुचारु रूप से अपनी पढ़ाई को जारी रखा। अपनी पढाई के दौरान वे हमेशा किसी न किसी क्रन्तिकारी गतिविधयों में भाग लेते रहते थे जब भी अपने दोस्तों के साथ किसी भी क्रांतकारी गतिवधि में भाग लेते तो उस गतिविधि को वे "मित्र मेला" का नाम दिया करते थे।
अपनी शिक्षा के दौरान वे हमेशा ऐसी "मित्र मेला" का आयोजन किया करते थे। इन मेलों में वे क्रांति संबंधी बातें करते थे और अपने दोस्तों के साथ भी ये बात कहते राष्ट्रीयता की सेवा सबसे बड़ी सेवा है। अपनी पढ़ाई को सुचारु रूप से करने के बाद उन्होंने 1902 में अपनी दसवीं की पढ़ाई पूरी कर ली और उसके बाद पुणे के फर्ग्युसन कालेज में स्नातक की शिक्षा हासिल की। आर्थिक रूप से कमजोर होने से उनकी B. A की शिक्षा का खर्चा सारा उनके ससुर जी ने उठाया था।
विनायक दामोदर सावरकर क्रन्तिकारी गतिविधियां | Vinayak Damodar Savarkar Revolutionary Activities
बचपन से ही क्रांतिकारी गतिविधियों से तत्पर वीर के अंदर देश सेवा पहले से ही भरी हुई थी। क्रांति के साथ बचपन से ही वे निडर स्वभाव और मौके का सही तरीके से इस्तेमाल करना जानते थे। जब वे मात्र 12 साल के थे तो उन्हें एक दूसरे वर्ग की भीड़ का सामना करना पड़ा। वे चारों तरफ से घिर गए थे। उन्होंने मोके का सही इस्तेमाल किया और भीड़ का बहादुरी से सामना किया।
उनके दोस्तों ने इस बात की उनकी बहुत प्रशंशा की शायद इसके बाद ही उन्हें "वीर" के नाम से जाना जाने लगा। वे गर्म दल के नेताओं से ज्यादा प्रभावित थे जब भी लाल, बाल, पाल की क्रांति कारी गतिविधियॉं के बारे में सोचते थे उनके अंदर क्रांति की आग जलने लगती थी। अपनी कॉलेज की पढ़ाई के दौरान उन्होंने लाला लाजपतराय, विपिन चंद्र पाल और बाल गंगाधर की क्रांतिकारी सोच को अपनाया।
जब वे कॉलेज में पढ़ते थे तो उन्होंने अपनी BA की पढ़ाई अच्छे अंकों से प्राप्त की और उसके बाद उन्हें उनकी मेहनत के लिए अपनी आगे की पढ़ाई करने का मौका मिला। पर उनके पास कोई सही मौका नहीं था या सही मार्गदर्शन नहीं था। सामाजिक कर्यकर्ता कृष्ण वर्मा ने इसमें उनकी मदद की और उन्हें आगे की पढ़ाई पूरी करने के लिए इंग्लैंड भेज दिया। वहां जाकर उन्होंने अच्छे ढंग से पढ़ाई की और उसके साथ अपनी क्रन्तिकारी गतिवधियों को भी जारी रखा। आईये जानते हैं उनके आगे का सफर।
जब वे इंग्लैंड में रहते थे तो उन्होंने अपनी राजनीतिक गतिविधियों को लन्दन के इण्डिया हाउस से जारी रखा। उस वक्त लन्दन का इण्डिया हाउस भारतीय राजनीतिक गतिविधियों के लिए जाना जाता था। उस समय वहां पर सारा कार्यभार श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने संभाला हुआ था। विनायक दामोदर सावरकर ने उनका साथ दिया और भारत के लिए क्रांति को आगे लाने के लिए काम किया। सावरकर ने 'फ़्री इण्डिया सोसायटी' का निर्माण किया। इस सोसाइटी का काम सभी भारतियों को आजादी की लड़ाई के लिए प्रेरित करना था।
युद्ध की नीति सीखते हुए और सिखाते हुए उन्होंने गोरिला युद्ध नीति का समर्थन किया और सभी दोस्तों से इस नीति को अपनाने की प्रेरणा दी। वे देश सेवा के लिए रोज गहन अध्ययन करते थे। 1857 की क्रांति का गहन अध्ययन करने के बाद उन्होंने एक किताब लिखी थी जिसका नाम "द हिस्ट्री ऑफ़ द वॉर ऑफ़ इण्डियन इण्डिपेण्डेन्स" था। पर इस किताब का विमोचन इस किये नहीं किया गया क्योकि अंग्रेजी सरकार को खतरा था कि इससे कहीं देश में दूसरी आज़ादी की लड़ाई का विगुल न वज जाये। इसलिए इस किताब को प्रतिबंधित किया गया था।
वीर सावरकर द्वारा काटी गई जेल की कहानी | Story of the Prison Veer Savarkar
जब भी क्रांति की आग में जलना हो तो सजा होनी बड़ी बात नहीं होती है वीर ने भी ऐसी ही सजायें भुगति थी। 1909 में पुरे भारत में मिंटो मार्ले को लेकर प्रदर्शन चल रहे थे। वीर सावरकर ने भी “इंडियन कॉउन्सिल एक्ट 1909” के खिलाफ प्रदर्शन करना शुरू कर दिया। उन्होंने जगह सभायें करके लोगों को जागृत करना शुरू कर दिया। इन गतिविधियों को देखते हुए ब्रिटिश सरकार ने उन्हें पकडने के आदेश दिए।
अपनी गिरफ्दारी से बचने के लिए वे पेरिस के लिए रवाना हो गए और ब्रिटिश सरकार से बचते रहे। 13 मई 1910 को पैरिस से लन्दन जाते समय अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्दार कर लिया। अब उन्हें भारत ले के आना था पर वे अंग्रेजों की नजरों से भाग निकले। बाद में उन्हें 1910 में फिर गिरफ्दार कर लिया गया। उन्हें दोषी मानते 24 दिसंबर 1910 को आजीवन कारावास 50 साल की सजा सुनाई गई।
नासिक जिले के कलेक्टर जैकसन की हत्या के लिए नासिक षडयंत्र काण्ड के अन्तर्गत इन्हें 7 अप्रैल 1911 को काला पानी जो अंडमान निकोबार में स्थित है की सजा सुनाई गई। उन्हें सेलुलर जेल भेज दिया गया। वहां लेकर उन्हें गंभीर पताडना का सामना करना पड़ता था। जेल की जिंदगी किसी होती है उन्हें इस बात का एहसास तब हुआ जब उन्हें भर पेट खाना भी नहीं मिलता था और साफ सफाई के लिए जंगलों में काम करने के लिए छोड़ दिया जाता था।
पर इसके वावजूद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और प्रताड़नाओं को सहते रहे। वीर सावरकर ने 1911 से लेकर 1921 तक लगभग 10 साल पोर्ट व्लेयर की सेलुलर जेल में अपने जीवन के पल बिताये।
1921 में जेल से रिहा होने के बाद की जिंदगी | Life after release from prison in 1921
वीर सावरकर 1921 में जेल से रिहा होने के बाद भारत वापिस आये और वहां आकर भी हिदुत्व के लिए काम करना शुरू कर दिया उन्होंने हिंदुत्व पर एक किताब भी लिखी। उन समय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ॰ हेडगेवार थे इसलिए वे हिन्दू सभाओं के लिए काम करते थे। उनका मिलन उनसे हुआ और वे डॉ॰ हेडगेवार की संघ की कार्यशैली से बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने मिलकर 1931 में एक पतित पावन मन्दिर की स्थापना की जो बॉम्बे में स्थित है।
ये मंदिर या संस्था हिन्दुओं के लिए जनि जाती थी और हिन्दू धर्म के प्रचार और प्रसार के लिए जानी जाती थी। वीर सावरकर भले ही हिन्दू धर्म के प्रचार और प्रसार के लिए जाने जाते थे पर हम आपको बता दें वे हमेशा जाति पाती के खिलाफ थे। उनके लिए हिन्दू धर्म की सभी जातियां एक समान थी। इसके इलावा उन्हें 1937 में अखिल भारतीय हिन्दू महासभा का अध्यक्ष भी चुना गया।
वीर सावरकर हमेशा अखंड भारत का निर्माण करना चाहते थे और उनके प्रयासों से नेता जी सुभष सुभाष चंद्र बोसे जैसे क्रन्तिकारी भी प्रभावित थे। उन्होंने भारत आकर और ब्रिटश में रहते हुए भारत की आजादी के लिए कई सराहनीय कार्य किये। पर अगर बात करें उनकी सोच और महात्मा गाँधी की सोच से तो दोनों में अंतर था। महात्मा गाँधी अहिंसा के पुजारी थे दूसरी और वीर सावरकर हिंदूवादी राष्ट्रवादी विचारधारा के थे जो क्रांति पर विश्वाश रखते थे।
उन्होंने महात्मा गाँधी के असहयोग आंदोलन से पहले ही ब्रिटिश वस्तुओं का वहिष्कार किया था और जब 1905 में लार्ड कर्जन द्वारा बंगाल का विभाजन किया गया था तब उन्होंने ब्रिटिश वस्त्रों की होली खेली थी जो अपने में एक बहुत बड़ा काम था।
हिन्दू समाज के लिए वीर सावरकर की सोच | Veer Savarkar's thinking for Hindu society
वे इस बात का खुल के समर्थन करते थे कि देश में रहते हुए हर कोई हिन्दू एक समान है और इसमें जाति पाती और छुआछूत का कोई भी स्थान नहीं हैं। उनकी सोच ये थी कि जब तक हिन्दू समाज अश्पृश्यता जैसी बीमारी से ऊपर नहीं उठेगा तरक्की नहीं कर सकता है। इसके साथ उन्होंने अपने कार्यों में हिन्दू समाज को छोड़कर अन्य सामाजिक कार्यों और सामाजिक बुराइयों को सुधारने में भी अपना योगदान दिया।
उन्होंने एक बात का खुलकर विरोध किया अस्पृश्यता निषेध होनी चाहिए चाहे वह किसी भी किस्म की हो। इसके इलावा उन्होंने हिन्दू धर्म में प्रचलित निम्न जाति वर्ग का समर्थन करते हुए ये भी कहा कि हिन्दू धर्म में किसी जाति के साथ शादी विवाह, और खान पान निषेध नहीं होना चाहिए। उन्हें इस बात का एहसास था कि हिन्दू समाज सामाजिक बुराइयों में जकड़ा हुआ है इसलिए उन्होंने इन बुराइयों को दूर काने के लिए काम किया और बुराइयों का खंडन किया।
वीर सावरकर की जिंदगी से जुड़े कुछ अनसुने तथ्य | Some unheard facts related to Veer Savarkar's life
- वीर सावरकर राष्ट्रवादी विचारधारा के साथ हिंदुत्व को बढ़ावा देने वाले एक विचारक थे जेल में रहते हुए उन्होंने वहां के कैदियों को शिक्षित किया था।
- एक राष्ट्र्वादी होने के साथ - साथ वे एक कुशल वकील, कवि लेखक भी थे।
- ये भी आप काम ही जानते होंगे कि वे रूढ़िवाद के कट्टर विरोधी थे र हमेशा तर्कबुद्धि वाले व्यक्ति थे।
- 1904 में उन्होंने हिंदी भाषा के प्रोत्साहन के लिए अभिनव भारत नामक एक क्रांतिकारी संगठन का निर्माण किया था।
- जब वे अंडमान जेल में रहते थे तो उन्होंने जेल की कठोर नीतियों के होते हुए अपनी क्रांतिकारी सोच को नहीं छोड़ा और क्रांति के लिए काम करते रहे।
- अग्रेज अधिकारी 1857 के विद्रोह को आज सैनिक विद्रोह मानते थे, कुछ भरतीय इसे 1857 के संग्राम से जानते थे पर क्या आपको पता है उन्होंने 1857 की क्रांति को आजादी की एक सफल लड़ाई माना और सिद्ध किया था।
- ये भी आप काम जानते होंगे 1 जुलाई 1909 को मदनलाल ढींगरा द्वारा विलियम हट कर्जन वायली को गोली मार दी गई तो उन्हें भी इस आरोप में आरोपी माना गया था और जेल जाना पड़ा।
- उनके मशहूर बोल अपनी मातृ भूमि के लिए थे "मातृभूमि तेरे चरणों में पहले ही मैं अपना मन अर्पित कर चुका हूँ। देश-सेवा ही ईश्वर-सेवा है, यह मानकर मैंने तेरी सेवा के माध्यम से भगवान की सेवा की है। "
- भारत के दो ऐसे क्रांतिकारी थे जिनका नाम वल्लभ भाई पटेल और बाल गंगाधर तिलक जिन्होंने उन्हें ये कहा था कि वे जेल से छूटने के लिए अंग्रेजी सरकार से कानून न तोड़ने विद्रोह न करने की शर्त रखें जिसके आधार पर उनकी रिहाई हुई थी।
- ये भी आप कम ही जानते होंगे कि जब भारत के दो टुकड़े हुए तब उन्होंने अपना दुःख जताते हुए ये भी कहा था कि उन्हें आजादी की ख़ुशी है पर वे एक अखंड भारत की सोच रखते थे।
- क्रन्तिकारी होने के साथ - साथ वे एक सामाजिक सुधारक भी थे जिन्होंने हिंदूवादी पाखंडों का सिरे से दरकिनार किया था।
वीर सावरकर की मृत्यु कैसे हुई ?
वीर सावरकर ने इच्छा मृत्यु का प्रण ले लिया था इस लिए उन्होंने अपने जीवन में उपवास रखने का फैसला किया। उन्होंने ये कसम खाई थी कि वे तब तक उपवास ग्रहण करेंगे। 1 फरवरी 1966 को सावरकर ने यह घोषणा कर दी थी कि आज से वह उपवास रखेंगे और अन्न का एक भी दाना नहीं चखेंगे।
उनकी ये सोच थी कि सभी व्यक्ति को अपने ढंग से जीवन जीने की अनुमति होनी चाहिए। निडर होकर उन्होंने अपनी मृत्यु से पहले ये भी लिखा था कि मैं आत्महत्या नहीं आत्म समर्पण कर रहा हूँ। वे अपने प्रण पर डंटे रहे और उपवास जारी रखा। 26 फरवरी 1966 में उन्होंने अंतिम सांस ली देश के लिए क्रांति कारी सोच रखने वाला एक व्यक्ति भारत माता के चरणों में सदा के लिए विलीन हो गया।