भारत देश में जब इष्ट इण्डिया कंपनी आई उसके बाद 1857 के विद्रोह के बाद में हिंदुस्तान ने अपनी आजादी की जरूरत समझी। मंगलपांडे जैसे पहले शहीद ने भारत में आजादी की लड़ाई का आरम्भ किया। उसके बाद 1885 में कांग्रेस के स्थपना के बाद देश में दो धड़े बन चुके थे एक तरफ गर्म दल के नेता और दूसरी तरफ नरम दल के नेता दोनों के जो आज़ादी प्राप्त करने के साधन थे बिलकुल अलग थे। दोनों ने आज़ादी की लड़ाई के लिए पूर्ण सहयोग दिया। पर आज हम बात करेंगे ऐसे स्वतंत्रता के सेनानी की जो एक गर्म दल के नेता थे और अपने जोश से आजादी की लड़ाई प्राप्त करना चाहते थे।
गरम दल के नेता थे भगत सिंह सरदार,राजगुरु,चन्दर शेखर आजाद, करतार सिंह सराबा, सुखदेव आदि। 1907 में जो कांग्रेस का अधिवेशन हुआ उसमें गरम दल और गर्म दल का विभाजन हुआ। आज हम बात करेंगे उसके जीवनी और इतिहास के बारे में जिहोने आजादी के लिए सब कुछ कुर्बान कर दिया और उनका नाम था चंद्र शेखर आजाद। आइये नज़र डालते है क्रांतिकारी चंद्र शेखर आजाद के जीवन परिचय इतिहास और उनके जीवन से जुड़े कुछ पहलुओं पर।
चंद्र शेखर आजाद का जीवन परिचय | शिक्षा | परिवार | क्रांतिकारी गतिविधियां | शहीदी | अनमोल शब्द
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क्रांतिकारी चंद्र शेखर आजाद |
चंद्र शेखर आजाद का जीवन परिचय | Biography of Chandr Shekhar Azad
- चंद्र शेखर का पूरा नाम --- चंद्र शेखर आज़ाद
- उपनाम नाम --- आज़ाद
- जन्म स्थान --- मध्यप्रदेश राज्य, भाबरा गांव, जिला आजादनगर
- जन्म तारीख --- 23 जुलाई 1906
- पिता का नाम --- सीताराम तिवारी
- माता का नाम --- जगरानी देवी
- धर्म --- हिन्दू ब्राह्मण
- दोस्त का नाम --- बटुकेश्वर दत्त, भगत सिंह, राजगुरु ,सुखदेव
- मृत्यु की तारीख --- 27 फरवरी 1931
- मृत्य का स्थान --- इलाहाबाद, अल्फ्रेड पार्क
- मृत्यु के वक्त उम्र --- 24 साल, 7 महीने, 4 दिन
चंद्र शेखर आज़ाद का जन्म, शिक्षा और परिवार | Birth, Education and Family of Chandra Shekhar Azad
चन्द्रशेखर आजाद का जन्म भारत के आज के मध्यप्रदेश राज्य के इंदौर नामक नगर में हुआ था। जहां उनका जन्म हुआ उस गांव का नाम भाबरा है जिसे अब चन्द्रशेखर आजादनगर के नाम से जाना जाता है। चन्द्रशेखर आजादनगर मध्यप्रदेश के अलीराजपुर में आता है। चंद्र शेखर का जन्म 23 जुलाई 1906 ईस्वी में हुआ था।
वे एक हिन्दू धर्म से संबंध रखते थे और उनका परिवार कुलीन ब्राह्मण परिवार था। उनके पिता जी नाम पण्डित सीताराम तिवारी था। उनकी माता जी का नाम जगरानी देवी था जो एक धार्मिक किस्म की औरत थी।
जगरानी देवी सीताराम तिवारी की तीसरी पत्नी थीं। उनकी पहली दो पत्नियों का देहांत कम उम्र में ही हो गया था। चंद्र शेखर आज़ाद का बचपन उनके गांव में ही बीता। जब चंद्र शेखर छोटे थे तब 1963 में भारत को एक भीषण अकाल का सामना करना पड़ा। और उसके पिता जी ने कुछ समय गांव छोड़कर अलीराजपुर रियासत में भी की पर उसके बाद उनके पिता जी वापिस गांव लौट आये और फिर वहीँ पर चंद्र शेखर ने अपना बचपन बिताया। उन्होंने संस्कृत पाठशाला वाराणसी से अपनी पढ़ाई पूरी की।
चंद्रशेखर आज़ाद का प्रारम्भिक जीवन और बचपन | Early life of Chandrashekhar Azad
चंद्रशेखर आज़ाद का बचपन मध्यप्रदेश के अपने भाबरा गांव में बीता जब वे छोटे थे उनके अंदर क्रांति के लक्षण सामने आते थे। उनके शिक्षा के समय अकाल के समय जब उनके पिता जी को काम के सिलिसले में घर से बहार जाना पड़ा तो वे घर का काम करते थे। वे जिस स्कूल में पड़ते थे उनके छात्र उन्हें बहुत पसंद करते थे और उनकी क्रन्तिकारी सोच की हमेशा सराहना करते थे। आज का उनका गांव मध्यप्रदेश की खान नदी के किनारे स्थित है और वे हमेशा उस नदी के किनारे जाकर भील जाति के दोस्तों के साथ तीर अंदाजी के गुर सीखा करते थे।
जन्म से छोटी उम्र में वे एक नरम स्वभाव और झगड़ालू किस्म के नहीं थे पर उन्होंने अपने बचपन में कुछ ऐसे किसे सुने और देखे जिससे उनके मन में बदलाव आया और उन्होंने क्रांतिकारी बनने का फैसला किया। उनके बचपन में क्रांतिकारी सोच का दूसरा कर्ण ये भी था कि उस समय वनारस एक क्रांतिकारियों का गढ़ माना जाता था। वे मन्मथनाथ गुप्त और प्रणवेश चटर्जी जैसे क्रांतिकारिओं के सम्पर्क में आये और क्रान्तिकारी दल के सदस्य बन गये। और उनके जीवन में क्रांति का सिलसिला शुरू हुआ।
चंद्र शेखर आज़ाद में क्रांतिकारी गतिविधियां और देश के लिए योगदान | Revolutionary Activities in Chandra Shekhar Azad
कोई भी पंजाब के अमृतसर के नरसंहार को कैसे भूल सकता है 1919 में जब जनरल डायर ने निहथे लोगो पर गोलयां चलाने का आदेश दिया था तब चंरशेखर स्कूल में पद रहे थे। इस घटना को देखते हुए महात्मा गाँधी ने पुरे भारत में असहयोग आंदोलन की शुरआत की और ये आंदोलन पुरे भारत में आग की तरह फ़ैल गया। चंद्र शेखर इस घटना से बहुत दुखी थे इसलिए उन्होंने इस आंदोलन का साथ देते हुए अपने साथियों के साथ सड़क पर उतर आये और अंग्रेजी सरकार को पूर्ण बहिस्कार किया। आज़ाद को गिरफ्दार कर लिया गया।
उन्हें जेल भेज दिया गया उसके बाद उन्हें अंग्रेजी सरकार ने देशद्रोह के मामले में 15 बेंतों की सजा सुनाई। चंद्र शेखर आज़ाद मात्र 14 या 15 साल के थे जब उन्हें ये सजा सुनाई गई थी।
उन्हें जहां पर सजा दी जनि थी वहां पर नंगा बांध दिया गया। उन्हें जब बेंत मारे जाते तो उनकी जुवान से पीड़ा की चीख नहीं निकलती थी पर एक ही शब्द निकलता था वह था "भारत माता की जय" उन पर सजा के मुताबिक बेंत बजते रहे पर वे तब तक भारत माता की जय बोलते रहे जब तक वे बेहोश नहीं हो गए।
भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने चंद्र शेखर की इस क्रांतिकारी गतिवधि पर बहुत हैरानी जताई और प्रसंशा भी की। इस करसंतिकारी गतिबिधि से उन्हें उत्तर भारत की क्रांतिकारिओं की लिस्ट में आगे लाया गया और क्रांतिकारी दल का नेता भी नियुक्त किया गया।
चंद्र शेखर आज़ाद की दूसरी क्रांतकारी गतविधि यह थी उन्होंने 17 दिसम्बर, 1928 को भगत सिंह, राजगुरु के साथ मिलकर ब्रिटिश अधिकारी सांडर्स की हत्या करके लाला लाजपतराय की हत्या का बदला लिया था। हम आपको बता दें लाला लाजपतराय अग्रेजों द्वारा लाठी चार्ज में मारे गए थे ,आज़ाद, भगत सिंह और राजगुरु ने 17 दिसम्बर, 1928 को संध्या के समय सांडर्स के आने की प्रतीक्षा की। सभी ने योजना इस तरह से बनाई थी जैसे वे किसी काम में व्यस्त हों। भगत सिंह ने मैन मोर्चा संभाला और चंद्रशेखर एक स्कूल के पास सांडर्स का इंतज़ार करते रहे।
उसके आने पर अपनी साइकल पर बैठे राजगुरु ने सबसे पहले उन्हें गोली मार दी पर उससे सांडर्स बेहोश हो गया। उसके बाद भगत सिंह ने आगे बढ़कर 4 -पांच गोलियां से ब्रिटिश अधिकारी को ठंडा कर दिया। ये सब देखकर अंग्रेज अधिकारी का गार्ड भगत सिंह की और भागा पर चंद्र शेखर आज़ाद ने उसे भी गोली मार दी और उसे भी मौत की नींद सुला दिया। इस प्रकार आज़ाद और उसके साथिओं ने लाला जी की मौत का बदला ले लिया।
चन्द्रशेखर आज़ाद की अगली क्रांतिकारी गतिबिधि अंग्रेजी सरकार के कान खोलना था। अर्थात उन्होंने और उनके साथियों , भगत सिंह, राजगुरु, और बटुकेश्वर दत्त ने ये योजना बनाई कि वे दिल्ली की केन्द्रीय असेंबली में बम विस्फोट करेंगे पर इस बंम विस्फोट का मकसद ये नहीं होगा कि वे किसी की जान लेना चाहते थे पर इस बम विस्फोट से वे सोई हुई अंग्रेजी सरकार के कान खोलना चाहते थे। पहले इस कार्य के लिए भगत सिंह और चन्द्रशेखर आज़ाद का नाम चुना गया पर बाद में इस घटना को भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने अंजाम दिया और 8 अप्रैल, 1929 को दिल्ली की केन्द्रीय असेंबली में बम विस्फोट किया। इससे चंद्र शेखर ने एक और क्रन्तिकारी गतिविधि को अंजाम दिया और भारत को आज़ाद करने के लिए आगे बढे।
चंद्रशेखर आज़ाद | काकोरी काण्ड:
काकोरी काण्ड को भी कौन भूल सकता है जब आज़ाद ने क्रांतिकारियों के साथ मिलकर 9 अगस्त 1925 को काकोरी में एक ट्रेन में डकैती डाली थी. इसी घटना को ‘काकोरी कांड’ के नाम से जाना जाता है जिसमें आज़ाद ने भी मुख्य भमिका निभाई थी। क्रांतिकारियों का मकसद ट्रेन से सरकारी खजाना लूटकर उन पैसों से हथियार खरीदना था ताकि अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध को मजबूती मिल सके।
चन्द्रशेखर आज़ाद का भगत सिंह में थोड़ी खटपट | Chandrashekhar Azad's little tussle with Bhagat Singh
वैसे तो भगत सिंह और चन्द्रशेखर आज़ाद की सोच में कोई भी फर्क नहीं था दोनों गर्म दल से थे और अपनी ताकत से अंग्रेजों को बाहर का रास्ता दिखाना चाहते थे पर जब भगत सिंह ने एसेम्बली में बम फेंकने फेंकने गए तो उन्होंने भगत सिंह के इस कार्य का साथ इसलिए नहीं दिया किउंकि वे जानते थे कि वहां भगत सिंह की सुरक्षा का सवाल है इसलिए उन्होंने इस कार्य के लिए उन्हें इंकार कर दिया था।
पर भगत सिंह के पकडे जाने के बाद सारा कार्यभार अब उनपर आ गया था। उन्होंने भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को छुड़वाने की कोशिश भी की और अपनी भाभी जिनका नाम दुर्गा था महात्मा गाँधी के पास भेजा था पर महात्मा गाँधी ने इस कार्य के लिए साफ इंकार कर दिया था।
चंद्र शेखर आज़ाद की शहीदी | Martyrdom of Chandra Shekhar Azad
चंद्र शेखर आज़ाद कभी भी पुलिस के थे नहीं चढ़े थे। 27 फरवरी 1931 को इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क जिसे अब आजाद पार्क के नाम से जाना जाता है। पुलिस को सुचना मिली कि आज़ाद उस पार्क में घूम रहे हैं वे उस वक्त सुखदेव थापर के साथ थे। जब पुलिस ने उन्हें चारों तरफ से घेर लिया तो चंद्रशेखर आज़ाद ने एक वृक्ष का सहारा लिया और पुलिस पर गोलियां बरसाना शुरू कर दिया। जब चंद्रशेखर गोलियां चला रहे थे तो उन्होंने सुखदेव थापर को भागने के लिए कहा और वे बच निकले। इसके पीछे कारण एक और भी था कि उनके पास गोलियां कम होती जा रही थी।
आज़ाद ने पुलिस का डटकर मुकाबला किया पर जब उनके पास गोलियां ख़तम हो गई तो उन्होंने अपनी ही पिस्तौल से अपने सर पर गोली मर ली जिससे भारत मां का एक और क्रांतिकारी भारत माता की गोद में शहीद हो गया। आज़ाद ने सदा आज़ाद रहने की कसम खाई थी इसलिए वे आज़ाद ही शहीद हुए।
चंद्र शेखर आज़ाद द्वारा कहे कुछ अनमोल शब्द | Chandrashekhar Azad Quotes in Hindi
- "अगर मातृभूमि के लिए आपका खून नहीं खौलता, तो यह पानी ही है जो आपकी नसों में बहता है। मातृभूमि की सेवा नहीं तो यौवन की क्या बात है।
- ''दुश्मन की गोलियों का, हम सामना करेंगे, आजाद ही रहे हैं, आजाद ही रहेंगे''
- "मेरा नाम आजाद है, मेरे पिता का नाम स्वतंत्रता और मेरा घर जेल है."
- चिंगारी आजादी की सुलगती मेरे जिस्म में हैं. इंकलाब की ज्वालाएं लिपटी मेरे बदन में हैं. मौत जहां जन्नत हो यह बात मेरे वतन में है. कुर्बानी का जज्बा जिंदा मेरे कफन में है..
- "मैं एक ऐसे धर्म में विश्वास करता हूं जो स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे का प्रचार करता है।"
- “ऐसी जवानी किसी काम की नहीं जो अपनी मातृभूमि के काम न आ सके.”
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- "दूसरे अपने से बेहतर कर रहे हैं यह नहीं देखना चाहिए, हर दिन अपने ही नए कीर्तिमान स्थापित करने चाहिए, क्योंकि, लड़ाई खुद से होती है दूसरों से नहीं।"
- "अगर आपके लहू में रोष नहीं है , तो यह पानी है, जो आपकी रगों में बह रहा है , ऐसी जवानी का क्या मतलब, अगर वह मातृभूमि के काम ना आए।
चंद्र शेखर आज़ाद से जेल में पूछे गए प्रश्न ?
"तुम्हारा नाम क्या है?
मेरा नाम आजाद है।
तुम्हारे पिता का क्या नाम है ?
मेरे पिता का नाम स्वाधीनता है।
तुम्हारा घर कहां है ?
मेरा घर जेलखाना है।"
"मेरे जज्बातों से इस कदर वाकिफ है , मेरी कलम, मैं इश्क़ लिखना चाहूं , तो इंकलाब लिख जाता है।"
"मैं जीवन की अंतिम सांस तक,देश के लिए लड़ता रहूंगा।"